UP News: सुंदरकांड में छिपा साधना का रहस्य, चार बाधाओं से गुजर कर ही होता है ‘सीता दर्शन’

UP News: पांती स्थित मेजा रोड पर आयोजित मानस सम्मेलन के दूसरे दिन रामायण के सुंदरकांड का आध्यात्मिक और दार्शनिक विश्लेषण किया गया। कथा व्यास पंडित निर्मल कुमार शुक्ल ने कहा कि हनुमान जी की लंका यात्रा केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि साधक की आत्मा की यात्रा है, जिसमें चार बड़ी बाधाएं आती हैं। इन बाधाओं को पार कर ही साधक को ‘सीता’ यानी आत्मसाक्षात्कार या सिद्धि का साक्षात्कार होता है।

पं. शुक्ल ने बताया कि जब हनुमान जी समुद्र पार करने लगे तो सबसे पहले मैनाक पर्वत सामने आया। यह सोने का पर्वत है और साधना में लोभ का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि साधक के लिए पहला खतरा यही है—धन, मान, मठ-मंदिर, आश्रम, परिवार जैसी दुनियावी चीजों का मोह। हनुमान जी ने मैनाक को प्रणाम कर आगे बढ़ने का संदेश दिया कि लोभ से दूरी बनाए रखना ही पहला कदम है ।

अगली बाधा सुरसा के रूप में आई, जिसे देवताओं ने भेजा था। यह कीर्ति का प्रतीक है। जब वह अपना मुंह फैलाती गई, तो हनुमान जी भी अपने आकार को बढ़ाते गए, और अंत में बहुत छोटा होकर उसके मुंह में जाकर बाहर आ गए। इसका अर्थ है कि जब हमारी कीर्ति सौ योजन फैल जाए, तब भी हमें विनम्र और छोटा बनना आना चाहिए।

तीसरी बाधा ईर्ष्या थी, जो सिंहिका के रूप में समुद्र की गहराई से आई। यह उन लोगों का प्रतिनिधित्व करती है जो उड़ते हुए (आगे बढ़ते हुए) लोगों को खींचने की कोशिश करते हैं। हनुमान जी ने इस बाधा का वध कर दिया, यह दर्शाता है कि साधक को ईर्ष्या का समूल नाश कर देना चाहिए।

आखिरी बाधा लंका की द्वारपाल लंकिनी थी, जो आसक्ति की प्रतीक है। हनुमान जी के प्रश्न करने पर कि सीता को चुराने वाले रावण को क्यों नहीं खाया, वह निरुत्तर हो गई। हनुमान जी के प्रहार से उसकी चेतना बदली और उन्होंने लंका में प्रवेश किया। इसका तात्पर्य है कि आसक्ति पर विजय के बाद ही साधक को ‘सीता’ अर्थात् आत्मा की सच्ची झलक मिलती है।

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कथा के दौरान मंच पर उपस्थित वाराणसी के मानस मराल पं. रामसूरत जी, आस्था दूबे (जबलपुर) आदि विद्वानों ने विभिन्न प्रसंगों पर गंभीर विश्लेषण प्रस्तुत कर श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। संचालन पं. विजयानंद उपाध्याय ने किया। कार्यक्रम के आयोजक व मानस प्रचारिणी समिति के अध्यक्ष पं. नित्यानंद उपाध्याय ने क्षेत्रवासियों से अधिक से अधिक संख्या में सम्मिलित होकर ‘कथामृत’ पान करने का आह्वान किया।

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