मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं पदावधि) विधेयक पर राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। इससे पहले सदन में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के वी शिवादासन और जॉन ब्रिटॉस के इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया। सदन में लगभग साढ़े तीन घंटे तक चली चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सरकार चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए प्रतिबद्ध है और यह विधेयक इसी दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को पूरा किया गया है। इसके अलावा चुनाव आयोग को मजबूत बनाते हुए आयुक्तों का वेतनमान उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान कर दिया गया है तथा सेवाकाल के दौरान कर्तव्य निर्वहन के लिए कोई अदालत उनको समन नहीं कर सकती है। उन्होंने कहा कि संविधान में सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया है। इसलिए कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका का कार्यक्षेत्र तय किया गया है। नियुक्ति प्रक्रिया कार्यपालिका का क्षेत्र है। यह विधेयक निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) कानून 1991 का स्थान लेगा। संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्त (ईसी) होते हैं। विधेयक में चयन समिति का प्रावधान किया गया है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा सदस्य के रूप में नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे। अगर लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता इसमें होगा। चयन समिति पर विचार करने के लिए एक खोज समिति पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी। खोज समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे। इसमें दो अन्य सदस्य होंगे जो केंद्र सरकार के सचिव स्तर से नीचे के नहीं होंगे।
यह विधेयक क्या है और इसमें क्या प्रस्तावित किया गया है?
इस साल 2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), लोकसभा में विपक्ष के नेता की सदस्यता वाली एक समिति द्वारा की जानी चाहिए। संविधान सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए कोई विशिष्ट विधायी प्रक्रिया नहीं बताता है। परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार को इन अधिकारियों की नियुक्ति में खुली छूट है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर नियुक्तियां करता है।
विधेयक में क्या है?
चयन समिति अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से रेगुलेट करेगी।
CEC-EC का कार्यकाल 6 साल या 65 वर्ष की आयु तक रहेगा।
CEC-EC का वेतन कैबिनेट सचिव के समान होगा।
इनका चयन पीएम, नेता विपक्ष, एक कैबिनेट मंत्री की समिति करेगी।