
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि दो वयस्कों के बीच सहमति से बने संबंध को बाद में आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता। अदालत ने यह टिप्पणी सोमवार को उस समय की, जब उसने औरंगाबाद के एक वकील के खिलाफ दर्ज बलात्कार के मामले को रद्द कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल रिश्ते का टूट जाना ही बलात्कार का आधार नहीं बन सकता।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि यदि किसी पुरुष ने शादी का झूठा वादा किया था, तो यह साबित होना चाहिए कि वह वादा शुरुआत से ही धोखापूर्ण था और उसी गलत आधार पर महिला की सहमति प्राप्त की गई थी। पीठ ने दो टूक कहा कि सहज सहमति से बना संबंध, जब समाप्त हो जाए, तो उसे आपराधिक मुकदमे में बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
पीठ ने कहा कि बलात्कार और सहमति आधारित यौन संबंधों में स्पष्ट अंतर है। अदालत को यह देखना आवश्यक है कि क्या आरोपी वास्तव में पीड़िता से शादी करना चाहता था, या केवल शारीरिक संबंध बनाने के उद्देश्य से झूठा वादा किया गया था। अदालत ने कहा कि हर असफल रिश्ता बलात्कार का मामला नहीं बन सकता, अन्यथा इससे न केवल अपराध की गंभीरता कम होगी, बल्कि आरोपी पर अनावश्यक कलंक भी लगेगा।
इस मामले में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले वकील पर लगे आरोपों को देखते हुए एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि उपलब्ध तथ्यों से यह स्पष्ट है कि दोनों वयस्कों के बीच तीन साल से अधिक समय तक सहमति आधारित रिश्ता चलता रहा। इस दौरान महिला ने कभी भी जबरदस्ती, धमकी या सहमति की कमी का आरोप नहीं लगाया।
मामला 2024 में छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) में दर्ज एफआईआर से जुड़ा है। शिकायतकर्ता एक विवाहित महिला है जो अपने पति से अलग रह रही थी। वह साल 2022 में वकील से भरण-पोषण के मामले में कानूनी सहायता लेने के दौरान मिली। धीरे-धीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और शारीरिक संबंध स्थापित हुए। महिला का आरोप था कि वकील ने शादी का वादा किया, कई बार गर्भपात भी कराया और अंत में शादी से इनकार कर दिया।
वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि मामला प्रतिशोधवश दर्ज कराया गया है और वह महिला द्वारा मांगे गए 1.5 लाख रुपये देने को तैयार नहीं था, जिसके बाद यह शिकायत की गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपलब्ध रिकॉर्ड से यह साबित नहीं होता कि वकील का शादी का वादा शुरुआत से झूठा था। तीन वर्षों तक लगातार मुलाकातें और आपसी सहमति से अंतरंगता इस बात का संकेत हैं कि संबंध स्वेच्छा पर आधारित था।
अदालत ने कहा, स्नेह और आपसी सहमति से बने संबंधों को सिर्फ इसलिए अपराध नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि विवाह का वादा पूरा नहीं हुआ। अदालत ने चेतावनी दी कि असफल रिश्तों में बलात्कार प्रावधानों का दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है और इससे न्याय प्रणाली पर अनावश्यक बोझ पड़ता है।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि सहमति को बाद में पूर्वव्यापी रूप से वापस नहीं लिया जा सकता। महिला एक शिक्षित और बालिग व्यक्ति थी जिसने अपनी इच्छा से यह रिश्ता आगे बढ़ाया। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में अभियोजन जारी रखना न्यायालय के दुरुपयोग के समान होगा।



