
Prayagraj News- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 190 में 193 के तहत कोर्ट अपनी जानकारी के आधार पर चार्जशीट से बाहर आरोपी के खिलाफ सम्मन जारी कर सकती है किंतु पाक्सो एक्ट की धारा 33 में यह अधिकार विशेष जज को नहीं है। वह पुलिस रिपोर्ट या कंप्लेंट पर ही संज्ञान लेकर सम्मन जारी कर सकती है।अपनी जानकारी के आधार पर पाक्सो एक्ट के विशेष जज को विवेचना में अलग हुए आरोपी को सम्मन जारी करने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने अपर सत्र न्यायाधीश विशेष जज पाक्सो एक्ट बरेली के याचियों के विरूद्ध जारी सम्मन आदेश 29 मई 24 को अवैध करार देते हुए रद कर दिया है और विशेष अदालत को नियमानुसार नए सिरे से संज्ञान लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि याचियों के खिलाफ जारी सम्मन ही रद किया गया है। चार्जशीट में शामिल आरोपी के खिलाफ केस कार्यवाही चलेगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने दिशा व एक अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता संतोष कुमार सिंह ने बहस की। इनका कहना था कि विशारतगंज थाने में याचीगण के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363 366 व 120 बी तथा पाक्सो एक्ट की धारा 16/17 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
विवेचना अधिकारी ने याची एक का नाम एफआईआर में नहीं होने व चार्जसीट में शामिल न करने तथा याची दो के खिलाफ सबूत न मिलने के कारण चार्जशीट से बाहर कर दिया। केवल एक आरोपी अजीत के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। किंतु विशेष जज पाक्सो ने आरोपी सहित याचियों के खिलाफ सम्मन जारी कर तलब किया। जिसकी वैधता को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि विशेष जज को केवल चार्जशीट में आरोपी या कंप्लेंट मिलने पर ही संज्ञान लेकर सम्मन जारी करने का अधिकार है। याचियों के खिलाफ न तो चार्जशीट है और न ही कोई कंप्लेंट दाखिल है। इसलिए सम्मन आदेश सहित केस कार्यवाही रद किया जाए। कोर्ट ने कानूनी उपबंधो पर विचार किया और विशेष जज के आदेश को रद कर दिया।
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रिपोर्ट: राजेश मिश्रा प्रयागराज