![Kill not only the effigy but also the Ravana inside.](https://unitedbharat.net/wp-content/uploads/2023/10/ravan-in-ramayana-780x470.jpg)
दशहरे पर क्या रावण के पुतले को जलाकर ही समाज और राष्ट्र को विसंगतियों से मुक्त किया जा सकेगा।ऐसा होता तो न जाने कितने बरस बीत गये रावण को जलाते हुए लेकिन समाज से हैवानियत दरिंदगी और अमानवीयता के किस्से गायब नही हुए।नकली रावण पर तो हर दशहरे पर तीर चलते रहे पर असली रावण को हम खुद के भीतर ही पालते पोसते रहे।विजयादशमी पर रामलीलाओं के जरिये मनोरंजन की भूमि जरूर तैयार की जाती रही है लेकिन उन लीलाओं से बहुत कुछ सीखने की जरूरत भी है।सत्य के प्रतीक राम का पूजक देश उनके दिखाये मार्ग पर कितना चल रहा है यह सोंचने की आवश्यकता है।रावण के पुतलों को जलाते हुए हम हर्षित मन से उसे निहारते हैं और असत्य अनाचार पर सत्य सदाचार की विजय का भाव लेकर घर आते हैं।अगले ही दिन से हम समाज को ठगने के गोरखधंधे में जुट जाते हैं।त्रेता के रावण को भगवान राम ने मार दिया,अब आज के रावणों का दमन कौन करेगा?सत्य अहिंसा प्रेम और करुणा के द्वारा असत्य अहंकार अनाचार और हिंसा को जीतने की पहल कहां से होगी?रावण तो राक्षस था
इसलिए उसमें तामसी प्रवृत्ति थी पर उनका क्या जो मनुष्य योनि में आकर दानवता की हद पार करने को उतावले हैं।मां सीता के हरण करने पर लंकेश लोकनिन्दा का पात्र बन गया,उससे आगे जाकर नारी समुदाय पर आज का समाज कितने कितने अत्याचारों की घटना में लिप्त दिखाई देता है फिर भी रावण को जलता देख ताली बजाता है और निज दोषों से नजरें फेरे बैठा है।नारी शक्ति की वंदना में सरकार भी अपनी ओर से तमाम कार्यक्रम कर रही है।नारी का सम्मान बढ़े इस नाते ही तो मिशन शक्ति के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।इन कार्यक्रमों का आयोजन भी इस बात की सिद्धि करता है कि नारी समाज प्रताड़ना और पिछड़ेपन के साथ साथ समाज की विकृत मानसिकता का शिकार है।जिससे उसे उबारने के लिए लोगों के मन में स्त्री सम्मान की भावना भरने की आवश्यकता है।भगवान राम ने मानव रुप में लीला की थी।जैसे उन्होंने साधारण मनुष्य का अभिनय किया वैसे ही मां जानकी साधारण स्त्री के रूप में ही दिखीं।रावण ने सीता के रूप में पराम्बा भगवती का हरण किया इसलिए वह लोकनिन्दित नही हुआ बल्कि उसने एक स्त्री का अपराध किया
वर्ल्ड कप 2023 में आज 23 अक्टूबर को पाकिस्तान और अफगानिस्तान की भिड़ंत होगी।https://t.co/LMxyfN9wW3#chennai #PAKISTANvsAFGHANISTAN #MAChidambaramstedium #chennaistedium #kricket #WorldCup23 #BCCI
— Ek Sandesh (@EkSandesh236986) October 23, 2023
इसलिए वह त्याज्य हो गया।वही स्त्री आज दहेज,दुष्कर्म,अशिक्षा,असमानता जैसी प्रताड़ना से दो चार हो रही है।आतंकवाद की घटनाओं में निरीहों की आए दिन मौतें होती हैं,बेकसूर मारे जाते हैं।कैसे कहें कि रावण का अन्त हो गया है।भाईचारे का खात्मा हो चुका है।हम हैं कि केवल रावण की ही गलती निकालने में अपना सारा विवेक इस्तेमाल करे जा रहे हैं कि रावण ने विभीषण को लात मार कर बाहर निकाल दिया।हमने कौन सा अपने भाइयों को गले ही लगा के रखा है।छोटी छोटी बातों पर तुनकते देर लगती है क्या?दशहरे में भरत मिलाप के दृश्यों पर आंसुओं की धारा से धरती का आंचल गीला करते हमें देर नही लगती है।लेकिन अपने भाइयों से छल कपट और द्वन्द करते हुए हम जिंदगी गुजारते जा रहे हैं। रावण आतंकी जरूर था लेकिन उसका भी एक चेहरा था।आज के आतताइयों का तो कोई चेहरा भी नही है।भरोसे वाले ही भरोसा तोड़ने पर आमादा हो चके हैं।रावण का कम से कम कोई इष्ट तो था जिसके प्रति वह अपनी श्रृद्धा समर्पित करता था।भगवान शिव की आराधना में वह सब कुछ भूल जाता था।उसके द्वारा तांडव स्तोत्र के गायन पर भोले बाबा झूमने लगते थे।उसकी भक्ति में अनन्यता थी।अपने इष्ट में वैसा अनुराग और अनन्यता अब कहीं दिखती है भला?अब तो भगवान बदले जा रहे हैं,सम्प्रदाय और धर्म बदले जा रहे हैं।भक्ति भी स्वार्थपरक हो गई।अपना काम बनाने के लिए कभी किसी दरबार में श्रृद्धा झुका दी कभी किसी दरबार में।मन की चंचलता तो ऐसी है कि पूजा में बैठे बैठे दुनिया भर का सैर सपाटा कर डालते हैं।रावण की जिंदगी में हमें सीखने के लिए बहुत कुछ मिलता है।वह प्रकांड पंडित था।भगवान राम ने समुद्र तट पर जब रामेश्वर भगवान की स्थापना की तो पूजा करवाने के लिए रावण को बुलाया।रावण ने एक बार भी मना नही किया और अपने शत्रु की पूजा को जाकर सम्पादित किया।जब कि वह जानता था कि शिवपूजा के बाद भगवान राम द्वारा उसका वध निश्चित है।कर्म कांड उसका कर्तव्य था,उसने उसका निर्वाह किया।दशहरा पर्व प्रभु श्री राम के चरित्रों में अवगाहन करने का निमित्त बनता है और हमारी सांस्कृतिक मूल्यों की पहचान को दृढ़ता प्रदान करता है।बुराइयों पर अच्छाइयों का तो विजय पर्व ही है जो निश्चित ही अच्छाइयों की दिशा में बढ़ने को प्रेरित करता है।हम रामलीला केवल मनोरंजन के लिए ही न देखें बल्कि उसमें छिपे संदेशों को जीने का प्रयत्न भी करें।दशहरे के रावण को मारने में हमारी जितनी रुचि दिखाई देती है उसी मन से समाज में बुराइयों के रूप में व्याप्त रावण का दहन भी जरुरी है।रावण आतंक,अभिमान,अन्धकार,अनाचार,अत्याचार और पापाचार का प्रतीक है।रावण छल कपट दंभ और क्रूरता का प्रतिनिधि पात्र है।समाज में जब तक इन दुष्प्रवृत्तियों का बोलबाला है तब तक यह कहने में कैसा गुरेज कि त्रेता में एक ही रावण था, अब तो अनेकों रावण समाज को गंदा करने पर तुले हैं।पुतले का रावण तो हर साल मरता है पर इन्सान के अन्दर बैठे बुराइयों का रावण मरने का नाम नही ले रहा है।यह विजयादशमी तो हर वर्ष देश मनाता है,इन्तजार है उस विजयादशमी का जब मनुष्य के अन्तस में सत्चरित्रों का राम अवतरित होकर बुराइयों के रावण का वध करे।