विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट ने हिला दी दिल्ली की नींव, 7 लाख लोगों पर मंडरा रहा खतरा, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

अध्ययन में देश के पांच प्रमुख महानगरों - दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु का विश्लेषण किया गया। भू-धंसाव से प्रभावित क्षेत्र के मामले में दिल्ली (196.27 वर्ग किमी) तीसरे स्थान पर है।

New Delhi. देश की राजधानी दिल्ली किसी भी अन्य भारतीय महानगर की तुलना में सबसे तेज़ी से जमीन में धंस रही है। प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित ताज़ा अध्ययन ने राजधानी की नींव हिला देने वाली यह सच्चाई उजागर की है। अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में हर साल जमीन औसतन 51 मिमी की दर से धंस रही है, जिससे करीब 17 लाख लोग सीधे तौर पर प्रभावित हो सकते हैं।

‘डूबते भारतीय महानगरों में इमारतों को नुकसान का जोखिम’ शीर्षक से प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चेताया है कि दिल्ली में 2,264 इमारतें वर्तमान में उच्च जोखिम श्रेणी में हैं। यानी इन इमारतों को भू-धंसाव के कारण गंभीर संरचनात्मक नुकसान का खतरा है। अध्ययन में देश के पांच प्रमुख महानगरों – दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु का विश्लेषण किया गया। भू-धंसाव से प्रभावित क्षेत्र के मामले में दिल्ली (196.27 वर्ग किमी) तीसरे स्थान पर है। उससे आगे मुंबई (262.36 वर्ग किमी) और कोलकाता (222.91 वर्ग किमी) हैं। लेकिन खतरे की तीव्रता और इमारतों की सघनता के कारण राजधानी को सबसे अधिक जोखिम वाला शहर बताया गया है।

असंतुलन की वजह से धंस रही जमीन

अध्ययन में दिल्ली-एनसीआर के जिन क्षेत्रों में भूमि धंसाव सबसे गंभीर पाया गया, उनमें बिजवासन, फरीदाबाद और गाजियाबाद प्रमुख हैं। इन इलाकों में क्रमशः 28.5 मिमी, 38.2 मिमी और 20.7 मिमी प्रति वर्ष की दर से जमीन धंस रही है। दिल्ली के द्वारका क्षेत्र के आसपास कुछ स्थानों पर भूमि के उभरने की दर 15.1 मिमी प्रति वर्ष दर्ज की गई है, जो भूवैज्ञानिक असंतुलन की ओर इशारा करती है।

अध्ययन के अनुसार, यदि मौजूदा रुझान जारी रहे तो अगले 30 वर्षों में दिल्ली में 3,169 इमारतों को गंभीर क्षति का खतरा होगा। वहीं 50 वर्षों में यह संख्या 11,457 तक पहुंच सकती है। इसी अवधि में मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु और कोलकाता जैसे शहरों में भी हजारों इमारतें खतरे की जद में आ जाएंगी।

भूजल दोहन जिम्मेदार

शोधकर्ताओं ने दिल्ली में हो रहे इस तेज़ भू-धंसाव के लिए मुख्य रूप से भूजल दोहन को जिम्मेदार ठहराया है। अध्ययन में कहा गया है कि लगातार बढ़ते निर्माण और पानी की अत्यधिक मांग ने भूजल स्तर को असामान्य रूप से नीचे धकेल दिया है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन, मानसून के पैटर्न में बदलाव और मौसम घटनाओं ने स्थिति को और बिगाड़ा है।

अध्ययन में लिखा गया है कि भारत की जल आपूर्ति मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है, लेकिन हाल के वर्षों में मानसून में देरी, कम अवधि और असमान वर्षा ने पुनर्भरण की प्रक्रिया को कमजोर किया है। परिणामस्वरूप, भूमि धंसाव और संरचनात्मक जोखिम का खतरा कई गुना बढ़ गया है।

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विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भूजल प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और शहरी नियोजन को तत्काल प्राथमिकता नहीं दी गई, तो दिल्ली आने वाले दशकों में गंभीर भू-धंसाव संकट का सामना कर सकती है। यह स्थिति न केवल इमारतों की सुरक्षा बल्कि सड़कों, मेट्रो, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचों को भी खतरे में डाल सकती है।

स्पष्ट है कि बढ़ती आबादी, अव्यवस्थित विकास और प्राकृतिक असंतुलन के बीच दिल्ली धीरे-धीरे अपने ही बोझ तले धंसती जा रही है और यदि चेतावनी के इस संकेत को अनसुना किया गया, तो भविष्य में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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