बसपा को गठबंधन का हिस्सा बनाने को लेकर कांग्रेस चुस्त तो, सपा चुप

बसपा सुप्रीमों मायावती किसी भी पार्टी के साथ हाथ मिलाने को तैयार नहीं हैं.जिसके चलते राजनीति के गलियारो में हड़कम्प मचा हुआ है

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी बड़ा चुनावी फैक्टर बन गया है. बसपा सुप्रीमों मायावती किसी भी पार्टी के साथ हाथ मिलाने को तैयार नहीं हैं.जिसके चलते राजनीति के गलियारो में हड़कम्प मचा हुआ है.वैसे तो पिछले दो दशकों में बसपा लगातार कमजोर हुई है,लेकिन अभी भी उसके पास 14 फीसदी दलित वोट बैंक मौजूद है.इसी के चलते बसपा से सब हाथ मिलाना चाहते हैं,तो मायावती को भी अपनी इस ताकत पर गुमान है,जिसके चलते वह फंू-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही हैं,तो बसपा से हाथ मिलाने को इच्छुक नजर आ रहा एनडीए और आईएनडीआईए गठबंधन भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है,लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि दोनों गठबंधन के नेताओं ने हार मान ली हो,सूत्र बताते हैं कि गुपचुप तरीके से मायावती को अपने खेमे में लाने के लिए दोनों गठबंधन दलों के आकाओं द्वारा लखनऊ से लेकर दिल्ली तक में साथ जोड़ने की कोशिश की जा रही है. बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती के भाजपा और कांग्रेस गठबंधन से दूरी बनाकर चलने के चलते आईएनडीआईए गठबंधन को यूपी में लोकसभा की 80 सीटो पर करारा झटका लग सकता है.ऐसे में आईएनडीआईए एक बार फिर मायावती पर डोरे डालने में लग गया है.बसपा  नेत्री मायावती से गुपचुप तरीके से बातचीत की जा रही है. क्योंकि चुनाव जीतने के लिए इंडिया गठबंधन यूुपी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है.


    बताते चलें बसपा के बिना सपा-कांग्रेस एक साथ मिलकर 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ के देख चुके हैं जिसका कोई फायदा इन दोनों दलों को नहीं हुआ था. इसीलिए आपकी से मायावती को भी जोड़ने की कोशिश की जा रही है. बसपा को साथ लाने की कोशिशें में यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और बसपा के शीर्ष नेताओं के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था. अभी तक यह बातचीत अपने मुकाम तक तो नहीं पहुंच सकी थी, लेकिन तब से दोनों के बीच संवाद बना हुआ है.इसमें गांधी परिवार और उसके करीबी शामिल हैं. राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक पिछले महीने कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच गठबंधन को लेकर गुप्त रूप से चर्चा भी हो चुकी है। बसपा की ओर से उसके एक पूर्व सांसद की भी इस बातचीत में अहम भूमिका है।


    गौरतलब हो,उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा-कांग्रेस की गठबंधन की कोशिशें परवान नहीं चढ़ पाई थी. तब तय हुआ था कि विधानसभा की 125 सीटों पर कांग्रेस और शेष 278 सीटों पर बसपा लड़ेगी. खबरें लीक हुई और फिर सत्ता पक्ष की ओर से ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी गईं कि दोनों ही दलों को कदम पीछे खींचने पड़े. चुनाव के बाद राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से कहा भी था कि हम बसपा को आगे रखकर यूपी में विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, पर वह तैयार नहीं हुई। इस बार लोकसभा चुनाव के ऐन पहले ही आधिकारिक रूप से घोषणा करने की रणनीति है। दूसरी तरफ कहा यह भी जा रहा है कि क्या आईएनडीआई गठबंधन में बसपा के आने से सपा सहज रहेगी,इसका जबाव मुश्किल है,लेकिन कांग्रेस नेतृत्व, यूपी में बसपा को साथ लाने में ज्यादा रुचि ले रहा है। इसकी वजह है कि बसपा के पास अभी भी 14 फीसदी दलित वोट बैंक है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का बागेश्वर (उत्तराखंड) विधानसभा सीट को लेकर सपा के खिलाफ दिया गया बयान भी इसी कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है।
  बताया जा रहा है कि अजय राय ने यह बयान हाईकमान से इशारा मिलने के बाद ही दिया था। संभावना जताई जा रही है कि जैसे-जैसे कांग्रेस की बसपा के साथ बात आगे बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे इस तरह के और बयान भी आ सकते हैं। गांधी परिवार के नजदीकी नेता के मुताबिक वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ कांग्रेस के अनुभव अच्छे नहीं रहे। उस चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने की बात सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार कहते रहे, लेकिन 145 सीट देने के वादे के बावजूद कांग्रेस को 105 सीटें दी गईं। इसमें से करीब 10 सीटों पर सपा ने अपने प्रत्याशी को पंजे  पर चुनाव लड़वाया था.              
      बहराल, जिस तरह से आईएनडीआईए गठबंधन में बसपा को लाने की कोशिश की जा रही है,उससे बसपा  अप्पर हैंड में नजर आ रही है. बसपा यदि  कांग्रेस-सपा गठबंधन के साथ चुनाव लड़ती है तो वह अपनी मर्जी वाली सीटों पर चुनाव लड़ेगी और ऐसी सीटों की संख्या भी अधिक होगी. बसपा 20 से 25 सीटों तक के लिए अपनी दावेदारी पेश कर सकती है.बसपा की दावेदारी को ना करना सपा, कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. अगर वह बसपा को उसकी इच्छा के अनुसार सीट नहीं देती है.  बसपा के बगैर चुनाव लड़ने पर सपा-कांग्रेस गठबंधन को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.वहीं बसपा यदि भाजपा के साथ चली गई तो आईएएनडीआई के लिए लड़ाई और भी मुश्किल हो सकती है.

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