Prayagraj News-बौद्ध दर्शन भारतीय संस्कृति की आत्मा : प्रो. एस. पी. शाही

Prayagraj News-इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के प्राचीन इतिहास विभाग की ओर से बृहस्पतिवार को “बौद्ध दर्शन और उसका कला पर प्रभाव” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की ओर से प्रायोजित इस संगोष्ठी में देशभर से आए विद्वानों और प्रतिभागियों ने भाग लिया।
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो. एस. पी. शाही, कुलपति, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया ने कहा कि बौद्ध दर्शन भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यह केवल धार्मिक धारा नहीं, बल्कि कला, संस्कृति और जीवन दृष्टि का आधार रहा है। इसके संरक्षण और अध्ययन से ही हम अपने अतीत को सही मायनों में समझ सकते हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ से आए मुख्य वक्ता प्रो. आनंद सिंह ने कहा कि बुद्ध की प्रतिमाएं मात्र कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं हैं, बल्कि वे समाज की संवेदनाओं और दार्शनिक दृष्टिकोण का सजीव चित्रण करती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बौद्ध कला ने न केवल भारतीय उपमहाद्वीप, बल्कि पूरे एशियाई सांस्कृतिक परिवेश को गहराई से प्रभावित किया है। विशेष वक्ता के रूप में प्रो. गोविंद सिंह, मुख्य मीडिया सलाहकार, उत्तराखंड सरकार तथा प्रो. अनामिका राय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. हर्ष कुमार ने की और धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक प्राचीन इतिहास विभाग के सहायक आचार्य डॉ. अतुल नारायण सिंह ने प्रस्तुत किया।
प्रथम शैक्षणिक सत्र दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक आयोजित हुआ, जिसमें “भारतीय कला पर बौद्ध दर्शन का दार्शनिक प्रभाव एवं बुद्ध प्रतिमा-विकास” विषय पर शोध-पत्र प्रस्तुत किए गए। इस सत्र में प्रो. एच. एन. दुबे और प्रो. गोपाल साहू (इलाहाबाद विश्वविद्यालय), प्रो. तृप्ति धर (रायगंज विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल) तथा प्रो. निरंजन जेना (विश्वभारती, शांतिनिकेतन) ने अपने शोध के निष्कर्ष साझा किए। इस सत्र का संचालन सुचित्रा मजूमदार ने किया।
दूसरा सत्र दोपहर 3 बजे से शाम 5ः30 बजे तक चला। इसका विषय था “बौद्ध कला के क्षेत्रीय स्वरूप एवं भारत से परे उसका विस्तार।” इस सत्र में डॉ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. सुधर्शन चक्रधारी (बीबीएयू, लखनऊ), डॉ. मुकेश कुमार सिंह, डॉ. संजय कुमार कुशवाहा और डॉ. अमित सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) ने बौद्ध कला के विविध पहलुओं और उसके वैश्विक प्रभाव पर विस्तृत चर्चा की। इस सत्र का संचालन डॉ. गार्गी चटर्जी ने किया।
पूरे दिन चले इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि बौद्ध दर्शन और कला का अध्ययन आधुनिक समाज को सांस्कृतिक दृष्टि से गहराई प्रदान करता है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारतीय कला में बौद्ध दर्शन की उपस्थिति केवल सौंदर्यशास्त्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवता, करुणा और शांति की व्यापक दार्शनिक धारा को भी व्यक्त करती है।

रिपोर्ट: राजेश मिश्रा प्रयागराज

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