Rights of elderly people -देश में 78% सीनियर सिटीजंस के पास पेंशन का सहारा नहीं है। 60 साल से ऊपर के केवल 18% लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है। बुजुर्गों के जीवन-यापन के मासिक खर्च का 13% हिस्सा हेल्थ से जुड़े खर्चों का है। इन बातों हवाला देते हुए नीति आयोग ने कहा है कि रिटायरमेंट के बाद बुजुर्गों की आर्थिक स्थिति खराब होने का खतरा है, लिहाजा सरकार को बुजुर्गों के लिए अनिवार्य बचत योजना, कर सुधारों और हाउसिंग के मोर्चे पर कदम उठाने चाहिए। नीति आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की है, ‘सीनियर केयर रिफॉम्स इन इंडिया – रीइमैजिनिंग द सीनियर केयर पैराडाइम।’ इसमें कहा गया है कि बुजुर्गों के लिए एक नैशनल पोर्टल बनाया जाना चाहिए, जिसके जरिए वे सेवाओं का उपयोग कर सकें। इसमें कहा गया कि अभी 12.8% लोग 60 साल से ज्यादा उम्र के हैं। साल 2031 तक ऐसे करीब 13.2% लोग होंगे और 2050 तक आंकड़ा लगभग 19% हो जाएगा। 2021 से 2031 के बीच डिपेंडेंसी रेशियो 15.7% से बढ़कर 20.1% हो जाने का अनुमान जताते हुए कहा गया कि इससे वर्किंग पॉपुलेशन की आर्थिक जिम्मेदारियां बढ़ेंगी।
Rights of elderly people -also read –Healthy diet -मानव आहार में फल एवं सब्जियों का महत्व- डॉ मनोज कुमार सिंह
गौरतलब है कि बुजुर्गों की आज की हालात देखते हुए ही नीति आयोग ने यह संज्ञान लेते हुए सरकार पर जोर दिया है । ये कहानियां अक्सर अख़बारों में पढ़ी जाती है कि वृद्धाश्रम में रहने वाली 75 वर्षीय एक वृद्ध महिला के दो बेटे थे। बड़े बेटे ने यह कहकर अपनी माँ का सामान घर से बाहर फेंक दिया कि मेरे घर में तुम्हारे लिये जगह नहीं है, और न ही तुम्हारे खाने के लिये दो वक्त की रोटी है। साथ ही, छोटे बेटे और बहू ने भी कह दिया कि, ‘कहीं भी चली जाओ लेकिन मेरे घर पर मत आना।’ दूसरी ओर, एक बेटा अपनी बूढ़ी माँ को तीर्थस्थान पर घुमाने के बहाने छोड़कर चला गया, जिससे माँ दोबारा घर वापस न आ सके। वहीं, एक 86 वर्षीय वृद्धा के चार-चार करोड़पति बेटों ने यह कहकर अपनी माँ को घर से निकाल दिया कि ‘तुमसे बदबू आती है’।
ये हृदय विदारक कहानियाँ केवल इन वृद्ध माताओं की नहीं हैं, बल्कि वृद्धाश्रम में रह रहे सभी बूढ़े माँ-बापों की ऐसी ही अपनी-अपनी दास्तान हैं जिन्हें सुनकर किसी भी व्यक्ति की आँखों में आँसू आ जाएँगे। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इन बूढ़े माँ-बापों को ऐसी हालत तक पहुँचाने वाले लोग कहीं बाहर से नहीं, बल्कि हमारे-आपके बीच से ही आते हैं। जिनके कारण धरती पर भगवान का रूप कहे जाने वाले माँ-बाप को अपने बच्चों के होते हुए दर-दर भटकना पड़ता है। कई बार तो माँ-बाप अपनी संतान के सामने इतने असहाय हो जाते हैं कि थक-हारकर वे अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर लेते हैं।
वे बच्चे जिनके लिये मां अपनी सभी इच्छाओं का त्याग कर देती है; उनकी खुशी के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहती है; जिनके लिये पिता दिन-रात पसीना बहाता है; जिन्हें उँगली पकड़कर चलना सिखाता है; अपने पैरों पर खड़े होते ही सब कुछ भूल जाते हैं। वृद्ध हो जाने पर जब माँ-बाप को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है तब उन्हीं बच्चों को अपने माता-पिता बोझ लगने लगते हैं, और शायद इसीलिए आज देश में वृद्धाश्रम कम पड़ रहे हैं।
बताया जाता है कि भारत में बुजुर्गों के परित्याग का एक मुख्य कारण बदलती सामाजिक गतिशीलता और पारिवारिक संरचना है। संयुक्त परिवारों से छोटे परिवारों में बदलाव अक्सर बुजुर्ग माता-पिता या रिश्तेदारों को अलग-थलग और असमर्थित बना देता है। इसके अलावा, बदलते सामाजिक मानदंडों और युवा पीढ़ी पर बढ़ते वित्तीय दबाव के कारण परिवार के बुजुर्ग सदस्यों की देखभाल के लिए संसाधनों या इच्छा की कमी हो सकती है। इसका परिणाम परित्याग है।
बुजुर्गों के परित्याग में योगदान देने वाला एक अन्य कारक आर्थिक चुनौतियाँ हैं। गरीबी , बेरोजगारी और बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच के कारण बुजुर्गों को उचित देखभाल प्रदान करना चुनौतीपूर्ण हो गया है। सीमित वित्त के साथ, परिवार अक्सर अपने बुजुर्ग प्रियजनों की स्वास्थ्य संबंधी और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने में खुद को असमर्थ पाते हैं। कुछ परिवार हताशा के कारण अपने बुजुर्ग रिश्तेदारों को भी त्याग देते हैं।
भारत के कई हिस्सों में बुजुर्गों के अधिकारों और जरूरतों के बारे में जागरूकता की कमी है। बुजुर्ग व्यक्तियों को सामाजिक कलंक, भेदभाव और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप परित्याग हो रहा है। सहानुभूति की कमी बुजुर्गों के प्रति तिरस्कारपूर्ण रवैये को बढ़ावा देती है, जिसके परिणामस्वरूप अलगाव होता है। इन मुद्दों के समाधान के लिए जागरूकता, समाज को संवेदनशील बनाने और युवा पीढ़ी को बुजुर्गों की देखभाल के मूल्य और महत्व के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
भारत में बुजुर्गों के परित्याग को संबोधित करने में स्वयंसेवा और सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। व्यक्ति, समूह और संगठन स्वयंसेवी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं। इसमें सहयोग प्रदान करना, मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित करना और सहायता सेवाएँ प्रदान करना शामिल है। बुजुर्ग लोगों के साथ जुड़कर, स्वयंसेवक उनके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। इससे उन्हें अकेलेपन से निपटने और अपनेपन की भावना विकसित करने में मदद मिलती है। यह युवा और वृद्ध के बीच की दूरी को पाटने में भी मदद कर सकता है। स्कूल, कॉलेज और सामुदायिक केंद्र ऐसे कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं जो बुजुर्गों के प्रति समझ और सहानुभूति को बढ़ावा देना जरुरी हैं। इन पहलों से न केवल बुजुर्गों को लाभ हो सकता है बल्कि एक दयालु और समावेशी समाज का निर्माण भी होता है जो वृद्ध व्यक्तियों के ज्ञान और अनुभवों को महत्व देता है।
उम्र बढ़ने और बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े कलंक और गलतफहमियों को दूर करने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान महत्वपूर्ण हैं। शैक्षणिक संस्थान छात्रों को बुजुर्गों के सामने आने वाली चुनौतियों के प्रति संवेदनशील बना सकते हैं। वे उन्हें देखभाल और सहायता प्रदान करने के महत्व पर भी प्रकाश डाल सकते हैं। मीडिया प्लेटफॉर्म परित्यक्त बुजुर्ग व्यक्तियों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। टेलीविजन कार्यक्रम, वृत्तचित्र और सोशल मीडिया अभियान वास्तविक जीवन की कहानियों को उजागर कर सकते हैं। उनमें आँकड़े और कार्रवाई करने की आवश्यकता भी शामिल हो सकती है। कहानी कहने के माध्यम से, ये माध्यम सहानुभूति पैदा कर सकते हैं और व्यक्तियों को कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यह धन उगाहने, स्वयंसेवा करने या गैर सरकारी संगठनों का समर्थन करने के माध्यम से हो सकता है।
अच्छी तरह से सुसज्जित दीर्घकालिक देखभाल सुविधाओं और पुनर्वास केंद्रों की स्थापना से परित्यक्त बुजुर्गों के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान किया जा सकता है। इन सुविधाओं में समग्र देखभाल, चिकित्सा सहायता, भावनात्मक परामर्श, मनोरंजक गतिविधियाँ और सामाजिककरण के अवसर शामिल होने चाहिए।सरकार, गैर सरकारी संगठनों और निजी संगठनों के बीच सहयोग से स्थायी देखभाल मॉडल तैयार किए जा सकते हैं जो बुजुर्गों की भलाई और गरिमा सुनिश्चित करते हैं। गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करने के लिए पर्याप्त स्टाफिंग, देखभाल करने वालों के लिए विशेष प्रशिक्षण और इन सुविधाओं की नियमित निगरानी आवश्यक है।
भारत में बुजुर्गों का परित्याग एक चिंताजनक मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। अंतर्निहित कारणों को समझना और फिर उन पहलों का समर्थन करना महत्वपूर्ण है जो परित्यक्त बुजुर्ग व्यक्तियों को सहायता प्रदान करते हैं। इस तरह, हम सामूहिक रूप से अधिक दयालु समाज की दिशा में काम कर सकते हैं। धन उगाही, गैर सरकारी संगठनों को दान और क्राउडफंडिंग अभियानों में भागीदारी बदलाव लाने और यह सुनिश्चित करने के शक्तिशाली तरीके हैं कि बुजुर्ग पीछे न रहें। बुजुर्ग नागरिकों की देखभाल करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है जिन्होंने हमारे परिवारों के विकास और कल्याण में योगदान दिया है। इन तरीकों को अपनाकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके सुनहरे साल सम्मान, सम्मान और प्रेम के साथ व्यतीत हों।
नीति आयोग ने बुजुर्गो का जीवन सही बनाने के लिए कहा है कि जो लोग अफोर्ड कर सकें, उनके लिए अनिवार्य सेविंग्स प्लान पर जोर देते रहना चाहिए ।‘भारत में सोशल सिक्योरिटी फ्रेमवर्क का दायरा सीमित है। अधिकतर बुजुर्ग अपनी बचत से होने वाली इनकम पर निर्भर हैं, लेकिन ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव से उनकी इनकम प्रभावित होती है और कभी-कभी वह उनके जीवन-यापन के लिए नाकाफी हो जाती है। लिहाजा एक रेगुलेटरी मैकेनिजम की जरूरत है जिससे बुजुर्गों की जमा रकम पर ब्याज दर की एक तर्कसंगत निचली सीमा तय हो सके।’ आयोग ने कहा है कि बुजुर्ग महिलाओं को और रियायत देने से उनकी माली हालत बेहतर करने में मदद मिलेगी। रिपोर्ट में कहा गया, ‘सरकार को रिवर्स मॉर्गेज के नियमों में जरूरी बदलाव करने चाहिए ताकि बुजुर्गों के लिए लिक्विडिटी बढ़ सके।’ रिवर्स मॉर्गेज के तहत बुजुर्ग अपनी प्रॉपर्टी में रहते हुए उस पर लोन ले सकते हैं और एक तय मंथली इनकम हासिल कर सकते हैं।
टैक्स और जीएसटी रिफॉर्म्स की जरूरत बताते हुए आयोग ने कहा कि सीनियर सिटीजंस की देखभाल से जुड़े प्रॉडक्ट्स पर लगने वाले टैक्स में बदलाव की आवश्यकता है जिससे इन्हें अपनाने में आसानी हो और बुजुर्गों पर वित्तीय बोझ भी न पड़े। बुजुर्गों की जरूरतों का खयाल रखने वाले हाउसिंग सेक्टर और सीनियर केयर होम्स को बढ़ावा देने की जरूरत है। आयोग के मुताबिक, देश में 19% बुजुर्ग या तो तलाकशुदा हैं या उनके घरवालों ने उनको अलग कर दिया है। ट्रडिशनल हाउसिंग सिस्टम में बुजुर्गों को ध्यान में रखकर घर नहीं बनाए जाते और यह भी खयाल नहीं रखा जाता कि मेडिकल फैसिलिटी भी आसपास हो।
आयोग ने कहा है कि असंगठित क्षेत्र के बुजुर्गों को भी पेंशन सपोर्ट दिया जाना चाहिए। महंगाई को देखते हुए पेंशन की रकम में बदलाव की भी जरूरत है। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के दायरे में पूरी बुजुर्ग आबादी को शामिल कर लेना चाहिए और इसका कवरेज कई नॉन-मेडिकल चीजों तक बढ़ाते हुए घर में पड़ने वाली हेल्थ से जुड़ी जरूरतों को भी इसमें शामिल कर लेना चाहिए।