मुजफ्फरनगर में जन्मा चार हाथ और चार पांव वाला नवजात, मेरठ मेडिकल काॅलेज में इलाज शुरू

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में चार हाथ व चार पांव वाले अनोखे बच्चे ने जन्म लिया है। वहीं बच्चे की क्रिटिकल हालत देखते हुए मेरठ मेडिकल कॉलेज इलाज के लिए लाया गया है। वहीं अनोखे बच्चे को देखने के लिए  बच्चे के पिता इरफान के आवास पर भीड़ जुटने लगी है।मेरठ मेडिकल काॅलेज के मीडिया प्रभारी डॉ. वी डी पाण्डेय ने बताया कि एक नवजात शिशु का जन्म मुजफफरनगर में इरफान के घर पर सोमवार दोपहर 03ः30 पर हुआ। बच्चा पैदा होने के बाद बच्चे के पिता इरफान को बताया गया कि बच्चे के 04 हाथ व 04 पैर हैं तब वह बच्चे को जिला अस्पताल मुजफफरनगर लेकर गए जहां से बच्चे को मेडिकल कालेज मेरठ के लिये रेफर कर दिया गया।

डाॅ. नवरतन गुप्ता विभागाध्यक्ष बाल रोग विभाग ने बताया कि बच्चे के पिता से की गई बातचीत से पता चला कि इस बच्चे से बड़ी तीन बहने जिनकी उम्र क्रमशः 7, 4, 1 वर्ष है और यह चौथा बच्चा है। सभी बच्चो का प्रसव घर पर दाई द्वारा ही कराया गया था। जब बच्चा मेडिकल काॅलेज मेरठ में भर्ती किया गया तब सांस लेने में दिक्कत थी। उसका उपचार कर दिया गया और नलकी के माध्यम से दूध दिया जा रहा है, बच्चे की स्थिति स्थिर बनी हुई है।

इस प्रकार की विकृति जुड़वां बच्चे की जटिलता (काॅम्प्लीकेशन) है। इसमें एक बच्चा तो पूरी तरह विकसित इुआ लेकिन दूसरे बच्चे का अपूर्ण विकास धड़ से निचले हिस्से का ही हो पाया एवं धड़ से उपर का हिस्सा विकसित न होकर एक में ही जुड़ गया।

देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि एक बच्चे के ही चार हाथ एवं चार पैर है जबकि दो हाथ व दो पैर दूसरे अविकसित बच्चे के हैं। इस प्रकार के बच्चो की जन्मजात विकृति 50 से 60 हजार में से किसी एक बच्चे को ही होती है। यदि किसी माता-पिता का पहला व दूसरा बच्चा नाॅर्मल हुआ है तो एसा नही है कि उनके अगले पैदा होने वाले बच्चो में जटिलता नही आएगी।

बच्चे के पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे का किसी प्रकार से इलाज मेडिकल काॅलेज में हो जाए और इस बच्चे के अतिरिक्त अंगों की सर्जरी के द्वारा हटाते हुए साधारण जीवन यापन एवं दैनिक दिनचर्या के समस्त कार्य योग्य बनाने तथा सामाजिक स्वीकृति के अनुरूप बनाया जाए। 

डाॅ0 रचना चौधरी विभागाध्यक्ष, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा ने बताया कि गर्भधारण के पश्चात भारत सरकार द्वारा जननी सुरक्षा योजना के मध्यम से आम जनमानस तक यह जागृति पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा की कोई भी गर्भवती शुरू के तीन माह के बीच एक बार, चार से छ माह के बीच एक बार तथा सात से नौ माह के मध्य दो बार प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र/सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र/जिला चिकित्सालय/मेडिकल काॅलेज में स्त्री एवं प्रसूती रोग विशेषज्ञ से अवश्य सलाह ले एवं निःशुल्क दवाओं और व्यवस्थाओं का लाभ लें।

प्रथम तीन माह गर्भवती महिला के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है, जिसमें कुछ दवाओं का सेवन कराया जाता है। इसके सेवन से शिशुओं के जन्मजात विकृतियों में कमी आती है। यदि गर्भवती महिलायें चिकित्सक से सम्पर्क करेगी तो चिकित्सक अल्टासाउन्ड के मायम से गर्भ का परिक्षण समय समय पर कराते रहतें है।

डाॅ0 चौधरी ने बल देते हुए कहा कि हर गर्भवती का 18 से 20 सप्ताह की गर्भावस्था में जन्मजात विकृतियों को देखने के लिए अल्टासाउंड विशेषज्ञ द्वारा कराया जाना अति आवश्यक है। यदि कोई जन्मजात विक्रति गर्भ में दिखती है तो एसे शिशु को न पैदा करते हुए अधिकृत 24 सप्ताह के भीतर तक गर्भ समापन (MTP) किया जा सकता है।


 

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