राजस्थान में आखिर पायलट कब  बनेंगे   मुख्यमंत्री ?

राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवारों की अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है। सचिन पायलट, अशोक गहलोत के नामों का ऐलान कर दिया गया है। राज्य कांग्रेस में सीट बंटवारे को लेकर घमासान देखा जा रहा है । गहलोत और पायलट के बीच पुरानी राइवलरी है। पायलट के  छह वर्ष तक प्रदेश अध्यक्ष बने रहने के दौरान उन्होंने प्रदेश में अपना एक अलग गुट खड़ा कर लिया है। इस गुट के माध्यम से व लगातार गहलोत को चुनौती देते रहे है, लेकिन पार्टी के भीतर ही रहकर। उसके बाद  उन्होंने पूरी तरह से बगावत कर दी  और खुलकर गहलोत को चुनौती देते  रहे है। यह राइवलरी उन्हें अपने पिता के ज़माने से मिली है । इससे पहले गहलोत और सीनियर पायलट यानि सचिन के पिता राजेश पायलट के बीच में भी हमेशा छतीस का आंकड़ा ही रहा। सीनियर पायलट ने उस दौर के युवा गहलोत के बजाय उस समय प्रदेश की राजनीति में अपना वर्चस्व रखने वाले वरिष्ठ नेताओं का साथ दिया। उन्होंने गहलोत को कभी नहीं गांठा। दो दशक में हालात बदल चुके है अब गहलोत पार्टी के वरिष्ठ नेता बन चुके है तो जूनियर पायलट भी एक युवा नेता के रूप में अपनी अलग छवि बना चुके है।  हाल के कुछ वर्षों में  उन्होंने पूरी तरह से बगावत कर दी है और खुलकर गहलोत को चुनौती देते  रहे है। 

परन्तु अशोक गहलोत के जादू की काफी समय से चर्चा हर ओर होती आ रही है। वह कहते तो हैं कि सचिन पायलट और उनमें बहुत प्रेम है, लेकिन फिर जो फैसले लेते हैं, उससे काफी कुछ सामने आ जाता है। साल 2018 के चुनाव में सचिन पायलट पार्टी प्रदेश अध्यक्ष थे। ऐसे में सभी को लग रहा था कि मुख्यमंत्री वही बनेंगे लेकिन अशोक गहलोत का जादू चला और वह मुख्यमंत्री  की कुर्सी पर बैठ गए ।

वहीं, जब कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जा रहा था तो भी अशोक गहलोत का नाम आगे चल रहा था, लेकिन वह राजस्थान मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते थे। ऐसे में उन्होंने पार्टी आलाकमान पर जादू चलाया और अध्यक्ष का पद बड़े सलीके से ठुकरा दिया। वहीं, सचिन पायलट को भी कभी मुख्यमंत्री दावेदार के आगे नहीं बढ़ने दिया।

हद तो तब हो गई जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की पहली सूची जारी होने के पहले बड़े ही नाजुक मोड़ पर अशोक गहलोत ने बड़ा दांव खेला है। उन्होंने कहा है कि वे तो मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना चाहते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें नहीं छोड़ना चाहती। शायद आगे भी नहीं छोड़ेगी, तो वे भी क्या करें …! तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके गहलोत के इस बयान के सियासी मायने बहुत बड़े माने जा रहा हैं। गहलोत ने यह बयान उस वक्त दिया है, जब राजस्थान की एक भी सीट पर उम्मीदवारी घोषित नहीं हुई थी  और टिकट फाइनल करने के लिए पांच दिन से मशक्कत चल रही थी । खास बात यह है कि गहलोत ने यह बयान नई दिल्ली में दिया है, जहां पर राजस्थान की राजनीति की धुरी अब आलाकमान बना हुआ है और कहा जा रहा है कि आलाकमान सचिन पायलट के समर्थन में कुछ सीटें फाइनल करना चाहता था । गहलोत के इस बयान के बाद पायलट सहित कांग्रेस में कई चेहरे सन्न हो गए । कोई चाहे उन्हें पद लोलुप कहे, लेकिन तस्वीर के तेवर यही हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपना परचम फहरा चुके हैं और संदेश भी साफ साफ दे दिया है कि फिर सरकार आई, तो मुख्यमंत्री वे ही बनेंगे। राजस्थान की राजनीति में इस बयान के बाद बड़ी हलचल है। गहलोत की ओर से तो अब यह सवाल ही नहीं रह गया है कि कांग्रेस की सरकार आई, तो अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा। राजस्थान कांग्रेस में निर्विवाद रूप से केवल दो ही नेता हैं, अशोक गहलोत और सचिन पायलट। पायलट खेमे में माना जा रहा है कि भले ही गहलोत ने कह दिया हो, लेकिन कांग्रेस की सरकार आई, तो आलाकमान ही मुख्यमंत्री बनाएगा, ऐसे में पायलट का नंबर लग सकता है। लेकिन बहुमत के आधार पर तो मुख्यमंत्री गहलोत ही होंगे, क्योंकि निश्चित तौर पर विधायक भी उन्हीं के ज्यादा होंगे, आखिर टिकट वे अपने लोगों को ही ज्यादा दिलवाने वाले हैं। फिर इस बार पूरा चुनाव ही वे अपने कंधों पर ढोए हुए जीत के रास्ते पर अग्रसर हैं। जहां तक पायलट की बात है तो इस चुनाव में कुछ कर ही नहीं रहे हैं, न उन पर कोई जिम्मेदारी है और न ही वे कोई जिम्मेदारी ले रहे हैं। उनके बारे में ऐसी धारणा बन रही है कि वे केवल मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, बस, और कुछ भी नहीं। मगर मेहनत कहीं नहीं दिख रही। ऐसे में सरकार के आने पर भले ही कहा जाए कि आलाकमान जिसे चाहेगा, मुख्यमंत्री भी वही होगा, लेकिन सच यही है कि गहलोत जिसे चाहेंगे, मुख्यमंत्री वही बनेगा, और गहलोत ने तो ऐलान कर ही दिया है कि कुर्सी उन्हें नहीं छोड़ना चाहती। राजस्थान में 156 सीटों के साथ फिर से सत्ता में आने की घोषणा मुख्यमंत्री गहलोत ने बहुत पहले ही कर दी थी, लेकिन असल में गहलोत की कोशिश है कि हर हाल में सीटें 100 के आसपास निकल जाएं, बाकी निर्दलीयों और छोटी पार्टियों के साथ जुगाड़ बनाकर सरकार बना लेंगे। और जुगाड़ में तो गहलोत माहिर हैं ही, जो कि पायलट के बस की बात नहीं है, यह सभी जानते हैं।

उधर, भाजपा  अपनी ताकत लगा रही है कि हर हाल में वसुंधरा राजे के बिना सत्ता में आ जाए, लेकिन वसुंधरा के बिना भाजपा  की नैया इतनी आसानी से पार लगती नहीं दिखती। राजे को कमान नहीं मिली है, तो फिर नाराजगी के इस दावानल में भाजपा  में अंतर्कलह के नुकसान की वजह से गहलोत को मुख्यमंत्री बनने से रोकना भी भाजपा  के लिए कोई आसान खेल नहीं होगा। अपने तीसरे कार्यकाल में गहलोत ने पूरे राजस्थान में जबरदस्त योजनाएं लाकर लाभकारी कार्यक्रम के जरिये लोगों के दिलों में जगह बना ली है और इसी वजह से राजस्थान में बड़ी तादाद में लोग गहलोत को ही फिर मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। एक बहुत बड़ा तबका सरकार से खुश हैं। इसी वजह से माना जा रहा है कि कांग्रेस की सरकार आई, तो अगले मुख्य़मंत्री फिर गहलोत ही होंगे। राजस्थान की राजनीति में ज्यादातर लोग मान रहे हैं कि कांग्रेस में आज की स्थिति में सबसे प्रबल दावेदार तो केवल अशोक गहलोत ही हैं, और वे ही अगले मुख्यमंत्री भी होंगे। बहुत संभव है कि आलाकमान को संदेश देने के लिए भी गहलोत ने नई दिल्ली में यह ऐलान किया हो।

दरअसल  कांग्रेस में लगातार पांच साल तक अपनी ही पार्टी की सरकार का विरोध करने के बाद सचिन पायलट अब शांत हैं, तथा केवल बयान दे रहे हैं कि अगली सरकार  फिर से कांग्रेस की आएगी। हालांकि सरकार लाने में उनकी मेहनत कहीं नहीं दिख रही। फिर भी ऐसा कहने के पीछे उनकी मंशा ये है कि लोगों को लगे कि आलाकमान की ताकत अभी भी उनके साथ है और वे बहुमत आने पर मुख्य़मंत्री बन जाएंगे। लेकिन विधानसभा के टिकट फाइनल होने से पहले ही गहलोत ने नई दिल्ली में बैठकर आलाकमान की नाक के नीचे ही कुर्सी उन्हें नहीं छोड़ती का ऐलान करके अपनी मंशा साफ कर दी है। गहलोत को राजनीति में जादूगर कहा जाता है। गहलोत ने इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में याद दिलाया कि मानेसर की बगावत के वक्त भी भाजपा  उनकी सरकार नहीं गिरा पाई, तो इसमें सीधे सीधे पायलट पर वार भी है क्योंकि उस बगावत के पीछे उनकी कोशिश थी कि कैसे भी करके गहलोत सरकार गिर जाए। मानेसर जाकर सरकार गिराने वाले पायलट के समर्थकों को भी टिकट दिलाने का वादा गहलोत कर चुके हैं, तो इसी से समझा जा सकता है कि उनका निशाना कहां है। गहलोत की कोशिश है कि टिकट ऐसे बंटे  कि उनके समर्थक विधायक ही सबसे ज्य़ादा जीतें तथा पूरा चुनाव सरकारी लाभकारी योजनाओं के बूते पर लड़ा जाए, ताकि सरकार फिर से कांग्रेस की ही बने। वैसे भी राजस्थान की राजनीतिक तस्वीर में फिलहाल हर तरफ गहलोत ही दिख रहे हैं और ऐसे में अगर कांग्रेस की सरकार फिर आई, तो गहलोत ही फिर से मुख्यमंत्री होंगे, यह बहुत आसान लग रहा है।

उधर वसुंधरा राजे को भाजपा  में दरकिनार करने का जो नुकसान होगा, उसका लाभ केवल गहलोत को ही मिल सकता है, यह भी सच्चाई है। पायलट तो वसुंधरा के विरोध में पदयात्रा, धरने व प्रदर्शन करके खुद के संबंध इस हद तक खराब कर चुके हैं कि वसुंधरा उनकी तरफ देखना भी नहीं चाहती। फिर, राजस्थान में गहलोत की छवि कांग्रेस में एक सर्व स्वीकार्य नेता की भी है, जो कि पायलट की नहीं है तथा गहलोत ही इस चुनाव को अपने कंधों पर उठाकर लड़ते हुए देख रहे हैं। आलाकमान को साधना उन्हें आता है, तथा कांग्रेस के सारे दिग्गज नेता भी उन्हीं के समर्थन में हैं, यही वजह है कि कांग्रेस सत्ता में आती है, तो गहलोत ही फिर मुख्यमंत्री होंगे। तो फिर जब कुर्सी उन्हें नहीं छोड़ रही तो गहलोत भी कुर्सी क्यों छोड़ें? पायलट को अभी लम्बा इंतजार करना पड़ेगा ।

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