WBSSC Recruitment Case: ममता बनर्जी की नई नियुक्ति प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल

WBSSC Recruitment Case: पश्चिम बंगाल में स्कूलों में शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों पर नई भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक बार फिर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा 30 मई से नई नियुक्तियों की घोषणा के साथ ही राज्य की राजनीति और न्यायिक हलकों में तीखी बहस शुरू हो गई है।

मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिन ‘निर्दोष’ उम्मीदवारों की नौकरी चली गई है, उन्हें पुनः लिखित परीक्षा में शामिल होने का अवसर मिलेगा। हालांकि, इस घोषणा के तुरंत बाद कई कानूनी और राजनीतिक सवालों ने जन्म ले लिया है।

क्या सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई है ‘योग्य-अयोग्य’ की सूची?

विपक्ष का सबसे बड़ा आरोप यह है कि राज्य सरकार और पश्चिम बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन (WBSSC) ने अब तक सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका के साथ ‘योग्य’ और ‘अयोग्य’ उम्मीदवारों की स्पष्ट और पृथक सूची दाखिल नहीं की है।

विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने मुख्यमंत्री पर सीधा हमला करते हुए सवाल उठाया, “क्या राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट सूची सौंपी है? यदि नहीं, तो यह स्पष्ट है कि सरकार केवल समय खींच रही है और ‘निर्दोष’ उम्मीदवारों को झूठी दिलासा दे रही है।”

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी?

सीपीएम सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास रंजन भट्टाचार्य ने मुख्यमंत्री के उस बयान को भी आड़े हाथों लिया जिसमें उन्होंने ‘अयोग्य’ कर्मचारियों की नौकरियां बचाने की बात कही थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने न केवल ‘अयोग्य’ उम्मीदवारों की सेवाएं समाप्त करने, बल्कि उनसे वेतन की वसूली करने का भी आदेश दिया है।

“ऐसे में सरकार कैसे कोर्ट के आदेश के एक हिस्से को माने और दूसरे को नजरअंदाज करे? यह पुनः भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने वाली सोच प्रतीत होती है,” भट्टाचार्य ने कहा।

नई प्रक्रिया का औचित्य या केवल भ्रम?

भट्टाचार्य ने यह भी पूछा कि जब सरकार नई भर्ती प्रक्रिया शुरू कर रही है, तो फिर पुनर्विचार याचिका का औचित्य क्या रह जाता है? उन्होंने आरोप लगाया कि यह पूरी कवायद केवल समय बिताने और जनमानस में भ्रम पैदा करने के उद्देश्य से की जा रही है।

निष्कर्ष: 30 मई को परीक्षा या परीक्षा की परीक्षा?

अब सबकी निगाहें 30 मई पर टिकी हैं, जब मुख्यमंत्री द्वारा घोषित नई भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत होनी है। क्या यह प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी होगी? क्या सुप्रीम कोर्ट में लंबित पुनर्विचार याचिका के साथ इसका कोई टकराव होगा? इन सवालों के जवाब ही यह तय करेंगे कि सरकार की मंशा कितनी साफ है और शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में यह कदम कितना सार्थक सिद्ध होता है।

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फिलहाल, ममता बनर्जी की इस घोषणा ने न केवल राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है, बल्कि बंगाल की शिक्षा प्रणाली को लेकर एक बार फिर जनता के बीच असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दी है।

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