वाराणसी: पं. साजन मिश्र-स्वरांश मिश्र के गायन से हुई संगीत महायज्ञ की पूर्णाहुति

वाराणसी। प्रभु हनुमान जी के जयन्ती पर आयोजित संकट मोचन संगीत समारोह के शताब्दी वर्ष की सप्तम निशा में गायन, वादन व नृत्य की धारा में संगीत रसिक सराबोर हो गये। आज अंतिम निशा में रसिकों का जमावडा कुछ अधिक ही दिखा, कारण था वर्ष भर की संगीत ऊर्जा को सहेज लेना शायद ही विश्व का कोई ऐसा सम्मेलन हो जहां आयोजन समाप्त होने पर लोगों में खुशी होती है, लेकिन यही एक मात्र ऐसा आयोजन है जहां आयोजन का पटाक्षेप होने पर लोग अश्रपूरित नेत्रों से लौटते हैं। क्या है प्रभु की महिमा, जिस कारण इस आयोजन को संगीत तीर्थ कहा जाता है।

सप्तम निशा की पहली प्रस्तुति में ओडिसी नृत्य का पुष्प खिला पं. रतिकांत महापात्र, सुजाता महापात्र के ओडिसी नृत्यनाटिका से। सृजन संस्था के कलाकारों ने शुरू में रतिकांत महापात्र के निर्देशन में श्री रामभजन से प्रस्तुति का श्री गणेश कर तुलसीदास के पद के पश्चात कई और अध्याय की प्रस्तुति कर नृत्य का समापन किया। रतिकांत महापात्र के नृत्य के बारे में कुछल अलग सो बोलना बेमानी होगी, ओडिसी नृत्य के भावों का ऐसा मोहक प्रदर्शन असंभव है।

इन्होंने ओडिसी नृत्य को ओडियो संगीत पर जीया। दूसरी प्रस्तुति में संगीत विद्वान डा. राजेश्वर आचार्य ने अपनी ओजपूर्ण आवाज से राग जोग की अवतारणा कर यह जता दिया कि शेर भले ही बूढा हो जाय, दहाडना नहीं भूलता। इन्होंने तीन ताल निबद्ध बंदिश में जोग में एक प्रभाव छोडा। इन्होंने भगवान श्री कृष्ण के भजन मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो से गायन को विराम दिया। इन्होंने राग जोग में तराना गाकर ख्याल गायकी की शास्त्रीयता को बरकरार रखा। इनके साथ प्रीतेश आचार्य, शिवानी आचार्य व बच्चा बाबू ने गायन में साथ दिया। इनके साथ तबले पर नंद किशोर मिश्र व संवादिनी पर श्री अशोक झा ने कुशल भागीदारी निभायी।

अगली प्रस्तुति में मुंबई से पधारे एस आकाश व श्री यज्ञेश ने बांसुरी व वायलिन पर युगलबंदी प्रस्तुत किया। इन लोगों ने राग गोरख कल्याण में आलापचारी के पश्चात एक ताल व तीन ताल में गतकारी कर वादन के प्रथम अध्याय का समापन किया। आकाश ने एक धुन रंग डारी गुलाबी बजाकर अपने वादन को पूर्ण विराम दिया। इन दोनों की प्रस्तुति प्रभावशाली रही इनके साथ तबले पर पं. मुकुंद राजदेव ने लाजवाब सहभागिता की। अगली प्रस्तुति में पं. विश्वनाथ का गायन हुआ इन्होंने राग जोग कौंस में एक ताल व तीन ताल में बंदिशें गाकर प्रस्तुति को विराम दिया। इनके साथ परवेज हुसैन ने तबला और दिनकर शर्मा ने संवादिनी पर संगत किया इनका गायन प्रभावशाली रहा।

कार्यक्रम की अगली प्रस्तुति जिसका श्रोताओं को बेसब्री से इंतजार था प्रख्यात पाश्र्व गायक सोनू निगम ने कुछ फिल्मी गीत गाकर अपनी उपस्थिति जतायी। इनके गायन से श्रोताओं में निराशा दिखी। सोनू निगम गुलाम मुस्तफा खां के शागिर्द हैं, कुछ बडी उम्मीदें लोगों को थीं, जिस पर तुषारापात हुआ। इसके पश्चात बेंगलुरू से पधारे विश्व विख्यात वायलिन वादक डा. एल. सुब्रह्मण्यम ने वायलिन पर कई कर्नाटक रागों व रचनाओं को बजाकर अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। इनके वादन को सुनना एक अद्भुत अनुभूति है, जिसे श्रोताओं ने अनुभव किया। इनके साथ वी.वी.रमणमूर्ति ने मृदंगम पर, जी. सत्यसाई ने मोरसिंग पर तथा पं. संजू सहाय ने तबले पर खुबसूरत युगलबंदी की।

अंतिम निशा की अगली प्रस्तुति में विदुषी कंकणा बनर्जी ने राग भटियार में झुमरा व तीन ताल में तराना गाने के पश्चात एक भजन से गायनको विराम दिया। इनके साथ सुभाष कांतिदास, तबले पर तथा मोहित साहनी ने संवादिनी पर साथ दिया। इसी क्रम में विख्यात तबला वादक बनारस घराने के प्रतिनिधि कलाकार पं. संजू सहाय ने तीन ताल निबद्द्ध एकल तबला वादन प्रस्तुत किया। इन्होंने बनारस घराने की वह तमाम चीजें बजायीं, जिसके लिए बनारस की विश्व में ख्याति है।

इनके साथ संवादिनी पर पं. धर्मनाथ मिश्र व सारंगी पर विनायक सहाय ने साथ दिया। महायज्ञ की पूर्णाहुति हुआ राग भैरव के स्वर मंत्र से. पं. साजन मिश्र व पुत्र स्वरांश मिश्र ने भोर का प्रथम राग भैरव से गायन कर परवान चढाते हुए और कई रागों व भजन से गायन को विराम दिया। इनके साथ पं. संजू सहाय ने तबलेपर पं. धर्मनाथ मिश्र ने संवादिनी पर तथा विनायक सहाय ने सारंगी पर इनका साथ देकर इस वर्ष के लिए विराम रेखा खींची। सप्तायव्यापी कार्यक्रम का संचालन पं. हरिराम द्विवेदी, साधना श्रीवास्तव (दिल्ली), चन्द्रिमा राय (कोलकाता) जगदिश्वरी व सौरभ चक्रवर्ती ने किया।

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