
Tribal Pride Day : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय नायकों के योगदान को लंबे समय तक इतिहास में अपेक्षित स्थान नहीं मिल सका था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह स्थिति तेजी से बदली है। सरकार की पहल पर अब जनजातीय वीरों की कहानियाँ स्मृतियों से निकलकर राष्ट्रीय विरासत में परिलक्षित हो रही हैं – चाहे वह स्मारकों का निर्माण हो, संग्रहालयों की स्थापना, या फिर उनके वंशजों का सम्मान।
जनजातीय गौरव दिवस: राष्ट्रव्यापी पहचान का नया अध्याय
मोदी सरकार ने 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ घोषित कर एक ऐतिहासिक कदम उठाया। यह तिथि आदिवासी आंदोलन के महानायक भगवान बिरसा मुण्डा की जन्मजयंती को समर्पित है।
यह उत्सव अब एक सप्ताह तक देशभर में आयोजित कार्यक्रमों सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, प्रदर्शनियों और जनजातीय गाथाओं के प्रसार का माध्यम बन चुका है।
ऐतिहासिक नायकों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान
2023 में रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती पर केंद्र ने राष्ट्रीय समारोह आयोजित किए। हूल दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने सिद्धो-कान्हो, फूलो-झानो और संथाल आंदोलन के अन्य वीरों को स्मरण किया। प्रधानमंत्री मोदी झारखंड के उलिहातु में बिरसा मुण्डा की जन्मस्थली पर श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले पहले प्रधानमंत्री भी बने।
जनजातीय वंशजों से सीधा संवाद: सम्मान का नया आयाम
प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण की सबसे विशिष्ट बात जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों से सीधा संवाद और सम्मान है। ओडिशा में उन्होंने पाइका विद्रोह के योद्धाओं बक्शी जगबंधु, रिंडो माझी, लक्ष्मी पांडा के परिवारों को सम्मानित किया।
उन्होंने छत्तीसगढ़ के शहीद वीर नारायण सिंह के परिजनों से मुलाकात की तथा उनके योगदान को राष्ट्रीय स्मृति में स्थायी रूप से स्थापित करने की प्रतिबद्धता दोहराई।
स्मारक और संग्रहालयों से विस्तार पाती विरासत
देशभर में जनजातीय वीरों के सम्मान में स्मारकों और संग्रहालयों के निर्माण को गति मिली है। ‘जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय’ योजना के तहत 11 संग्रहालय स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें रांची, छिंदवाड़ा और जबलपुर के संग्रहालय जनता को समर्पित किए जा चुके हैं।
- जबलपुर में रानी दुर्गावती के स्मारक एवं उद्यान का भूमि पूजन भी स्वयं प्रधानमंत्री ने किया।
- रायपुर में देश का पहला डिजिटल जनजातीय संग्रहालय
- अल्लूरी सीताराम राजू की 30 फुट ऊँची प्रतिमा का अनावरण
- रानी गाइदिन्ल्यू की स्मृति में विशेष संग्रहालय
- भोपाल में रानी कमलापति और जननायक टंट्या भील के नाम पर स्टेशन व शिक्षण संस्थान
ये पहलें जनजातीय इतिहास को भारत के सार्वजनिक जीवन में दृश्यमान पहचान दिला रही हैं।
साहित्य और प्रकाशनों के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुँच
सरकार ने ‘आदि शौर्य’ ई-बुक, कॉफी-टेबल पुस्तकों और अमर चित्र कथा की कॉमिक श्रृंखला के ज़रिए जनजातीय योद्धाओं को नई पीढ़ी से जोड़ने का प्रयास किया है। इसके अलावा बिरसा मुण्डा, रानी गाइदिन्ल्यू और पाइका विद्रोह की स्मृति में विशेष सिक्के और डाक टिकट भी जारी किए गए हैं।
एक नई राष्ट्रीय कथा का उदय
प्रधानमंत्री मोदी की पहलों ने जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों को इतिहास के हाशिये से उठाकर राष्ट्रीय कथा के केंद्र में स्थापित कर दिया है। बिरसा मुण्डा, अल्लूरी सीताराम राजू से लेकर वीर नारायण सिंह तक – इन नायकों की गाथाएँ अब केवल स्मरण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना का सशक्त भाग बन चुकी हैं।
यह भी पढ़ें – Bihar Election : ‘लोहा लोहे को काटता है’, बिहार में प्रचंड जीत के बाद ऐसा क्यों बोले पीएम मोदी



