
पुरानी पेंशन बहाली की लड़ाई अब निर्णायक चरण में पहुँच गई है। शिक्षक, कर्मचारी और अधिकारी वर्षों से नवीन पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की असुरक्षित और अपमानजनक व्यवस्था का बोझ ढो रहे हैं, जबकि जनप्रतिनिधियों के लिए आज भी अलग और पूरी तरह सुरक्षित पेंशन व्यवस्था लागू है। यह दोहरा मानदंड कर्मचारियों के भविष्य के साथ खुला अन्याय माना जा रहा है।
इसी अन्याय के खिलाफ सशक्त आवाज उठाने के लिए पीएसपीएसए ने घोषणा की है कि संगठन 25 नवंबर को होने वाले अटेवा के दिल्ली धरने में पूर्ण सामर्थ्य के साथ शामिल होगा। अटेवा के संस्थापक विजय बंधु के नेतृत्व में पुरानी पेंशन बहाली का आंदोलन देशव्यापी रूप ले चुका है। उन्नाव अटेवा के जिला संयोजक अर्पित मिश्र और औरास ब्लॉक संयोजक प्रदीप यादव जिले भर में बड़े पैमाने पर शिक्षकों-कर्मचारियों को संगठित करने में जुटे हैं। पीएसपीएसए ने उनके प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह संघर्ष निर्णायक मोड़ पर है और सरकार को कर्मचारियों की पीड़ा समझते हुए त्वरित निर्णय लेना चाहिए।
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पुरानी पेंशन की जरूरत बताते हुए संजीव ने कहा कि,
“पेंशन केवल आर्थिक सहारा नहीं, बल्कि सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक है। एक कर्मचारी अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ वर्ष सेवा में लगा देता है। कार्यकाल समाप्त होने के बाद बढ़ती महँगाई, स्वास्थ्य खर्च और उम्र की असुरक्षाएँ जीवन को कठिन बना देती हैं। एनपीएस के तहत मिलने वाली राशि भविष्य सुरक्षित करने के लिए बिल्कुल पर्याप्त नहीं है। सरकार सुरक्षित बुढ़ापे की गारंटी देने के बजाय जोखिमभरी व्यवस्था थोप रही है, जो किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।”
पीएसपीएसए के जिला महामंत्री प्रदीप कुमार वर्मा ने जिले के सभी शिक्षकों से अपील किया कि “25 नवंबर को दिल्ली पहुँचकर इस निर्णायक लड़ाई में शामिल हों। यह केवल पेंशन का नहीं, बल्कि हमारे भविष्य, सम्मान और सुरक्षित बुढ़ापे का प्रश्न है। पुरानी पेंशन बहाल होने तक संघर्ष जारी रहेगा।”
उन्होंने कहा कि नेताओं ने आज भी अपने लिए सुरक्षित पेंशन व्यवस्था बनाए रखी है, जबकि कर्मचारियों को असुरक्षित एनपीएस के हवाले किया गया है। यह अन्यायपूर्ण भेदभाव तुरंत समाप्त होना चाहिए। सरकार कर्मचारियों के भविष्य को सुरक्षित करने के बजाय जोखिम में डाल रही है और यही कारण है कि यह आंदोलन निरंतर और अधिक मजबूत होता जा रहा है।


