Rajsthan- गत वर्षाें की भांति इस वर्ष भी प्रेम की पराकाष्ठा का पर्व सांझी सुंदर विलास स्थित कर भवन में आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रिया प्रियतम भगवान राधा कृष्ण की लीलाओं का रंगो एवं फूलों के माध्यम से चित्रण कर आरती एवं पूजन किया गया।
लोक संस्कृति की महक को बिखेरता यह सांझाी पर्व नारी के स्वाभीमान को अभिव्यक्त करता है एवं श्री राधे कृष्ण के प्रेम विहार का उत्सव के साथ पूर्वजों के प्रति श्रृद्धा प्रकट करने, धरती के श्रृंगार, प्रकृति प्रेम के अतिरिक्त कलात्मक सौन्दर्य बोध का संदेश देने वाला पर्व है।
आयोजक उमेश गर्ग ने बताया कि सांझी एक अनूठी परम्परा वैष्णवजन के हर घर के आंगन और तिवारे में बनाने की परम्परा है जो रसकि भक्त राधा रानी के स्वागत के लिए सजाते रहे हैं। राधा रानी अपने पिता वृषभान जी के आंगन में सांझी पितृ पक्ष में प्रतिदिन सजाती थी। उनके भाई एवं परिवार का मंगल हो इसके लिए वह फूल एकत्रित करने के लिए बगीचों में जाती थीं और इसी बहाने श्री राधा कृष्ण का मिलन होता था। उसी मार्यादा को जीवित रखते हुए अविवाहित कन्याएं आज भी पितृ पक्ष में अपने घरों में गाय के गोबर से सांझी सजाती हैं। इसमें राधा कृष्ण की लीलाओं का चित्रण अनेक सम्प्रदाय के र्ग्रंथों में मिलता है।
विश्वास है कि श्री राधा कृष्ण उनकी सांझी को निहारने के लिए अवश्य आते हैं। शुरू में पुष्प और सूखे रंगों से आंगन को सांझी से सजाया जाता था। लेकिन समय के साथ सांझी सिर्फ सांकेतिक रह गयी है। सरसमाधुरी काव्य में सांझी का कुछ इस तरह उल्लेख किया गया है कि सलोनी सांझी आज बनाई, श्यामा संग रंग सो राधे, रचना रची सुहाई। सेवा कुंज सुहावन कीनी, लता पता छवि छाई। कला, प्रेम, भक्ति, एकता, सौहार्द् और सामाजिकता का संदेश देने वाला यह पर्व आज भी हमारी भावनाओं को जींवत रखे हुये है।