White Collar Terrorism : फरीदाबाद की यूनिवर्सिटी में RDX की साजिश? डॉक्टरों और प्रोफेसरों के आतंकी नेटवर्क का भंडाफोड़

White Collar Terrorism : जम्मू-कश्मीर और हरियाणा पुलिस ने एक व्हाइट कॉलर टेरर नेटवर्क का भंडाफोड़ किया। अल-फलाह यूनिवर्सिटी की लैब में RDX जैसी सामग्री तैयार होने का शक।

White Collar Terrorism. देश की सुरक्षा एजेंसियों ने एक ऐसी आतंकी साजिश का पर्दाफाश किया है, जिसने सुरक्षा तंत्र के साथ-साथ शिक्षा जगत को भी झकझोर दिया है। जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में एक साथ हुई छापेमारी में करीब 2,900 किलो विस्फोटक सामग्री, कई असॉल्ट राइफलें, पिस्तौलें और रासायनिक पदार्थ बरामद हुए हैं। यह नेटवर्क किसी सामान्य आतंकी गिरोह का नहीं, बल्कि ‘व्हाइट कॉलर टेररिज्म’ का हिस्सा बताया जा रहा है – यानी शिक्षित डॉक्टरों, प्रोफेसरों और छात्रों से बना एक उच्चस्तरीय आतंकी मॉड्यूल।

मुख्य आरोपी डॉ. मुजम्मिल गनई, पुलवामा का निवासी और फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर था। वह यूनिवर्सिटी के अस्पताल में आपातकालीन विभाग संभालता था। 30 अक्तूबर को उसकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उसके दो ठिकानों – एक बल्लभगढ़ में और दूसरा देहर कॉलोनी, धौज में छापेमारी की।

पहले ठिकाने से 358 किलो अमोनियम नाइट्रेट, क्रिन्कोव असॉल्ट राइफल, 83 कारतूस, पिस्तौल और बम बनाने का सामान जब्त किया गया। दूसरे ठिकाने से 2,563 किलो विस्फोटक, AK-56 राइफल, बेरेटा और चीनी पिस्तौलें मिलीं। पुलिस का मानना है कि यह सामग्री किसी बड़े आतंकी हमले की तैयारी में जुटे नेटवर्क से जुड़ी थी।

जांच में यह भी संभावना जताई गई है कि विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं का उपयोग RDX जैसी उच्चस्तरीय विस्फोटक सामग्री तैयार करने में किया गया हो। पुलिस ने यूनिवर्सिटी के पास की एक मस्जिद से एक मौलवी को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की है।

आतंकी संगठनों से जुड़ा नेटवर्क

पुलिस सूत्रों के अनुसार, यह नेटवर्क आतंकी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गज़वातुल-हिंद से जुड़ा हुआ था। ये लोग एनक्रिप्टेड चैनलों, चैरिटेबल ट्रस्टों और विश्वविद्यालयों के जरिए फंडिंग और भर्ती का काम कर रहे थे। जांच की शुरुआत 19 अक्तूबर को श्रीनगर के नोगाम इलाके में मिले धमकी भरे पोस्टरों से हुई थी, जिसके बाद यूएपीए, एक्सप्लोसिव सबस्टांसेस एक्ट और आर्म्स एक्स के तहत केस दर्ज किया गया।

जांच के दौरान यह साफ हुआ कि यह नेटवर्क उच्च शिक्षित पेशेवरों से बना था – डॉक्टर, प्रोफेसर और रिसर्चर इसमें शामिल थे। इनके विदेशी हैंडलर इन्हें तकनीकी और रासायनिक प्रयोगों के निर्देश देते थे।

आरोपी मुजम्मिल के अलावा डॉ. अदील मजीद राथर को सहारनपुर से पकड़ा गया। उसकी सूचना पर धौज के ठिकानों का पता चला। एक अन्य महिला डॉक्टर की कार से AK-47 राइफल बरामद हुई, जो आरोपी से जुड़ी बताई जा रही है। हालांकि पुलिस का कहना है कि उसने संभवतः अनजाने में वाहन दिया था।

यह संगठित आतंकी मॉड्यूल था

फरीदाबाद पुलिस आयुक्त सतींदर कुमार गुप्ता के अनुसार कि यह संगठित आतंकी मॉड्यूल था, जिसे हरियाणा और जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त कार्रवाई से ध्वस्त किया गया। अब इसकी फंडिंग और विदेशी कड़ियों की जांच की जा रही है।

इस मामले ने साबित किया है कि आतंकवाद अब केवल सीमाओं या जंगलों में छिपा नहीं है – वह अब विश्वविद्यालयों, प्रयोगशालाओं और अस्पतालों की दीवारों के भीतर भी पनप रहा है। व्हाइट कॉलर टेरर नेटवर्क शब्द आतंकवाद के एक नए रूप को परिभाषित करता है – जहां साइबर दक्ष, आर्थिक रूप से सक्षम और उच्च शिक्षित युवा आतंकी गतिविधियों को तकनीक के माध्यम से संचालित कर रहे हैं।

इससे यह प्रश्न उठता है कि आखिर शैक्षणिक संस्थानों में कट्टरपंथ और चरमपंथी विचारधारा कैसे प्रवेश कर रही है? विशेषज्ञों का मानना है कि विश्वविद्यालयों में इंटेलिजेंस सेल्स और निगरानी तंत्र को सशक्त बनाना जरूरी है ताकि किसी संदिग्ध गतिविधि को समय रहते रोका जा सके।

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डॉ. मुजम्मिल गनई और उसके सहयोगियों का नेटवर्क इस बात का सबूत है कि अब आतंकवाद तकनीक, विचार और शिक्षा का घातक मिश्रण बन चुका है। यह घटना देश को चेतावनी देती है कि अब जंग केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि क्लासरूम, लैब और साइबर स्पेस में भी लड़ी जानी होगी।

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