कांग्रेस की किसान विरोधी नीतियों को सुधारने के लिए अभी और काम जरूरी, अमस में बोले पीएम मोदी

असम के नम्रूप में खाद संयंत्र की नींव रखते हुए पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस की किसान विरोधी नीतियों से पैदा समस्याओं को सुधारने के लिए अभी और काम जरूरी है। यूरिया उत्पादन बढ़ाने पर जोर।

गुवाहाटी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि दशकों तक केंद्र में रही कांग्रेस सरकारों ने किसानों की जरूरतों को नजरअंदाज किया, जिसका खामियाजा देश के कृषि क्षेत्र को भुगतना पड़ा। उन्होंने कहा कि बीते 11 वर्षों में उनकी सरकार ने किसान हित में कई ठोस कदम उठाए हैं, लेकिन कांग्रेस की नीतियों से पैदा हुई समस्याओं को पूरी तरह खत्म करने के लिए अभी और प्रयास जरूरी हैं।

असम के डिब्रूगढ़ जिले के नम्रूप में अमोनिया-यूरिया खाद संयंत्र की आधारशिला रखने के बाद एक जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने में किसानों की भूमिका अहम है। उन्होंने कहा कि किसानों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में यूरिया उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है और नया खाद संयंत्र इस दिशा में बड़ा कदम है।

प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि पिछली कांग्रेस सरकारें नम्रूप स्थित पुराने खाद संयंत्र को आधुनिक तकनीक से अपग्रेड करने में विफल रहीं, जिसके कारण कई यूनिट बंद हो गईं और किसानों को यूरिया के लिए लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ा। उन्होंने कहा कि अब केंद्र और असम की डबल इंजन सरकारें इन समस्याओं को दूर कर रही हैं।

पीएम मोदी ने बताया कि 2014 में देश में यूरिया का सालाना उत्पादन 22.5 मिलियन मीट्रिक टन था, जो अब बढ़कर 30.6 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है। उन्होंने कहा कि देश की कुल जरूरत करीब 38 मिलियन मीट्रिक टन है और सरकार जल्द इस कमी को भी पूरा करने की दिशा में काम कर रही है। उन्होंने किसानों से यूरिया का संतुलित उपयोग करने और मिट्टी की सेहत बनाए रखने की अपील की।

प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप भी लगाया और कहा कि बीजेपी असम और देश के हितों की मजबूती से रक्षा कर रही है।

नम्रूप खाद संयंत्र की खास बातें

नम्रूप में बनने वाला नया खाद संयंत्र असम वैली फर्टिलाइज़र एंड केमिकल्स कंपनी लिमिटेड (AVFCCL) के तहत स्थापित किया जाएगा। करीब ₹10,601 करोड़ की लागत से बनने वाले इस प्लांट की सालाना उत्पादन क्षमता 1.27 मिलियन मीट्रिक टन होगी। इसके 48 महीनों में शुरू होने की उम्मीद है, जिससे उत्तर-पूर्व, बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में यूरिया की मांग को पूरा किया जा सकेगा। यह परियोजना ऊर्जा दक्ष होने के साथ-साथ क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगी।

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