श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद : अमीन रिपोर्ट के आदेश के बाद रिट भी जारी, अब ईदगाह का सर्वे करेगी टीम

मथुरा। उत्तर प्रदेश के मथुरा की एक स्थानीय अदालत ने सोमवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद में मौके पर पहुंच कर मुआयने के लिए अमीन रिट जारी कर दी। मथुरा जनपद के सिविल जज सीनियर डिवीजन की फास्ट ट्रैक अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद में शुक्रवार को अमीन रिपोर्ट तलब किए जाने के बाद सोमवार को इस संबंध में अपेक्षित कार्यवाही के लिए अमीन को आदेश पत्र जारी कर दिया। इसके बाद उम्मीद की जा रही है कि अमीन अब जल्द ही ईदगाह का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट अदालत को सौपेंगे।

इसके लिए उन्हें 17 अप्रैल तक का समय दिया गया है। इस मामले में वादी, हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के पैरोकार शैलेश दुबे ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह प्रकरण में सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) नीरज गौड़ ने शुक्रवार को आठ दिसम्बर को दिए गए आदेश के अनुपालन के आदेश दिए थे, जिसके संबंध में सोमवार को अमीन शिशुपाल यादव ने अदालत पहुंचकर आदेश पत्र हासिल कर लिया।

उन्होंने बताया कि अब अमीन अन्य सरकारी कार्यों के बीच दिन तय कर सहायक के साथ मौके पर पहुंच कर मुआयना करेगा और जैसी भी स्थिति ईदगाह परिसर में दिखाई देगी उसकी एक रिपोर्ट तैयार कर न्यायालय में 17 अप्रैल से पहले पेश करेगा।

जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) संजय गौड़ ने हालिया कार्यवाही की पुष्टि करते हुए स्पष्ट किया कि सोमवार को नया कुछ नहीं हुआ है। न्यायालय ने शुक्रवार के आदेश के परिपालन में ही उक्त रिट आदेश अमीन को दिया है । अब अमीन अपनी सुविधानुसार निरीक्षण का दिन और समय तय कर इस मामले में संबंधित को अपेक्षित जानकारी देगा।

दूसरी ओर, प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता एवं ईदगाह इंतजामिया कमेटी के सचिव तनवीर अहमद ने बताया कि हमने शनिवार को भी इस प्रकार के आदेश की खिलाफत की थी तथा सोमवार को भी इस संबंध में अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए उक्त आदेश को निरस्त किए जाने की मांग की है। परंतु अभी अदालत ने इस संबंध में कोई निर्णय नहीं दिया है।

उन्होंने कहा कि हमारी मांग पहले से ही चली आ रही है कि चूंकि इस प्रकार के वादों में कोई भी वादकारी ऐसा नहीं है, जो सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा हो, अथवा उसका किसी भी पक्ष से कोई सीधा लेना-देना हो। ऐसे में उनके द्वारा इस प्रकार के दावे किया जाना ही गलत है। इसलिए पहले से इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि यह मामला सुने जाने योग्य है, अथवा नहीं।

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