बागी और छोटे दल बिगाड़ रहे हैं भाजपा और कांग्रेस के गणित  

मतदान के चार दिनों बाद भी भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकारों के अलावा सोफोलाजिस्ट्स मतदान का आंकलन करने में जुटे हुए हैं। सभी इलेक्ट्रॉनिक चेनलों ने एग्जिट पोल भी किए हैं जिनके नतीजे तेलंगाना के मतदान के बाद 30 नवम्बर को जारी किए जाएंगे। तीन दिसम्बर को निर्वाचन आयोग सभी पांच राज्यों की मतगणना करेगा। भाजपा और कांग्रेस दोनों के रणनीतिकार मानते हैं कि प्रदेश में कम से कम एक दर्जन बागी उम्मीदवार ऐसे हैं जो जमानत बचाने की स्थिति में हैँ। इसी तरह समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और आम आदमी पाटी ने भी कऊद सीटों पर जोर दर्शाया है। इस वजह से किसी भी पार्टी का कोई रणनीतिकार या पॉलिटिकल एनालिस्ट विंध्य बघेलखंड बुंदेलखंड और ग्वािलयर चंबल अंचल के रुझानों को समझ नहीं पा रहा है। इन तीनों अंचलों में असल स्थिति दिन दिसम्बर को चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगी। कमलनाथ ने इस बार मालवा निमाड़ अंचल मेंसक्रिय जय आदिवासी युवा संग्ठन यानी जयस को अधिक भाव नहीं दिया। उन्होंने केवल जयस के संस्थापक डॉ. हीरालाल अलावा को मनावर से टिकट दिया।

डॉ. हीरालाल अलावा से नाराज गुट ने चुनाव के पहले बड़े-बड़े दावे किए थे। डॉ. हीरालाल अलावा के प्रतिद्वंद्वी लोकेश मुजाल्दा ने बार-बार 80 सीटों पर चुनाव लडऩे की बात कही थी लेकिन हकीकत में जयस का यह गुट नौ से अधिक सीटों पर चुनाव नहीं लड़ पाया। इसमें भी उसके अधिकांश प्रत्याशी चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में कांग्रेस के पख में या तो बैठ गए या उन्होंने अपना प्रचार करना बंद कर दिया। कुल मिला कर निमाड़ अंचल में तीन या चार स्थनों पर जयस के उम्मीदवार पांच हजार के लगभग मत लेने की स्थिति में हैं। आदिवासी अंचल में कांग्रेस का पूरी तरह से वर्चस्व दिख रहा है। भाजपा यहां संघ परिवार के कारण ही मैदान में टिकी रही अन्यथा आदिवासी सीटों पर भाजपा का पूरा सफाया होना तय था। मतदान के बाद कहा जा सकता है कि अािदिवासी अंचल में कांग्रेस 2018 के परिणाम दोहराने की अवस्था में है। हालांकि इस क्षेत्र की सामान्य और दलित सीटों पर भाजपा पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर स्थिति में है। प्रदेश में पहली बार इन चुनाव में 71 सीटों पर त्रिकोणीय, चतुष्कोणीय यहां तक कि पंचकोणीय संघर्ष की स्थिति देखने को मिली। पिछली बार ऐसा संघर्ष 60 सीटों पर देखा गया था। प्रदेश में 159 ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला रहा।

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कांग्रेस के 39 भाजपा के 35 बागी प्रत्याशी चुनाव लड़े। समाजवादी पार्टी ने 47 जबकि बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 170 के लगभग उम्मीदवार उतारे थे। इन दोनों दलों का गठबंधन था। इनके अलावा आम आदमी पार्टी भी कुछ स्थानों पर मजबूत दिखी। आसदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने इस बार केवल दो सीटों पर प्रत्याशी उतारे। प्रदेश में 47 सीटें आदिवासियों के लिए 35 सीटें दलितों के लिए सुरक्षित हैं। इन दोनों के अलावा प्रदेश के लगभग 60 लाख मुस्लिम 25 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हें। प्रदेश में इतना कांटा जोड़ सेघर्ष है कि कांग्रेस और भाजपा में से जिस दल ने अंतिम तीन दिनों में बाजी मारी होगी, वल्लभ भवन की सत्ता उसी की होगी। भाजपा और कांग्रेस के बीच 2018 में भी इसी तरह की लड़ाई हुई थी। तब कांग्रेस ने भाजपा के मुकाबले एक फीसदी कम तद पाने के बावजूद 114 सीटें जीत ली थी जबकि भाजपा को 109 सीटें मिली थी। भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले की स्थिति मालवा निमाड़ अंचल के अलावा भाजपा और नर्मदा पुरम क्षेत्र में अधिक है। महाकौशल की आधी सीटों पर भी दोनों दलों के बीच सीधा मुकाबला है जबकि विंध्य बघेलखंड बुंदेलखंड और ग्वालियर चंबल अंचल में त्रिकोणीय चतुष्कोणीय और कहीं-कहीं पंचकोणीय संघर्ष है। दोनों दलों के सबसे अधिक बागी इन्हीं क्षेत्रों में लड़ रहे थे। महाकौशल को छोड़ दिया जाए तो विशेष तीनों अंचलों में जातिवाद है। उत्तर प्रदेश से लगे क्षेत्र विशेष कर जातिवाद से प्रभावित है। उत्तर प्रदेश के दो पूव्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती का इन्हीं तीन अंचलों में सबसे अधिक प्रभावह ै। अखिलेश यादव और मायावती ने 2018 के मुकाबले मध्य प्रदेश में अधिक प्रचार किया।    

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