राम मंदिर का मुद्दा विधानसभा के चुनाओं के बाद लोकसभा चुनाव का भी बनेगा बड़ा मुद्दा

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव को 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है।  हिंदी पट्टी वाले तीन राज्यों में बीजेपी बनाम कांग्रेस की सीधी लड़ाई है, तो तेलंगाना में त्रिकोणीय और मिजोरम में दो क्षत्रपों के बीच मुकाबला है।  ऐसे पांच राज्यों के चुनाव में जीत-हार के नतीजों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है ।  2014 और 2019 की जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी 2024 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव जीतकर सत्ता की हैट्रिक लगाना चाहते हैं।  इसका सारा दारोमदार पांच राज्यों के चुनाव के चुनाव के रिजल्ट  पर टिका है, क्योंकि इसके नतीजे कहीं न कहीं 2024 के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।

पिछले लोकसभा चुनाव में भी राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा रहा और आगामी यानी 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राम मंदिर बड़ा मुद्दा रहेगा।  फर्क सिर्फ इतना है के 2019 के लोकसभा चुनाव में बात हो रही थी भव्य राम मंदिर के निर्माण की, लेकिन 2024 में बात होगी रामलला के लंबे इंतजार के खत्म होने और स्थाई मंदिर में विराजमान होने की।  राम नगरी अयोध्या में एक तरफ जहां भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है तो वहीं दूसरी ओर रामनगरी को सजाने संवारने और आध्यात्मिक पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने का काम भी दिन रात किया जा रहा है।

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राम मंदिर का मुद्दा बहुत तेज़ी से तूल पकड़ रहा है।  अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण अपने अंतिम चरण में है।  22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होंगे।  इसको लेकर अभी से तैयारी शुरू हो गई है।  आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी पूजन में शामिल होंगे।  मुख्यमंत्री  योगी, राज्यपाल प्रोटोकाल शिष्टाचार के तहत प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होंगे।  एक लंबे इंतजार के बाद आखिरकार राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तारीख तय हो गई है, दिन भी निश्चित है।  राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से चार प्रतिनिधि मंडलों के दल ने रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रधानमंत्री से शिष्टाचार मुलाकात कर उनको आमंत्रित भी कर दिया है।

श्रीराम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के लिये निमंत्रण पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- धन्य महसूस कर रहा हूं।  प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा कि वह खुद को धन्य महसूस कर रहे हैं और यह उनका सौभाग्य है कि वह अपने जीवनकाल में, इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बनेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रण पर शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने चुटकी लेते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को निमंत्रित करने की कोई जरूरत नहीं हैं।  वो खुद इतने बड़े कार्यक्रम से दूर नहीं रह सकते।  यह शब्द  राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने विपक्षी नेताओं की टिप्पणियों की आलोचना करते हुए कहा कि भगवान राम का विरोध करने वाले सड़कों पर घूम रहे हैं और ऐसा करना जारी भी रखेंगे ।  ज्ञात हो किप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम लला मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह के लिए औपचारिक निमंत्रण मिलने के बाद, विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाया  कि क्या यह लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सिर्फ एक पार्टी का कार्यक्रम बन जाएगा। संजय राउत को सिर्फ चुनाव दिखता है लेकिन प्रतिष्ठा समारोह आस्था और श्रद्धा का विषय है।आचार्य सत्येन्द्र दास ने कहा कि लोग अपनी मानसिकता के अनुसार बात करते हैं, संजय राउत को सिर्फ चुनाव दिखता है। उन्होंने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा आस्था का, विश्वास का, भक्ति का विषय है और इसके लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया गया है। इससे पहले भी उन्होंने भूमिपूजन किया था। अब जब मंदिर लगभग बन चुका है और इसकी प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी (2024) को होगी, तो प्रधानमंत्री  को आमंत्रित किया गया है और उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। यह बलिदानों के बारे में नहीं है, यह भक्ति और विश्वास के बारे में है। दास ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री  मोदी को भगवान राम का आशीर्वाद है इसलिए वह सत्ता में हैं लेकिन जिन्होंने भगवान राम के अस्तित्व को नकार दिया वे सड़कों पर घूम रहे हैं और आगे भी घूमते रहेंगे  । 

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इन सब बातों से बेखबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स/ट्विटर पर पोस्ट कर राष्ट्र को उस क्षण के बारे में जानकारी दी, जिसकी प्रतीक्षा वह करीब 500 साल से कर रहा है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने बताया है कि श्री राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान श्री रामलला सरकार के श्री विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।

गौरतलब है कि आज हम रामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर को आकार लेते देख रहे हैं, प्राण-प्रतिष्ठा का दिनांक सुनिश्चित हो गया है। लेकिन यह यात्रा उतनी भी सहज नहीं रही है जितनी आज दिखती है। यह संघर्ष 1528 से ही शुरू हो गया था जब इस्लामी आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया। 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि पूरी जमीन रामलला की है और  मंदिर वहीं बनेगा।

लेकिन इस मोड़ तक पहुँचने के क्रम में न जाने कितने रामभक्तों ने खुद को बलिदान कर लिया। कितनी बार अयोध्या की गलियों के रामभक्तों के रक्त से लाल कर दिया गया। ऐसी ही एक तारीख 2 नवंबर 1990 की है।2 नवंबर 1990 को तत्कालीन आईजी एसएमपी सिन्हा ने अपने मातहतों से कहा कि लखनऊ से साफ निर्देश है कि भीड़ किसी भी कीमत पर सड़कों पर नहीं बैठेगी। आइए जानते हैं कि अयोध्या में 1990 की 2 नवंबर को क्या हुआ था?

सुबह के नौ बजे थे। कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू में स्नान कर साधु और रामभक्त कारसेवा के लिए रामजन्मभूमि की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने घेरा बनाकर रोक दिया। वे जहाँ थे, वहीं सत्याग्रह पर बैठ गए। रामधुनी में रम गए।फिर आईजी ने ऑर्डर दिया और सुरक्षा बल एक्शन में आ गए। आँसू गैस के गोले दागे गए। लाठियाँ बरसाई गईं। लेकिन रामधुन की आवाज बुलंद रही। रामभक्त न उत्तेजित हुए, न डरे और न घबराए। अचानक बिना चेतावनी के उन पर फायरिंग शुरू कर दी गई। गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया।

3 नवंबर 1990 को जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट में लिखा गया था, कि राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात गोलियाँ मारी।

इस घटना का उस समय की मीडिया रिपोर्टिंग से लिए गए कुछ और विवरण पर गौर करिए तो पुलिस और सुरक्षा बल न खुद घायलों को उठा रहे थे और न किसी दूसरे को उनकी मदद करने दे रहे थे।फायरिंग का लिखित आदेश नहीं था। फायरिंग के बाद जिला मजिस्ट्रेट से ऑर्डर पर साइन कराया गया।किसी भी रामभक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई। सबके सिर और सीने में गोली लगी।तुलसी चौराहा खून से रंग गया। दिगंबर अखाड़े के बाहर कोठारी बंधुओं को खींचकर गोली मारी गई।राम अचल गुप्ता का अखंड रामधुन बंद नहीं हो रहा था, उन्हें पीछे से गोली मारी गई।रामनंदी दिगंबर अखाड़े में घुसकर साधुओं पर फायरिंग की गई।कोतवाली के सामने वाले मंदिर के पुजारी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया।रामबाग के ऊपर से एक साधु आँसू गैस से परेशान लोगों के लिए बाल्टी से पानी फेंक रहे थे। उन्हें गोली मारी गई और वह छत से नीचे आ गिरे।फायरिंग के बाद सड़कों और गलियों में पड़े रामभक्तों के शव बोरियों में भरकर ले जाए गए।

इसके आलावा 2 नवंबर 1990 को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर जो कारसेवक बढ़ रहे थे, उनमें 22 साल के रामकुमार कोठारी और 20 साल के शरद कोठारी भी शामिल थे। सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे।सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई।

जनसत्ता में अगले दिन छपी खबर में बलिदानियों की संख्या 40 बताई गई थी। साथ ही लिखा गया था कि 60 बुरी तरह जख्मी हैं और घायलों का कोई हिसाब नहीं है। मौके पर रहे एक पत्रकार ने मृतकों की संख्या 45 बताई थी।दैनिक जागरण ने 100 की मौत की बात कही थी। दैनिक आज ने यह संख्या 400 बताई थी। आधिकारिक तौर पर बाद में मृतकों की संख्या 17 बताई गई। हालाँकि घटना के चश्मदीदों ने कभी भी इस संख्या को सही नहीं माना।

दिलचस्प यह है कि घटना के फौरन बाद प्रशासन ने अपनी ओर से कोई आँकड़े तो नहीं दिए थे, लेकिन मीडिया के आँकड़ों का खंडन भी नहीं किया था। यहाँ तक कि फैजाबाद के तत्कालीन आयुक्त मधुकर गुप्ता तो फायरिंग के घंटों बाद तक यह नहीं बता पाए थे कि कितने राउंड गोली चलाई गई थी। उनके पास मृतकों और जख्मी लोगों का आँकड़ा भी नहीं था।

जनसत्ता ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में लिखा था, “निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाकर प्रशासन ने जलियांवाले से भी जघन्य कांड किया है।” यहाँ तक कि 30 अक्टूबर 1990 के दिन भी कारसेवकों पर गोलियाँ बरसाई गई थी। आधिकारिक आँकड़े 30 अक्टूबर को 5 रामभक्तों के बलिदान की पुष्टि करते हैं।30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को अयोध्या जय सियाराम और हर-हर महादेव के जयकारे से गूँजायमान था। 22 जनवरी 2024 यह सुनिश्चित करेगा कि अयोध्या में बस राम का नाम हो। 2024 के इस 22 जनवरी का महत्व हिंदू होकर ही जाना जा सकता है। कभी विहिप के नेता एससी दीक्षित ने यह कहा भी था ।

इस बलिदानों में इसमें तमाम हिंदुत्ववादी संगठन और पार्टियां शामिल थीं। शिवसेना, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद वहां थे। लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली थी। इन सबका नतीजा है कि राम मंदिर बन रहा है।और विरोधी दल को इसमें राजनीति दिख रही है ।  आचार्य सत्येन्द्र दास ने आगे मोदी जी के बारे में कहा कि जहां तक राजनीति और चुनाव का सवाल है, वो आएंगे और जाएंगे लेकिन सबी राजनीतिक दलों को यह समझना चाहिए कि भगवान राम का मोदी जी को  आशीर्वाद प्राप्त है। इसलिए वो सत्ता में हैं और ऐसा करना वो जारी रखेंगे। जो लोग भगवान राम का विरोध करते हैं वे सड़कों पर घूम रहे हैं और ऐसा करना जारी भी रखेंगे। 

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