
Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी कर्मचारी की नियमित नियुक्ति को बिना विधिक प्रक्रिया अपनाए मनमाने तरीके से निरस्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यदि अधिकारियों से प्रशासनिक स्तर पर कोई त्रुटि होती है, तो उसका खामियाजा कर्मचारी को नहीं भुगतना चाहिए।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने हाथरस के वरिष्ठ लिपिक शिव कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए की। कोर्ट ने उनकी अनुकंपा नियुक्ति निरस्त करने के 31 मई 2023 के आदेश को रद्द कर दिया और तत्काल सेवा में बहाल करने तथा समस्त सेवा लाभ प्रदान करने का निर्देश बेसिक शिक्षा अधिकारी हाथरस को दिया है।
मामला क्या था?
याची शिव कुमार के पिता जूनियर हाईस्कूल, हाथरस में सहायक अध्यापक थे, जिनका सेवाकाल के दौरान निधन हो गया। इसके बाद याची ने मृतक आश्रित कोटे के तहत अनुकंपा नियुक्ति हेतु आवेदन किया। उन्होंने सभी जरूरी दस्तावेजों के साथ आवेदन दिया और मां एवं भाई-बहनों के हलफनामे भी संलग्न किए। याची की मां स्वयं अलीगढ़ में सहायक अध्यापक थीं, जिसकी जानकारी भी अधिकारियों के सामने थी।
अधिकारियों ने सभी दस्तावेजों की जाँच व सत्यापन के बाद याची को लिपिक पद पर नियुक्त किया। बाद में उन्हें पदोन्नति और एसीपी वेतनमान भी मिला। लगभग 14 वर्षों की सेवा के उपरांत, एक अज्ञात शिकायत के आधार पर जांच की गई और बिना पर्याप्त आधार के नियुक्ति रद्द कर दी गई।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
याची पर कोई धोखाधड़ी या गलत जानकारी देने का आरोप नहीं है।
नियुक्ति के समय ऐसा कोई निर्धारित फॉर्मेट नहीं था जिसमें मां की सरकारी सेवा का उल्लेख करना अनिवार्य हो।
याची की मां भी उसी विभाग में कार्यरत थीं, फिर भी अधिकारी यह जानकारी पता नहीं लगा सके, यह प्रशासनिक लापरवाही है।
इतने वर्षों बाद नियुक्ति निरस्त करना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।
यदि अधिकारी दोषी हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, न कि कर्मचारी को सजा दी जाए।
अंततः, कोर्ट ने कहा कि याची की नियुक्ति न तो शून्य है और न ही अवैध, अतः उसे रद्द नहीं किया जा सकता। नियुक्ति पूरी तरह नियमपूर्वक और वैध रूप से की गई थी।
यह निर्णय सेवा से निकाले गए कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण नज़ीर माना जा रहा है।
रिपोर्ट: राजेश मिश्रा प्रयागराज