Up News-घोसी उपचुनाव में भाजपा की हार पार्टी के लिए सबक भी है और चेतावनी भी  

घोसी उपचुनाव में भाजपा की हार पार्टी के लिए सबक भी है और चेतावनी भी  

Up News-देश में 6 राज्यों की 7 विधानसभा सीटों पर हाल ही में उपचुनाव हुआ जिसमे से 4 पर इंडिया गठबंधन की व 3 पर एनडीए की जीत हुई पर देश में सबसे ज्यादा दिलचस्पी घोसी विधानसभा के उपचुनाव को लेकर थी। उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में  इंडिया के घटक दल  समाजवादी पार्टी  ने जीत दर्ज कर ली है। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने एनडीए के घटक दल भाजपा   के दारा सिंह चौहान  को 42,759 वोटों से हराया। इसी के साथ समाजवादी  इस सीट को बचाने में कामयाब रही। 2022 के उत्तरप्रदेश  विधानसभा चुनाव में यहां समाजवादी  ने ही जीत दर्ज की थी। तब भाजपा  से इस्तीफा देकर समाजवादी  में आए दारा सिंह चौहान को पार्टी ने टिकट दिया था। उन्होंने भाजपा  प्रत्याशी विजय राजभर को हराया था।इसके लगभग एक साल बाद समाजवादी  और विधायकी पद से दारा सिंह चौहान ने इस्तीफा दे दिया था और भाजपा  में शामिल हो गए थे। ऐसे में घोसी सीट पर एक बार फिर से चुनाव हुआ। इसमें भाजपा  ने जहां दारा सिंह चौहान को उम्मीदवार बनाया तो समाजवादी  ने सुधाकर सिंह को टिकट दिया था। सुधाकर सिंह ने पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए दारा सिंह चौहान को करारी शिकस्त दे दी।

घोसी उपचुनाव में हार कहीं न कहीं भाजपा  और एनडीए गठबंधन के लिए झटका है। वहीं इंडिया गठबंधन को लिए बड़ी सफलता कही जा सकती है। एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच एक तरीके से यह पहला चुनावी मुकाबला था। इस उपचुनाव में दारा सिंह चौहान को एनडीए गठबंधन में शामिल अपना दल (सोनेलाल), निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) पार्टी और पूर्व समाजवादी  सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का समर्थन मिल रहा था।

दूसरी ओर समाजवादी  उम्मीदवार सुधाकर सिंह को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (भाकपा-माले)-लिबरेशन और सुहेलदेव स्वाभिमान पार्टी से समर्थन मिला था। बहुजन समाज पार्टी  ने उपचुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था।

आंकड़ों के मुताबिक इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा 90 हजार दलित मतदाता हैं। क्षेत्र में करीब 90 हजार मुस्लिम मतदाता बताए जाते हैं। पिछड़े वर्ग में 50 हजार राजभर, 45 हजार नोनिया चौहान, करीब 20 हजार निषाद, 40 हजार यादव, 5 हजार से अधिक कोइरी और करीब 5 हजार प्रजापति वर्ग के वोट हैं। अगड़ी जातियों में 15 हजार से अधिक क्षत्रिय, 20 हजार से अधिक भूमिहार, 8 हजार से ज्यादा ब्राह्मण और 30 हजार वैश्य मतदाता हैं।

इस हार जीत के कई कारण है जिसमें से प्रमुख कारणों में कुछ ख़ास हम आपको यहाँ गिनवा देते है , पहली योगी सरकार में दारा सिंह कैबिनेट मंत्री थे और उनके पास वन एवं पर्यावरण जैसा महत्वपूर्ण विभाग था। लेकिन 2022 में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दारा सिंह चौहान पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में चले गए।समाजवादी पार्टी की सरकार न बनने से निराश दारासिंह फिर भाजपा  में आ गए।आने के कुछ ही दिन बाद उन्हें भाजपा  ने घोसी से टिकट दे दिया। दरअसल यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि दारा सिंह के समर्थक आम जनता को यह पता ही नहीं चल पाया कि कब वह समाजवादी पार्टी से  भाजपा  में आ गए। कुछ लोग तो यहाँ तक कह रहे थे कि अबकी बार समाजवादी पार्टी का मुकाबला समाजवादी पार्टी से ही हो रहा है । 2009 में दारा सिंह ने बसपा से चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे।पर 2014 में समाजवादी  के टिकट पर लोकसभा पहुंचने से वंचित रह गए।देश के सियासी तापमान को भांपने में माहिर दारा ने 2015 में भाजपा ज्वाइन कर लिया।2017 के चुनाव में पार्टी ने मधुबन विधानसभा से टिकट दिया और विधायक ही नहीं मंत्री भी बने।2022 में सियासी तापमान भांपने में गलती हो गई। समाजवादी पार्टी से विधायक तो बन गए सरकार न बनने से मंत्री बनने से रह गए।

दूसरा मुख्तार अंसारी का होम डिस्ट्रिक्ट होने के चलते यहां के मुस्लिम मतदाताओं पर मुख्तार अंसारी परिवार का प्रभाव रहा है।मऊ से मुख़्तार अंसारी पांच बार विधायक रह चुके हैं और अब उनके पुत्र सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से मौजूदा विधायक हैं। इसके चलते मुस्लिम वोट एकमुश्त होकर भाजपा  के खिलाफ जीतने वाले प्रत्याशी को पड़ा है। 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा ने अपना कैंडिडेट एक मुस्लिम प्रत्याशी अब्बास अंसारी को खड़ा किया था। जिन्हें करीब 81 हजार वोट मिले थे।इस बार उपचुनाव में मुस्लिम वोट बंटने के चांस ही नहीं थे।क्योंकि किसी भी दल ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारा ही नहीं था।समझा जाता है मुस्लिम वोट एकमुश्त समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह मिले हैं। माना तो यह भी जाता है कि घोसी में बसपा के चुनाव नहीं लड़ने की वजह से इसका लाभ समाजवादी  को मिला। एक तरीके से बसपा का वोट बैंक समाजवादी  की ओर शिफ्ट हुए। इससे नुकसान भाजपा  को उठाना पड़ा।

नगर विकास और बिजली जैसे महकमे को संभाल रहे अरविंद शर्मा से नाराजगी भी भाजपा  को वोट न मिलने का कारण बताया जा रहा है। आई ए एस से नेता बने अरविंद शर्मा भूमिहार बिरादरी से आते हैं और मऊ जिला ही उनका होम टाउन है। अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध अरविंद शर्मा इसी के चलते कभी नरेंद्र मोदी के बहुत प्रिय रहे हैं। उन्हीं के आशीर्वाद के चलते अरविंद  शर्मा की एंट्री भी राजनीति हुई थी। घोसी के स्थानीय नागरिक कहते हैं कि मंत्री जी तो बहुत ईमानदार हैं पर  प्रशासनिक मशीनरी बहुत भ्रष्ट हो गई है। अमिला नगरपालिका की हालत यह है कि पहले ठेकेदारों को कमीशन 25 परसेंट देना होता था वह अब 40 परसेंट हो गया है।महंगाई से त्रस्त किसान के लिए सरकार नहर में पानी तक की व्यवस्था नहीं कर पाई।  इसका चुनावों में बहुत प्रभाव पड़ा है।

इस बार के उपचुनाव में अखिलेश यादव एक्टिव रहे तो मुख्यमंत्री योगी ने अंतिम समय में मोर्चा संभाला।इसके पहले उल्टा होता था। भाजपा  की पूरी मशीनरी उपचुनावों में लगी होती थी और अखिलेश यादव नदारद रहते थे। रामपुर और आजमगढ़ हारने के  बाद अखिलेश ने इस बार घोसी उपचुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था।अखिलेश ही नहीं उनके चाचा शिवपाल भी क्षेत्र में लगातार डटे रहे।

आम तौर पर समझा जाता है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के चलते उत्तर प्रदेश  के ठाकुर वोट पूरी तरह से भाजपा  की ओर शिफ्ट हो गए हैं। कहा जा रहा है कि घोसी उपचुनावों में स्थानीय फैक्टर चलने चलते ठाकुर वोट भाजपा  को ट्रांसफर नहीं हो सके  हैं।दरअसल सुधाकर सिंह लोकल घोसी विधानसभा क्षेत्र के ही रहने वाले हैं जबकि दारा सिंह चौहान पड़ोस की मधुबन विधानसभा के रहने वाले हैं। इसके साथ ही गोरखपुर आस-पास के जिलों में यह बात बहुत पहले से ही होती रही है कि योगी आदित्यनाथ दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर दोनों को पसंद नहीं करते।ऐसी चर्चा आम रही है कि योगी इन दोनों नेताओं की भाजपा  में एंट्री चाहते ही नहीं थे। 

बसपा  कैंडिडेट का न होना भी समाजवादी पार्टी की बढ़त में सहायक बनी है। दलित वोट अंतिम समय तक कन्फ्यूज रहे कि  किसे वोट देना है। चुनावों के अंतिम समय में मायावती का केंद्र सरकार पर हमलावर रवैया भी यह संदेश दे गया कि भाजपा  को वोट देना जरूरी नहीं है।2022 के चुनावों में 21 परसेंट वोट बसपा पाने में कामयाब हुई थी जो इस बार आधा भी बंटा हो तो  समाजवादी पार्टी की जीत में सहायक बना है।2017 के चुनावों में पार्टी को करीब 81 हजार वोट मिले थे। मायावती का यह कहना भी कि किसी को वोट मत दो और देना है तो नोटा को वोट दो । यह कथन भी बड़ा खेल कर गया क्योंकि नोटा भी पांचवे नंबर पर रहा ।

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समाजवादी पार्टी की जीत का एक कारण इंडिया गठबंधन के दलों का एक साथ होना माना  जा रहा है । घोसी उपचुनावों में समाजवादी पार्टी के पक्ष में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी नहीं खड़ा किया था। वामपंथियों ने भी अपना समर्थन समाजवादी पार्टी को देने का ऐलान किया था। अपना दल कमेरावादी आदि छोटी पार्टियां भी समाजवादी पार्टी के लिए खुलकर  प्रचार कर रही थीं।घोसी उपचुनाव को इंडिया बनाम एनडीए का संघर्ष मान लिया गया था।

वैसे तो उपचुनाव के नतीजे का योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा  सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जिसे 403 सदस्यीय राज्य विधानसभा में  बहुमत हासिल है। हालांकि, इसका परिणाम 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भविष्य का संकेत हो सकता है। उत्तर प्रदेश  में लोकसभा की 80 सीटें हैं। यह हार भाजपा के लिए लिए सबक भी है और चेतावनी भी  ।

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