MP Elections 2023:-प्रधानमंत्री मोदी के विकास का दावा  कांग्रेस के  जातिगत जनगणना के  दांव का सामना कैसे कर पायेगा  ?

विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बीच प्रधानमंत्री मोदी के विकास के विकास के  दावे के सामने  कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का दांव चल दिया है।

MP Elections 2023:-मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बीच प्रधानमंत्री मोदी के विकास के विकास के  दावे के सामने  कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का दांव चल दिया है। कांग्रेस के अनुसार  कांग्रेस शासित सभी राज्यों में जातिगत सर्वे करवाया जाएगा। इस संबंध में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया है। इसके पहले बिहार में हाल में जारी हुए आंकड़ों के बाद जातिगत सर्वे पर राजनीति गरमा चुकी है। अब कांग्रेस ने ऐलान कर दिया है कि अपनी सत्ता वाले राज्यों में वो ये जनगणना करवाएगी। कुल मिलाकर इसे कांग्रेस की मजबूरी भी माना जा सकता है और कांग्रेस का गेम प्लान भी माना जा सकता है। कांग्रेस अच्छी तरह जानती है कि उसको जो वोट मिलता रहा है उसमें और ज्यादा विस्तार की गुंजाइश नहीं है। गुंजाइश तब बनेगी जब कोई एक नया वोट बैंक आगे से जुड़ेगा और वो ओबीसी जनगणना के माध्यम से ओबीसी और एमबीसी जो भी कैंप कहिए, एक्स्ट्रीम बैकवर्ड क्लास या मोस्ट बैकवर्ड, इनको अपने साथ मिलाए। अभी सीएसडीएस का एक सर्वे आया था जो बता रहा था कि पिछली बार कांग्रेस को 12 करोड़ वोट मिला था। 19% ज्यादा इस बार 2024 में मिल सकता है। लेकिन भाजपा  को भी 37% से बढ़कर 39 मिल सकता है और कांग्रेस के हिस्से में जो एक्स्ट्रा वोट जा रहा है वो विपक्ष से जा रहा है।

कांग्रेस चाहती है कि विपक्ष भाजपा  की झोली से उसकी गोद में वोट गिरे और इसके लिए ओबीसी की पॉलिटिक्स सबसे मुफीद है। इससे कांग्रेस की नजर में एक तीर से दो निशाने लगाए जा सकते हैं। एक भाजपा  का जो हिंदू वोट बैंक का पूरा जो ढांचा है, उसको तोड़ने में या कुछ ना कुछ उसमें सेंध लगाने की कोशिश की जा सकती है। जनवरी में राम मंदिर का भव्य उद्घाटन होगा और भाजपा  वहां परवान चढ़ेगी। उससे पहले ओबीसी वोट बैंक के जरिए सेंध लगाया जा सकता है। दूसरा, महिला आरक्षण का लाभ भाजपा  को उस रूप में नहीं मिले जिस रूप में भाजपा  चाहती है। इसीलिए ओबीसी महिला आरक्षण की बात भी कही गई है। कुल मिलाकर जाति धर्म को तोड़ती है। धर्म राजनीति को तोड़ता है। तो यहां पर कांग्रेस साफ तौर पर कहती है कि भाजपा  चाहती है कि एससी, एसटी, ओबीसी, हिंदू बनकर वोट दें। कांग्रेस चाहती है कि एससी, एसटी और ओबीसी, एससी, एसटी और ओबीसी बनकर वोट दें। तो इसलिए ये मुझे लगता है जातीय जनगणना की बात कही जा रही है। जितनी जिसकी हिस्सेदारी, उतना उसका हक।


दरअसल  इस मुद्दे को धर्म की राजनीति की काट के रूप में देखा जा रहा है। कहा तो यह जा रहा है कि भाजपा  इस में फंस चुकी है? इस मुद्दे को काउंटर करना मुश्किल होगा उसके लिए? क्योंकि  अगर विधानसभा चुनाव में अगर ये दांव चल गया तो लोकसभा चुनाव में भी ये बड़ा मुद्दा जरूर बनेगा?इसकी भी क्रोनोलोजी के रूप में देखा जा सकता है । एक तरफ भाजपा  के सुशील मोदी जैसे नेता कहते हैं कि ये जो जातीय जनगणना है, ये हमारा बच्चा है। हम ही ने सब काम किया। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी पहली रैली में पहला रिऐक्शन देते हैं कि इस तरह की जाति की राजनीति करके कांग्रेस और विपक्षी दल पाप कर रहे हैं। फिर एक दिन बाद वो बयान पलटते हैं और कहते हैं गरीब की जाति सबसे बड़ी जाति होती है। तीसरे दिन वो कहते हैं कि कांग्रेस क्या नहीं चाहती कि मुसलमानों को उनका हक मिले। क्या कांग्रेस मुसलमानों का हक छीनना चाहती है? जो वो कह रही है जितनी आबादी उसका हक।

हाल फ़िलहाल इससे पता लगता है कि मोदी जी को भी कोई तोड़ सूझ नहीं रहा। स्वाभाविक है कि भाजपा  विरोध भी नहीं कर सकती, उसे समर्थन करना ही पड़ेगा। हो सकता है कि लोकसभा चुनाव से पहले वो समर्थन की स्थिति में आ जाये। क्योंकि 1996 में भाजपा  को ओबीसी का करीब 22% वोट मिला था, जो 2019 में बढ़कर 44% हो गया। कांग्रेस को 22 से 23% वोट मिला था जो घटकर 15% हो गया। सामाजिक न्याय करने वाली पार्टियों को 54% वोट मिला था जो घटकर 41% हो गया। तो भाजपा  को तो ये 44% में से भी जो ईबीसी है या महा पिछड़े हैं, उनका 48% वोट मिला था। तो भाजपा  अच्छी तरह जानती है कि श्रवण जातियों के आधार पर या थोड़ा बहुत दलित हो गया, थोड़ा बहुत आदिवासी हो गया, इसके दम पर सत्ता में नहीं आया जा सकता। ओबीसी वोटबैंक एक बहुत बड़ा कैच है। इसका कैचमेंट एरिया बहुत ज्यादा है। तो भाजपा  स्वाभाविक तौर पर अभी तोड़ नहीं निकल पाई है। हालांकि कुछ लोग कह रहे हैं कि रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट की सिफारिशें वो स्वीकार सकती है। जिसमें ओबीसी के वर्गीकरण की बात की गयी है कि चार श्रेणियों में बांट दिया जाए और कोटा में कोटा हो जाए। 27% का कोटा जो है ओबीसी का उसके में से कोटे में कोटा हो जाए।

गौरतलब है कि  कांग्रेस शासित राज्यों में जातिगत जनगणना करवाने की बात तो कह रहे हैं, लेकिन कर्नाटक में तो उनकी सरकार 2014 -15 में ही ऐसा सर्वे करवा चुकी है। उसकी रिपोर्ट भी 2018 तक आ गई थी। पर आज तक उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। क्योकि   कर्नाटक को लेकर सिद्धारमैया का थोड़ा रिजर्वेशन माना जा रहा है ।  उसमें मोटे तौर पर सूत्र बता रहे हैं कि उस जातीय जनगणना में वोक्कालिगा और लिंगायतों की प्रतिशत उतनी नहीं है जितना अभी बताया जा रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि लिंगायत कहा जाता है 15 से 16% है, लेकिन उस जनगणना के हिसाब से शायद 10 से 12% है। वोक्कालिगा भी कम है। इसलिए एच डी कुमारास्वामी के समय भी ये रिपोर्ट के आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। हालांकि अब कर्नाटक को लेकर कांग्रेस का कहना है कि उचित समय पर उचित फैसला किया जाएगा। तो हो सकता है कि अभी राजस्थान में आज से आचार संहिता लागू हो गई। गहलोत जाते जाते जनगणना की बात कह चुके हैं। उसका कोई मतलब नहीं रह गया। इसका असर लेकिन ज्यादा हो रहा है। तो कांग्रेस को ये चीज़ ज्यादा सूट कर रही है। यदि बात करें इंडिया  गठबंधन के सहयोगियों कि तो साफ तौर पर  ममता बेनर्जी करीब करीब कह चुकी हैं कि वो जातीय सर्वे के खिलाफ़ हैं। ये बात उन्होंने मुंबई की बैठक के दौरान भी की थी और कॉर्डिनेशन कमिटी की जब चर्चा आयी थी तब भी ये बात कही थी। चक्कर क्या है कि पश्चिम बंगाल में सिर्फ 13% ओबीसी हैं और वहां पर मुसलमान 28 से 32% हैं। दूसरी जातियां हैं, आदिवासी भी हैं, दलित भी हैं। तो ममता अपने हिसाब से देख रही हैं। लेकिन कांग्रेस  ने भी जैसा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि लोकतंत्र है और सहमति की बात कही जाएगी। हालांकि एक दो पार्टियां तैयार नहीं है लेकिन मोटे तौर पर आम सहमति है। कांग्रेस साथ में है, डीएमके साथ में है। बड़ी पार्टियों में से नीतीश साथ में हैं। लालू साथ में हैं। अखिलेश यादव साथ में हैं।
लोकतंत्र में, सत्ता में आने के लिए, तो वहां ओबीसी बन्दों की गिनती कांग्रेस के लिए सामाजिक न्याय में यकीन करने वाले या राजनीति करने वाली पार्टियों के लिए बड़ी अहम हो जाती है। कर्नाटक का हिसाब सामने रखकर या इन राज्यों में अगर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में जीत जाती है कांग्रेस, तो यहां पर जातीय सर्वे वो जरूर करवाएगी। जिस ढंग से कांग्रेस  बार बार इसको मुख्य मुद्दा बनाने की बात कर रहे हैं, उसको देखकर तो यही कांग्रेस की नीति, रणनीति लगती है।

वैसे देखा जाय तो जातीय मतगणना के रूप में कांग्रेस को एक हथिया मिल गया है जिसे वह इस चुनाव में भुनाना चाहती है । यह वास्तव में एक पुरानी मांग है, जो इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि उपलब्ध डेटा-सेट 90 वर्ष पुराना है, जबकि जातियों को अक्सर कई कल्याणकारी कार्यक्रमों के आधार के रूप में लिया जाता है। राजनीतिक रूप से, भाजपा कथित तौर पर 2024 के चुनाव से पहले अपने हिंदुत्व अभियान के लिए एक संभावित चुनौती के डर से जातिगत जनगणना का विरोध करती रही है।जाति आधारित पार्टियां जाति आधारित जनगणना की प्रबल हिमायती रही हैं जिसका प्रभाव 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों  में देखने को मिलेगा ।

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