Pandit Deendayal Upadhyay – रामराज्य की परिकल्पना लिए केंद्र व प्रदेश की भाजपा सरकार के चिंतक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपनी सरकार में अपेक्षित होते दिखाई दे रहे है। हां यह 100 प्रतिशत सत्य है कि कलेट्रेट परिसर में बने मत्स्य विभाग कार्यालय के सामने तकरीबन 6 वर्षों से उपेक्षित पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति बिना अनावरण किये पर्यटन विभाग व भाजपा नेता का दंस झेल रही रही हैं। बताया तो यहां तक जा रहा है कि उपेक्षा इस कदर है कि तकरीबन पांच लाख की लागत से बने संगमरमर के पंडित दीनदयाल की मूर्ति ना तो संस्कृति व पर्यटन के जिम्मेदार बने सूचना विभाग ने इसकी सुध है और न हीं जिले के सांसद विधायक व जिम्मेदार नेता। बात दीगर है कि लाखों की लागत से बने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति को किसने मंगवा, इसके पीछे उसकी क्या भावना जुड़ी थी, इस पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति से भाजपा सरकार ने अब तक देश व प्रदेश भर में कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है।
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मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलकर सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से घोषित कर दिया। नाम की प्रभुता इस कदर है कि सरकार जगह-जगह अलख जगा कर पंडित दीनदयाल के कार्यों का गुणगान कर रही है, वहीं जिले के जिम्मेदार पर्यटन अधिकारी सांसद व विधायक 6 फीट की बनी लाखों की लागत से संगमरमर की मूर्ति को उपेक्षित कर मत्स्य विभाग की सटे दीवाल के किनारे फेंक दिया है। बताते हैं कि मत्स्य विभाग कार्यालय 6 वर्ष पहले दूरदर्शन लोकवाणी का कार्यालय हुआ करता था। जिसकी जिम्मेदार अधिकारी देश की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कार्यों से प्रेरित होकर स्वयं की खर्ची से तकरीबन 5 लाख की लागत से संगमरमर की मूर्ति मगवाई थी। बस उस अधिकारी की संवेदना उपाध्याय की इस मूर्ति से इस तरह जुड़ गई कि वह कलेक्ट्रेट के सामने ही इस मूर्ति का अनावरण करना चाहते थे जिसे जिला प्रशासन ने रोक दिया था। बताते है कि तब से मानसिक रूप से विक्षिप्त होकर अधिकारी तो चले गए और मूर्ति उस स्थान पर पड़ी रह गई। आज समय बदला सत्ता बतला फिर भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय मलार्पण के लिए आशाओं का पग निहार रहे हैं।