
Prayagraj News: छोटे छोटे झगड़े भविष्य के बड़े विवादों की वजह बनते हैं, यदि समय रहते आपसी संवाद से इनका समाधान कर दिया जाए तो अदालतों से मुकदमों का बोझ कम किया जा सकता है। आपसी संवाद और मध्यस्थता इसका कारगर तरीका है। यह बातें अपर महाधिवक्ता अशोक मेहता ने शुक्रवार को गंगा नाथ झा विश्विद्यालय परिसर में प्रतिरोधात्मक न्याय दर्शन विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही।
संगोष्ठी का आयोजन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा स्वर्गीय दीना नाथ बत्रा की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में किया गया था।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता अशोक मेहता ने कई रोचक उदाहरण के द्वारा प्रतिरोधात्मक न्याय के महत्व को समझाया।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कृष्णन वेंकटरमण ने प्राचीन भारतीय न्याय परंपरा में मध्यस्थता के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मिताक्षरा में परिवार, संपत्ति और ऋण तीन प्रमुख विवाद बताए गए हैं। आज भी सबसे अधिक मुकदमे इन्हीं विवादों के हैं। महाभारत के शांति पर्व में भी मध्यस्थता का जिक्र है। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे विश्विद्यालय के निदेशक प्रो ललित कुमार त्रिपाठी ने कहा कि सबसे आवश्यक है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली को बदले। हम उपभोक्ता वादी युग में जी रहे है। भारतीय दर्शन ही इससे बाहर आने का रास्ता है। अतिथियों का स्वागत प्रो देवदत्त सरोदे ने किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतीय भाषा अभियान काशी प्रांत के संयोजक अजय कुमार मिश्र उपस्थित थे। संगोष्ठी में हाई कोर्ट के अधिवक्ता पवन कुमार राव, सत्येंद्र कुमार त्रिपाठी, एस पी शुक्ला, लब्ध प्रतिष्ठ मिश्र, अभिषेक सिंह, भूपेन्द्र कुमार यादव, कुलवीर, स्मृति शुक्ला, आशा परिहार, अमन सिंह बिसेन, शिव पूजन सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ता और विश्विद्यालय के छात्र, छात्राएं उपस्थित थे।



