‘पति-पत्नी के रिश्तों पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी’, कहा – लंबे समय तक अलग रहना क्रूरता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुलह की संभावना न होने पर पति-पत्नी का लंबे समय तक अलग रहना मानसिक क्रूरता है। कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत 24 साल पुरानी शादी खत्म की।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम वैवाहिक विवाद में स्पष्ट किया है कि यदि पति-पत्नी के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है और वे लंबे समय से अलग रह रहे हैं, तो ऐसी स्थिति दोनों पक्षों के लिए मानसिक क्रूरता के समान है। शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए 24 वर्षों से अलग रह रहे एक दंपति की शादी को समाप्त कर दिया।

जस्टिस मनमोहन और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि संबंधित दंपति की शादी 4 अगस्त 2000 को हुई थी, लेकिन मात्र दो वर्षों के भीतर ही दोनों वैवाहिक विवाद में उलझ गए और वर्ष 2003 से अलग रह रहे हैं। अदालत ने नोट किया कि बीते 24 वर्षों में कई प्रयासों के बावजूद दोनों पक्षों के बीच सुलह नहीं हो सकी।

पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, जहां विवाह केवल कागजों पर बना रह जाता है और वैवाहिक मुकदमेबाजी वर्षों तक चलती रहती है, उसे जारी रखना न तो पक्षकारों के हित में है और न ही समाज के। अदालत ने कहा कि लंबे समय तक लंबित वैवाहिक विवाद केवल मानसिक पीड़ा और क्रूरता को बढ़ाता है।

हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया

सुप्रीम कोर्ट ने शिलांग के अतिरिक्त उपायुक्त द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को बरकरार रखा और उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पत्नी की याचिका पर विवाह को बहाल किया गया था। पीठ ने कहा कि पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन को लेकर दृष्टिकोण में बुनियादी मतभेद हैं और दोनों ने लंबे समय तक साथ रहने से स्पष्ट रूप से इनकार किया है।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वैवाहिक मामलों में यह तय करना न्यायालय या समाज का काम नहीं है कि किस पक्ष का नजरिया सही है। एक-दूसरे के साथ सामंजस्य से इनकार करना ही मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।

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शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में तलाक देने से किसी तीसरे पक्ष पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि दंपति की कोई संतान नहीं है। कोर्ट ने दोहराया कि अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुकी शादी को बनाए रखना विवाह की पवित्रता नहीं, बल्कि पीड़ा को बढ़ाता है।

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