![Before the elections to be held this year in Telangana, the political temperature has become hot.](https://unitedbharat.net/wp-content/uploads/2023/10/download-5.jpg)
तेलंगाना में इस साल होने वाले चुनाव से पहले सियासी पारा गर्म हो चुका है। सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे को घेरने में लगे हैं। जैसे कि एक मशहूर कहावत है- ‘राजनीति में एक सप्ताह का समय बहुत लंबा होता है।’ इसका इस्तेमाल राजनीतिक जानकार अक्सर करते हैं। इसका मतलब है कि कम समय में राजनीतिक क्षेत्र में तेजी से कुछ ऐसे बदलाव हो जाते हैं, जिसके बारे में किसी ने कोई कल्पना भी न की हो। तेलंगाना की राजनीति कुछ इसी तरह से करवट ले रही है। यहाँ राजनीतिक पार्टियों की स्थितियों में पिछली बार के मुकाबले इस बार तेजी से बदलाव आया है।
भाजपा ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में करारी हार (119 सीटों पर चुनाव लड़कर महज एक सीट पर जीत) के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में अच्छी सफलता दर्ज की थी। 2019 में भाजपा ने 17 में से 4 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बाद भाजपा ने नवनिर्वाचित सांसद बंदी संजय कुमार को राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया, जो कि संघ में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं। भाजपा ने 2020 और 2021 में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में महत्वपूर्ण जीत दर्ज की। 2022 में पार्टी को हार झेलना पड़ा। इस बीच, भाजपा को साल 2020 के JHMC चुनाव में 4 के मुकाबले 49 सीटों पर जीत मिली, तो 2023 में एमएलसी चुनाव (शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र) में भी जीत हासिल की।
तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष बंदी संजय कुमार ने पूरे राज्य में पदयात्रा शुरू की, जिसका उल्लेख खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और बाकी राज्य इकाइयों से भी इसी इस तरह की पहल के लिए कहा। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति के कारण एमआईएम-बीआरएस सरकार को ‘तेलंगाना मुक्ति दिवस‘ मनाने के लिए भी मजबूर होना पड़ा।
गौरतलब है कि तेलंगाना में भाजपा का उदय कॉन्ग्रेस पार्टी के पतन के साथ हुआ। साल 2018 में कॉन्ग्रेस पार्टी के 18 विधायकों ने जीत दर्ज की थी, जिसमें से 12 अगले साल 2019 में BRS में शामिल हो गए। हालाँकि, कॉन्ग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2019 में तीन सीटें जीती थी, लेकिन उसके बाद से कॉन्ग्रेस को लगातार हार ही मिली है। मुनुगोडे सीट पर उपचुनाव में कॉन्ग्रेस की जमानत जब्त हो गई, जबकि वो सीट पहले कॉन्ग्रेस की ही थी।
भाजपा ने तेलंगाना में कमल खिलाने का जिम्मा राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल को सौंपी गई है। यूपी में भाजपा को जिताने का ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए बंसल को तेलंगाना का प्रभार सौंपा गया है, जिसके बाद उन्होंने बूथ स्तर पर तैयारियां तेज कर दी हैं। बूथ कमेटियों का गठन करने के साथ ही भाजपा हाईकमान ने प्रदेश नेतृत्व को आपसी मनमुटाव दूर करने के निर्देश भी दिए हैं। पार्टी के दिग्गजों को निर्देश दिया दिया गया है कि वे केंद्र सरकार की उपलब्धियों को लेकर घर-घर जाएं और लोगों को बताएं।
विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा जिस आक्रामक रणनीति के साथ तैयारियों में जुटी है, कई सवाल भी उठ रहे हैं। सवाल ये भी है कि पांच साल पहले यानी 2018 के विधानसभा चुनाव में जिस राज्य में पार्टी को सात फीसदी से भी कम वोट और एक सीट पर जीत मिली हो, उस राज्य में भाजपा को ऐसा क्या नजर आ गया कि पार्टी ने पूरी ताकत झोंक रखी है?
देवरिया के रुद्रपुर के जमीनी विवाद में 6 लोगों की हत्या.
— Ek Sandesh (@EkSandesh236986) October 2, 2023
भूमि के विवाद में पूर्व जिला पंचायत सदस्य प्रेम यादव की हत्या. प्रतिशोध में उमड़ी भीड़ आरोपी पक्ष सत्यप्रकाश दुबे के घर पहुंच गई. धारदार हथियार और असलहों से लैस लोगों ने पति-पत्नी, दो बेटी, एक बेटे को मार डाला.#YOGI pic.twitter.com/bVNp8V2gyR
दरअसल, भाजपा को तेलंगाना में नजर आ रही उम्मीदों की वजह लोकसभा, स्थानीय और निकाय चुनाव के नतीजे ही हैं। इस बात से नकार नहीं किया जा सकता कि स्थानीय निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनाव के नतीजों की तुलना नहीं की जा सकती लेकिन ये परिणाम सियासी ग्राफ का आकलन करने के लिए मुफीद भी हैं।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान तेलंगाना में भाजपा के वोट शेयर में जबरदस्त उछाल नजर आया। 2018 के विधानसभा चुनाव में सात फीसदी से भी कम वोट पाने वाली पार्टी का वोट शेयर लोकसभा चुनाव में बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया। भाजपा ने 21 विधानसभा क्षेत्रों में शानदार बढ़त बनाई। कुल 119 विधानसभा सीटों में से 22 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी दूसरे स्थान पर रही। छह महीने पहले यानी दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनावों से इसकी तुलना करें तो पार्टी के वोट शेयर में एक साल के भीतर 13 फीसदी का जबरदस्त उछाल आया।
इतना ही नहीं, भाजपा को TRS (जिसे अब BRS के नाम से जाना जाता है) की तुलना में ज्यादा फायदा हुआ। 2018 के विधानसभा चुनाव में टीआरएस ने 46.87 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 88 सीटें जीती थीं और लोकसभा चुनाव के दौरान वोट शेयर घटकर 41.71 फीसदी रह गया। भाजपा छोटे-छोटे दलों और निर्दलीयों के पाले में जाने वाले वोट शेयर में सेंध लगाने में सफल रही थी। अन्य के वोट शेयर में भी लगभग नौ प्रतिशत की गिरावट देखी गई। वहीं कांग्रेस इन चुनावों में दूसरे स्थान पर रही और उसने 29.27 फीसदी वोट हासिल किया। वोट हासिल करने में भाजपा तीसरे स्थान पर रही। पार्टी को 19.45 फ़ीसदी वोट मिले हैं। राज्य में भाजपा को एक नया जीवनदान दिया है। प्रदेश के नेता इतने उत्साहित हैं कि उन्होंने सत्ताधारी पार्टी टीआरएस के विकल्प में खुद को देखना शुरू कर दिया है।
तेलंगाना में टीआरसी की सबसे चौंकाने वाली हार केसीआर की बेटी के। कविता की थी, जो भाजपा के लिए उम्मीद जगाने का काम किया। कविता निजामाबाद संसदीय सीट से चुनावी मैदान में थीं, जिन्हें भाजपा के धर्मपुरी अरविंद ने मात दी थी। एसटी समुदाय के लिए आरक्षित आदिलाबाद सीट पर भाजपा के सोयम बापू राव जीते हैं। करीमनगर से संघ के बड़े नेता समझे जाने वाले बांदी संजय कुमार ने जीत दर्ज की थी। इन चार सीटों से भाजपा के लिए उम्मीद जगाने का काम किया है।
2020 के ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल चुनाव का नतीजों ने सियासी समीकरण ही बदल दिए। भाजपा ने कुल 150 वार्डों में से 48 वार्डों पर 34.56 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की। भाजपा ने टीआरएस और अन्य के वोट बैंक में सेंध लगाई। 2016 के नगर निकाय चुनावों की तुलना में भाजपा के वोट प्रतिशत में 24 फीसदी का उछाल देखा गया। 2016 में भाजपा मुश्किल से 10 फीसदी वोट शेयर के साथ सिर्फ 4 वार्ड जीत सकी थी।
ग्रेटर हैदराबाद में 15 विधानसभा क्षेत्र हैं और 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को एकमात्र जीत इसी क्षेत्र से मिली थी। ऐसे में भाजपा को इस राज्य से बड़ी उम्मीदें हैं और और इसी को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। भाजपा 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना को फतह करने के मिशन पर काम कर रही है?
इस बीच सीएम और बीआरएस पार्टी के सुप्रीमो KCR ने 119 सीटों में से 115 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। बता दें कि 2018 के चुनाव में भी उन्होंने ऐसी ही शुरुआती घोषणा की थी। हालाँकि, 2023 में वह दो अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं, जो बेहद पास-पास हैं। ये अपने आप में एक संकेत है कि वह अपने मौजूदा निर्वाचन क्षेत्र में बहुत मजबूत स्थिति में नहीं हैं। क्योंकि, दो अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ना आमतौर पर दो कारणों से किया जाता है – या तो यह दिखाने के लिए कि वे राज्य/देश के विभिन्न क्षेत्रों को कवर कर रहे हैं, या वे मौजूदा सीट बरकरार रखने के बारे में आश्वस्त नहीं हैं।
वहीं केसीआर के मामले में, उनके द्वारा चुने गए दोनों निर्वाचन क्षेत्र एक-दूसरे के बहुत करीब हैं जिससे कहीं न कहीं यह स्पष्ट है कि उन्हें मौजूदा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतने का भरोसा नहीं है। जैसा कि अपेक्षित था, उम्मीदवारों की घोषणा के बाद पार्टी में असंतोष फैल गया। कुछ असंतोष इतना गंभीर था कि KCR को चुनाव से ठीक 3 महीने पहले जल्दबाजी में बुलाए गए शपथ ग्रहण समारोह में एक एमएलसी को अपने मंत्रिमंडल में भी शामिल करना पड़ा।
बहरहाल, भाजपा मध्यप्रदेश , राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी वहां से चुनकर दिल्ली पहुंचे नेताओं को वापस उनके प्रदेशों में भेज सकती है। तेलंगाना से भाजपा के चार सांसद हैं। पार्टी ने उनमें से एक जी। किशन रेड्डी को केंद्रीय मंत्री और तेलंगाना प्रदेश का अध्यक्ष बना रखा है। भाजपा के तेलंगाना से तीन अन्य सांसद संजय बांदी, अरविंद धर्मपुरिया और सोयम बाबू राव हैं। संभव है कि सभी चारों सांसदों को भाजपा विधानसभा चुनाव लड़वा सकती है ।
प्रधानमंत्री मोदी भी तेलंगाना को घेरने में केंद्र की ओर से कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती । कल ही रविवार को महबूबनगर जिले में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अलग-अलग परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास के किया जिससे तेलंगाना की जनता को लगे कि हमारा विकास डबल इंजन की सरकार होने पर ही हो सकता है ।
भाजपा पार्टी इस बार तेलंगाना में मुख्यमंत्री के। चंद्रशेखर राव (केसीआर) के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की सरकार को पलटने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। खासकर, कर्नाटक के हाथ से निकल जाने के बाद सत्ता के नजरिए से भाजपा का दक्षिणी राज्यों से सफाया हो गया, इसलिए वो तेलंगाना के जरिए देश के दक्षिणी हिस्से में सत्ता की अलख जगाए रखने को आतुर है।