
SIR : विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर देश में एक बार फिर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। मतदाता सूची को अद्यतन और विश्वसनीय बनाने की इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। जबकि चुनाव आयोग का कहना है कि एसआईआर पारदर्शिता, सत्यापन और लोकतांत्रिक शुचिता के लिए एक अनिवार्य कदम है।
विवाद तब बढ़ा जब सुप्रीम कोर्ट में विपक्ष ने एसआईआर को अधिकारों पर हमला और राजनीतिक पक्षपात बताया। लेकिन अदालत ने टिप्पणी की कि अब तक, विशेष रूप से बिहार में, किसी भी मतदाता ने शिकायत नहीं की कि उसका नाम सूची से हटाया गया है। उल्लेखनीय है कि बिहार में एसआईआर के दौरान विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई ठोस साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किया जा सका था।
देश के 12 राज्यों में जारी इस प्रक्रिया में अब तक लगभग 65 प्रतिशत फॉर्म जमा किए जा चुके हैं, जो दर्शाता है कि आम जनता इसका हिस्सा बनने में रुचि दिखा रही है। चुनाव आयोग के अनुसार मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर त्रुटियां – दोहरे नाम, मृत व्यक्तियों की प्रविष्टियां, स्थानांतरित लोगों के रिकॉर्ड और संदिग्ध पहचान चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। एसआईआर का उद्देश्य इन्हीं विसंगतियों को दूर करना है।
कुछ दलों का समीकरण हो सकता है प्रभावित
विपक्ष का तर्क है कि यह प्रक्रिया कुछ वर्गों को लक्ष्य बनाकर की जा रही है। हालांकि आयोग का कहना है कि एसआईआर किसी समुदाय या क्षेत्र के खिलाफ नहीं, बल्कि प्रत्येक पात्र मतदाता की पहचान के सत्यापन पर आधारित है। दूसरी ओर, विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी घुसपैठ, सीमावर्ती इलाकों में अनियंत्रित प्रवासन और स्थानीय स्तर पर राजनीतिक संरक्षण के कारण अनेक राज्यों में मतदाता सूची पर प्रश्न उठते रहे हैं। ऐसे में सत्यापन लोकतांत्रिक मजबूती का आवश्यक हिस्सा है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार एसआईआर का विरोध इस आशंका से भी जुड़ा हो सकता है कि मतदाता सूची के शुद्ध होने से कुछ दलों का चुनावी समीकरण प्रभावित हो सकता है। हालांकि चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह कोई राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुधार है, जिसका मकसद केवल यह सुनिश्चित करना है कि मताधिकार का उपयोग वही करे जो इसके वैध रूप से पात्र हैं।
एसआईआर समर्थकों की राय
एसआईआर के समर्थकों का कहना है कि जब तक मतदाता सूची त्रुटिरहित नहीं होगी, तब तक चुनावों की पारदर्शिता और परिणामों पर भरोसा कमजोर रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही यह प्रक्रिया और भी अधिक निष्पक्ष बन जाती है। इसलिए इसे रोकने के प्रयास लोकतांत्रिक सुधारों को अवरुद्ध करने जैसे हैं।
भारत के लोकतंत्र की विश्वसनीयता को मजबूत करने के लिए मतदाता सूची का स्वच्छ होना आवश्यक है। ऐसे में एसआईआर को राजनीतिक बहस की भेंट चढ़ाने के बजाय इसे पारदर्शी चुनाव प्रणाली की दिशा में उठाया गया सुधारात्मक कदम समझा जाना चाहिए।



