बोर्ड परीक्षाएं भारतीय शिक्षा की प्रमुख समस्याओं में एक हैं। ‘स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा’, यानी एनसीएफ एसई, 2023 में इस पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है और तात्कालिक मुद्दों से बचने के बजाय उनको डटकर स्वीकार किया गया है। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा है, बोर्ड परीक्षा के कारण परीक्षार्थियों और उनके परिवारों में होने वाला तनाव । इसकी कई वजहें हैं, जैसे- परीक्षा के अंकों को सामाजिक रूप से ‘मूल्यवान’ समझा जाता है और यह माना जाता कि जीवन में ये बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं; बोर्ड परीक्षा के नतीजों का उपयोग कॉलेज में दाखिला लेने या कभी-कभी नौकरियों के लिए भी किया जाता है; परीक्षा में एक दिन का खराब प्रदर्शन गंभीर रूप से नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है; इन अंकों से कोचिंग संचालक व्यावसायिक हित साधते हैं और पैसे कमाने के लिए फर्जी प्रतिस्पर्द्धा दबाव बनाते हैं।
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— Ek Sandesh (@EkSandesh236986) December 2, 2023
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दूसरा मुद्दा, अधिकांश बोर्ड परीक्षाएं अपने प्रारंभिक उद्देश्य पूरा नहीं कर पातीं और इससे भी बुरी बात यह है कि ये स्कूलों में शैक्षणिक प्रयासों की दिशा बदल देती हैं। दरअसल, इन परीक्षाओं का मकसद 10वीं और 12वीं कक्षा के अंत में बच्चों की क्षमताओं का आकलन करना है । इसके बजाय, कई स्कूल तमाम तरह के तथ्यों को याद कराना बेहतर समझते हैं। यह तरीका छात्रों की सीखने की समझ प्रभावित करता है ।
तीसरा मुद्दा है, ज्यादातर परीक्षाओं का आदर्श चरित्र न होना, जिनमें मूल्यांकनकर्ताओं में कई भिन्नताएं होती हैं। इससे स्वाभाविक तौर पर हमारी कई बोर्ड परीक्षाओं की विश्वसनीयता कठघरे में आ जाती है। एनसीएफ-एसई इन तमाम मुद्दों के समाधान के लिए बोर्ड परीक्षाओं में महत्वपूर्ण बदलाव करती है। ये परिवर्तन एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और सीखने के मानकों, सामग्री, पाठ्य-पुस्तकों, शैक्षणिक तरीकों जैसे पाठ्यक्रम के समग्र दृष्टिकोण को महत्व देते हैं। इसके तहत परीक्षार्थियों पर बोर्ड परीक्षा का बोझ कई रूपों में कम किया जाएगा। मसलन, परीक्षाओं को ‘आसान’ और ‘हल्का’ बनाया जाएगा। यहां यह मत समझिए कि परीक्षा की कठोरता कम की जाएगी, बल्कि उसमें तथ्यों पर जोर देने के बजाय योग्यता को जांचा जाएगा। इससे विषय सामग्री का भार हल्का हो जाएगा। इसी तरह, सभी बोर्ड परीक्षाएं साल में कम से कम दो बार आयोजित की जाएंगी, जिनमें छात्रों को दूसरी बार परीक्षा देने और सुधार करने का विकल्प मिलेगा। इसमें केवल सर्वोत्तम अंक ही मार्कशीट में लिखे जाएंगे। इसके बाद हम ‘ऑन डिमांड’ परीक्षाओं की ओर भी बढ़ेंगे, यानी परीक्षार्थी जब भी तैयार हो जाए, तब परीक्षा होगी। यह कदम उनमें तनाव कम करने में मददगार साबित होगा।
जैसा कि इस रूपरेखा में कहा गया है, बोर्ड परीक्षाएं माध्यमिक चरण के लिए योग्यताओं का आकलन करेंगी। इसे सुनिश्चित करने के लिए परीक्षाओं के तमाम पहलुओं पर काम किया जाएगा, जिनमें प्रश्न-पत्र तैयार करने और कॉपी जांचने वालों का सख्ती से चयन और उनका उचित प्रशिक्षण भी शामिल है। बेशक, उच्च शिक्षा में प्रवेश के तरीके इस रूपरेखा के दायरे में नहीं हैं, लेकिन यह इस मसले को भी सामने लाता है। सच यही है कि भारत में उच्च गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी है, जिसके कारण उस स्तर पर प्रवेश की प्रक्रिया में सबसे उपयुक्त के चयन के लिए अनगिनत दावेदारों की दावेदारी खारिज कर दी जाती है। चूंकि बोर्ड परीक्षाओं में सीखने की क्षमता का आकलन किए जाने के कारण सभी छात्र बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, ऐसे में, बेहतर उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के क्रम में बहुतों को निराश होना पड़ सकता है। इस संकट का समाधान निस्संदेह स्कूली शिक्षा में नहीं है, मगर राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में इन चुनौतियों से पार पाने की क्षमता है। उसके कुछ प्रावधान तो लागू भी कर दिए गए हैं, जैसे- ‘कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट’ की शुरुआत।
हालांकि, यहां मैंने सिर्फ बोर्ड परीक्षाओं की चर्चा की है, लेकिन एनसीएफ में सभी कक्षाओं की परीक्षाओं के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश दिए गए हैं। हमें वास्तविक रूप से सीखने और उनका मूल्यांकन करने के लिए इन परीक्षाओं में बदलाव और सुधार करना ही चाहिए।