BRIJ BHUSHAN SHARAN SINGH :बृजभूषण के ‘दबदबे’ के आगे हारे पहलवान – अब आगे क्या होगा ?

BRIJ BHUSHAN SHARAN SINGH :देश की बहादुर बेटियां फिर रोईं और आरोपी बृजभूषण शरण सिंह एक बार फिर ठहाके लगाकर हंसे। मेडल जीतने वाले चैम्पियन पहलवानों ने कहा कि वो हार गए। अब कुश्ती में आने वाली पीढियों को बेटियों के सम्मान की लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी। बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि “दबदबा था, दबदबा है, और दबदबा बना रहेगा”। आंखों मे आंसू लिए साक्षी मलिक ने कुश्ती की रिंग में अब कभी न उतरने का ऐलान किया और बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि भारतीय कुश्ती पर 11 महीने से चल रहा राहु काल खत्म हो गया, अब रिंग में उनके मुकाबले कोई नहीं। गुरुवार को भारतीय कुश्ती फेडरेशन WFI के चुनाव हुए। बृजभूषण शरण सिंह ने अपने सारे मोहरों को चुनाव जिता दिया – अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, उपाध्क्ष, कोषाध्यक्ष, सचिव और कार्यकारिणी के सदस्य, सभी पदों पर बृजभूषण शरण सिंह के लोग जीते। हालांकि दावा ये किया जा रहा था कि अब बृजभूषण का फेडरेशन से कोई लेना देना नहीं है। विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और तमाम महिला पहलवानों ने बृजभूषण पर लड़कियों के साथ जोर-जबरदस्ती करने, उनका यौन शोषण करने के इल्जाम लगाए थे। फेडरेशन में वित्तीय और दूसरी गड़बडियों के आरोप लगाए थे। दिल्ली के जंतर मंतर पर दो-दो बार खिलाड़ी धरने पर बैठे, खेल मंत्री ने कई दौर की बातचीत की। बृजभूषण के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। भाजपा के बाहुबली सांसद को फेडरेशन और चुनाव से दूर रखने का भरोसा दिया गया था उसके बावजूद वो सब हुआ जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी ।

आखिरकार विरोध स्वरुप पहलवानों ने शांतिपूर्वक दूसरा रास्ता अपनाया । सबसे पहले ओलंपिक में देश के लिए मेडल लाने वाले रेसलर बजरंग पूनिया ने 2019 में मिला पद्मश्री सम्मान प्रधानमंत्री के घर के पास बाहर ही रख दिया। बजरंग ने सोशल मीडिया पोस्ट करके इस बात की जानकारी दी है। पूनिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी भी लिखी। पूनिया ने ये चिट्ठी भी X पर शेयर की है। बजरंग पूनिया ने पोस्ट के कैप्शन में लिखा, ‘मैं अपना पद्मश्री पुरस्कार प्रधानमंत्री जी को वापस लौटा रहा हूँ। कहने के लिए बस मेरा यह पत्र है। यही मेरी स्टेटमेंट है। उन्होंने मेडल लौटाने के बाद कहा कि मैंने ये सम्मान लेटर के ऊपर रख दिया है, जमीन पर नहीं रख सकते।

 

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  इससे पहले साक्षी मलिक रोते हुए  कहा था कि हम 40 दिनों तक सड़कों पर सोए और देश के कई हिस्सों से बहुत सारे लोग हमारा समर्थन करने आए। बूढ़ी महिलाएं आईं। ऐसे लोग भी आए, जिनके पास खाने-कमाने के लिए नहीं है। हम नहीं जीत पाए, लेकिन आप सभी का धन्यवाद। उन्होंने कहा कि हमने पूरे दिल से लड़ाई लड़ी, लेकिन WFI का अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का बिजनेस पार्टनर और करीबी सहयोगी संजय सिंह चुना जाता है तो मैं अपनी कुश्ती को त्यागती हूं। बृजभूषण नारे लगवा कर, मीडिया के सामने शेखी बघारकर, विरोध करने वाले पहलवानों को अपनी ताकत का अहसास करवा कर घर में वापस चले गए। उधर, विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक टीवी पर बृजभूषण की बातें देख रहे थे, उनकी आंखों में आंसू थे। तीनों पहलवान काफी हिम्मत जुटाकर कैमरों के सामने आए, बोलने की बहुत कोशिश की लेकिन दो मिनट से ज्यादा कोई नहीं बोल पाया। सबने कहा कि अब और हिम्मत नहीं है, अब उम्मीद नहीं है, हम हार गए, पता नहीं हमारे देश में न्याय कहां मिलता है, सारे दरवाजे तो खटखटा लिए, अब कहां जाएं, जो आरोपी, गुनहगार हैं, वो जीत के ठहाके लगा रहे हैं। हमारी बेबसी पर हंस रहे हैं, अब कुश्ती में लड़कियों का क्या होगा, वो नहीं जानते। साक्षी मलिक ने तो अपने जूते खोलकर टेबल पर रख दिए, रोते रोते बोलीं, अब कभी रिंग में नहीं उतरेंगी, कभी मैट पर दिखाई नहीं देंगी। इतना कहकर वह रोते हुए उठकर चली गईं। बृजभूषण ने जो कहा वो करके दिखा दिया। ये साबित कर दिया कि कुश्ती संघ में दबदबा तो उनका ही रहेगा लेकिन आज देश के लिए मेडल जीतने वाली बेटियों के आंसू देखकर हर किसी का दिल रोया होगा। यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह का अट्टहास देखकर सबको सिस्टम की बेबसी पर गुस्सा आया होगा।

सवाल ये है कि आखिर ये नौबत क्यों आई? जो पद्मश्री सम्मान देश ने बजरंग पुनिया को उनके देश के लिए जीते गए मेडल के लिए दिया। आखिर उसे हाथ में रखकर वापस करने आए एक पहलवान को इतना हताश और निराश क्यों कर दिया गया? 24 घंटे पहले ही रोते हुए साक्षी मलिक ने अपने रेसलिंग शूज प्रेस कॉन्फ्रेंस की टेबल पर ऱखकर पहले कुश्ती ही छोड़ देने का ऐलान किया था।

प्रधानमंत्री के नाम बजरंग पूनिया ने चिट्ठी लिखी। इसमें लिखा था कि बीती 21 दिसंबर को हुए कुश्ती संघ के चुनाव में बृजभूषण एक बार दोबारा काबिज हो गया है। उसने स्टेटमेंट दी कि ‘दबदबा है और दबदबा रहेगा’। महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोपी सरेआम दोबारा कुश्ती का प्रबंधन करने वाली इकाई पर अपना दबदबा होने का दावा कर रहा था। हम सभी की रात रोते हुए निकली। समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं, क्या करें और कैसे जीएं। इतना मान-सम्मान दिया सरकार ने, लोगों ने, क्या इसी सम्मान के बोझ तले दबकर घुटता रहूं। कारण सिर्फ एक ही है जिस कुश्ती के लिए ये सम्मान मिले, उसमें हमारी साथी महिला पहलवानों को अपनी सुरक्षा के लिए कुश्ती तक छोड़नी पड़ रही है। हम ‘सम्मानित पहलवान’ कुछ नहीं कर सके। महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं ‘सम्मानित’ बनकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाऊंगा। ऐसी जिंदगी कचोटेगी ताउम्र मुझे। इसलिए ये ‘सम्मान’ मैं आपको लौटा रहा हूं  …  आपका असम्मानित पहलवान बजरंग पूनिया ।

बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप लगाने वाले पहलवानों का दावा है कि जनवरी में बृजभूषण पर आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों की संख्या 19 थी। जो अप्रैल आते आते 7 रह गई, क्योंकि तीन महीने में बृजभूषण ने अपने दबाव से महिला पहलवानों को पैर वापस खींचने पर मजबूर कर दिया। पहलवान कहते हैं कि उन्हें भरोसा दिया गया था कि भारतीय कुश्ती संघ पर बृजभूषण शरण सिंह के परिवार और गुर्गों को नहीं बैठने दिया जाएगा, लेकिन उसके करीबी संजय सिंह ही जीते।

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इस सब घटना चक्र के बाद भाजपा के विरोधी दलों की राजनीति भी शुरू हो गई । गुरुवार को कुश्ती संघ के प्रमुख बने संजय सिंह से ज्यादा माला खुद बाहुबली बृजभूषण पहने दिखे। उनके बेटे प्रतीक तो दबदबा दिखाने वाला पोस्टर हाथ में लेकर नजर आए। खिलाड़ियों का सवाल है कि जो आरोपी है अगर उसी की खड़ाऊं लेकर चलने वाला कुश्ती संघ का प्रमुख चुना जाता है तो न्याय कैसे मिलेगा। वहीं, शुक्रवार शाम को  कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक से मिलने पहुंचीं । उसके बाद यह अफवाह शुरू हो गई कि साक्षी आने वाले समय में कांग्रेस के टिकट पर हरियाणा में चुनाव लड़ने जा रही हैं। पर जब इसके बारे में साक्षी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने अभी ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है। हाल ही में उन्होंने रेसलिंग छोड़ने का ऐलान किया हैवे इस समय दुख में हैंउन्हें इससे निकलने के लिए थोड़ा समय चाहिए। चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि भविष्य में क्या करना पड़ जाएइसके बारे में कहा नहीं जा सकतालेकिन अभी फिलहाल इस पर कोई फैसला नहीं लिया है।

पदक वापस करने का एक दूसरा पहलू भी है । ओलंपिक पदक विजेता पहलवान बजरंग पुनिया विरोध स्वरूप अपना पद्म पुरस्कार ‘वापस’ करने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों में उन सभी लोगों की तरह, जिन्होंने अपना पद्म सम्मान ‘लौटा’ दिया है उनकी तरह वह भी पुरस्कार विजेताओं की सूची में बने रहेंगे। क्योंकि सम्मानित पुरस्कार को लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है।

एक  रिपोर्ट के अनुसार पुरस्कार विजेता किसी भी कारण से पुरस्कार वापस करने के अपने फैसले की घोषणा कर सकता है, लेकिन पद्म पुरस्कार में ऐसा नियम नहीं है। बिना कारण बताए केवल राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कारों को रद्द करने की अनुमति मिल सकती है। पुरस्कार विजेता का नाम राष्ट्रपति के निर्देशों के तहत बनाए गए पद्म प्राप्तकर्ताओं के रजिस्टर में तब तक बना रहता है, जब तक उसका पुरस्कार रद्द नहीं हो जाता।’

गौरतलब है कि सामान्य प्रथा के अनुसार, पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किए जाने के लिए प्रस्तावित व्यक्ति की इच्छा, पुरस्कारों की घोषणा से पहले, यथासंभव अनौपचारिक रूप से सुनिश्चित की जाती है। इस बिंदु पर कई लोगों ने पुरस्कार अस्वीकार कर दिया है। किसी व्यक्ति को पद्म विभूषण, पद्म भूषण या पद्म श्री से अलंकृत किए जाने के बाद, उसका नाम भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है और ऐसे प्राप्तकर्ताओं का एक रजिस्टर रखा जाता है।

एक अधिकारी ने आगे कहा कि भले ही पुरस्कार विजेता बाद में पद्म पुरस्कार वापस करने के लिए स्वेच्छा से आता हो, उसका नाम राजपत्र या पुरस्कार विजेताओं के रजिस्टर से नहीं हटाया जाता है। पद्म पुरस्कारों की ‘वापसी’ से संबंधित सबसे हालिया मामले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व केंद्रीय मंत्री एसएस ढींडसा के थे। उन्होंने साल 2020 में राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा कि वे तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए अपने पुरस्कार ‘वापस’ कर रहे हैं। संयोग से, बादल और ढींडसा का नाम अभी भी पद्म पुरस्कार विजेताओं की सूची में शामिल है।

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