Prayagraj News: हर साल की तरह इस बार भी नगर निगम प्रयागराज ने मानसून से पहले शहर को जलभराव से मुक्त रखने के बड़े-बड़े दावे किए। दावा किया गया कि नगर क्षेत्र के 145 बड़े नालों की मशीनों और सुपर शाकर तकनीक से सफाई कराई गई, और इसके लिए करीब 10 करोड़ रुपये का बजट खर्च किया गया। लेकिन शनिवार की दोपहर हुई एक घंटे की बारिश ने ही सारे दावों की सच्चाई उजागर कर दी प्रयागराज शहर का शायद ही कोई मोहल्ला बचा हो, जहां जलभराव न हुआ हो।
नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक, शहर के 145 बड़े नालों के अलावा 639 छोटे नाले हैं, जिनकी सफाई मैनपावर के जरिए की जा रही है क्योंकि वहां मशीनें नहीं पहुंच सकतीं। महापौर गणेश चंद्र उमेश केसरवानी का दावा है कि 145 बड़े नालों की सफाई पूरी हो चुकी है और 639 में से 384 नालों की सफाई पूरी कर ली गई है, शेष 70% कार्य भी लगभग पूरा है।
लेकिन जमीनी हकीकत इससे ठीक उलट है। शनिवार की बारिश ने साबित कर दिया कि नगर निगम का काम केवल कागजों तक सीमित रह गया है। पानी सड़कों, गलियों, घरों में भर गया — अल्लापुर, रामबाग, करैली, तेलियरगंज, चौफटका, मीरापुर, नखास कोना, रेलवे स्टेशन, जॉर्जटाउन, सिविल लाइंस आदि कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा।
महापौर के दावों में यह भी कहा गया कि पहली बार सुपर शाकर मशीन का प्रयोग हुआ है, जिससे उन इलाकों की सफाई संभव हुई जहां पहले सफाई नहीं हो पाती थी। उन्होंने दावा किया कि ठेकेदारों को भुगतान मॉनसून के बाद ही किया जाएगा और जहां जलभराव की शिकायत मिलेगी वहां 25% भुगतान रोक दिया जाएगा।
लेकिन बड़ा सवाल यह है —
क्या 10 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी नगर निगम जनता को सूखा रास्ता नहीं दे सका?
और यदि 25% भुगतान रोक भी लिया जाए, तो क्या शेष 7.5 करोड़ रुपये भी नालों में बहा दिए जाएंगे?
जनता की मेहनत की कमाई का यह पैसा यदि सिर्फ दिखावटी सफाई में उड़ाया गया, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है? ठेकेदार की? नगर निगम अधिकारियों की? या फिर खुद महापौर की?
हर साल की तरह इस बार भी नगर निगम के दावे पहली बारिश के पहले ही झूठे साबित हुए हैं। नालों की सफाई और जलनिकासी व्यवस्था पर करोड़ों खर्च होने के बावजूद भी प्रयागराज की जनता को राहत नहीं मिल सकी।
Prayagraj News: also read- Kaushambhi News: दबंगई के बलबूते अवैध निर्माण कार्य पर उतारू शिक्षक
नगर निगम की ओर से 2025 मानसून से पहले किया गया सफाई अभियान, सुपर शाकर मशीन और ठेकेदारों की निगरानी के वादे — सब बेमानी साबित हुए। जनता फिर डूबी, लेकिन जवाबदेही किसी की नहीं। सवाल अब सिर्फ एक है —
क्या अगले साल फिर यही कहानी दोहराई जाएगी?
रिपोर्ट: राजेश मिश्रा प्रयागराज