159 सीटों पर सीधा मुकाबला, 71 पर त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय संघर्ष  

 चुनाव अभियान के अंतिम चरण में प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटा जोड़ स्थिति दिख रही है। पहली बार इन चुनावों में 71 सीटों पर त्रिकोणीय, चतुष्कोणीय यहां तक कि पंचकोणीय संघर्ष की स्थिति है। पिछली बार ऐसा संघर्ष 60 सीटों पर देखा गया था। प्रदेश में 159 ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। कांग्रेस के 39 भाजपा के 35 बागी प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने 47 जबकि बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 170 के लगभग उम्मीदवार उतारे हैं। इन दोनों दलों का गठबंधन है। इनके अलावा आम आदमी पार्टी और जय आदिवासी युवा संगठन यानी जयस के भी प्रत्याशी मैदान में हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईआईएम ने इस बार केवल दो सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। प्रदेश में 47 सीटें आदिवासियों के लिए 35 सीटें दलितों के लिए सुरक्षित हैं। इन दोनों के अलावा प्रदेश के लगभग 60 लाख मुस्लिम 25 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हेँ। इधर, मजबूत संगठन होने के बावजूद भाजपा के चुनाव अभियान में जोश नजर हनीं आ रहा है। हालांकि उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है, दूसरी ओर एंटी इनकंबेंसी के चलते कांग्रेस ने मैदान पकड़ लिया है।

प्रियंका गांधी धार जिले की कुक्षी विधानसभा क्षेत्र के नहीं और इंदौर क्षेत्र क्रमांक पाँच के रोबोट चौराहे पर सभा लेने वाली है। उनके साथ कमलनाथ भी होंगे। कुक्षी में सभा लेकर प्रियंका अलीराजपुर, झाबुआ और धार जिले की लगभग 12 सीटों को प्रभावित करेंगी। इंदौर क्षेत्र क्रमांक पाँच में उनके समर्थक सत्यनारायण पटेल कांग्रेस के प्रत्याशी हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा से उनकी टीम के सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंदौरा की सभा के माध्यम से प्रियंका गांधी जिले की सभी नौ सीटों को प्रभावित करने की कोशिश करेंगी। प्रदेश में इतना कांटा जोड़ संघर्ष है कि कांग्रेस और भाजपा में से जो दल अंतिम तीन दिनों में बाजी मारेगा, वल्लभ भवन की सत्ता उसी की होगी। अंतिम तीन दिनों में राजनीतिक दलों को कोर इलेक्शन मैनेजमेंट करना होता है। इसमें मतदान केंद्र प्रबंधन के अलावा घर-घर जाकर मतदाताओं का सर्वेक्षण और अपने मतदाताओं की पहचान कर उनका वोट डलवाना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है। फ्लोटिंग वोटर्स भी अंतिम दिनों की तैयारियों को देखकर प्रभावित होते हैं। यही फ्लोटिंग वोटर्स यानी हवा का रुख देकर मतदान करने वाले मतदाता जीत की गारंटी होते हैं। इसी वजह से सभी दलों की कोशिश होती है कि अंतिम समय तक माहौल बनाकर रखा जाए। भाजपा और कांग्रेस के बीच 2018 में इसी तरह की लड़ाई हुई थी। तब कांग्रेस ने भाजपा के मुकाबले एक फीसदी कम मत पाने के बावजूद 114 सीटें जीत ली थीं जबकि भाजपा को 109 सीटें मिली थी।

भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले की स्थिति मालवा और निमाड़ अंचल के अलावा भोपाल और नर्मदा पुरम क्षेत्र में अधिक है महाकौशल की सभी सीओं पर भी दोनों दलों के बीच सीधा मुकाबला है जबकि विंध्य बघेलखंड बुंदेलखंड और ग्वालियर चंबल अंचल में त्रिकोणीय मुकाबले और कहीं-कहीं पंचकोणीय संघर्ष है। दोनों दलों के सबसे अधिक बागी इन्हीं क्षेत्रों में लड़ रहे हैं। महाकौशल को छोड़ दिया जाए तो विशेष तीनों अंचलों में जातिवाद है। उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती का इन्हीं तीन अंचलों में सबसे अधिक प्रभाव है। मायावती प्रदेश में दो सभाएं करेंगी। जबकि अखिलेश यादव के प्रदेश में चार दौरे हो चुके हें। इनके अलावा अरविंद केजरीवाल भी पूरे दमखम के साथ अपनी पार्टी को चुनाव मैदान में मजबूती देने के लिए उतर गए हैं।  

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