
पटना। महावीर कैंसर संस्थान (एमसीएस), पटना द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन में स्तनपान कराने वाली कुछ महिलाओं के दूध में यूरेनियम की मामूली मात्रा पाए जाने के बाद माता-पिता में चिंता बढ़ गई थी। लेकिन संस्थान के डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने सोमवार को प्रेस वार्ता कर स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि स्तन दूध में अशुद्धियों या संदूषण के बावजूद स्तनपान शिशु के लिए सबसे सुरक्षित और सर्वोत्तम पोषण है और इसे रोकने की कोई आवश्यकता नहीं है।
इंस्टीट्यूट के अधीक्षक एल.बी. सिंह, निदेशक मनीषा सिंह और चिकित्सा अनुसंधान प्रमुख प्रो. अशोक घोष ने कहा कि अध्ययन मुख्य रूप से भूजल में बढ़ते यूरेनियम स्तर पर केंद्रित था। शोध के प्रारंभिक परिणाम बताते हैं कि बिहार के कई जिलों में भूजल में यूरेनियम का स्तर बढ़ रहा है, जिसके प्रभाव विभिन्न जैविक स्रोतों में दिखाई देना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि यह शोध छोटे पैमाने पर किया गया था, इसलिए बड़े स्तर पर निष्कर्ष निकालने से पहले और अध्ययन आवश्यक है।
यूरेनियम मौजूद, फिर भी स्तनपान सुरक्षित
डॉक्टरों ने स्पष्ट किया कि संदूषण पाए जाने के बावजूद स्तनपान सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि स्तनपान को रोकने की कोई मेडिकल वजह नहीं है। यह नवजात को पोषण देने का सर्वोत्तम तरीका है, और यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी बेहद महत्वपूर्ण है।
अध्ययन में बिहार के छह जिलों – भोजपुर, बेगूसराय, खगड़िया, नालंदा, समस्तीपुर और कटिहार की 17 से 35 वर्ष की 40 स्तनपान कराने वाली महिलाओं के दूध के नमूने जांचे गए। इनमें यूरेनियम की सांद्रता 0 से 5.5 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक पाई गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्तन दूध में यूरेनियम की कोई निर्धारित सुरक्षित सीमा मौजूद नहीं है, इसलिए इसकी तुलना किसी मानक से नहीं की जा सकती।
शिशुओं पर प्रभाव कम, कैंसर का जोखिम नहीं
अध्ययन में यह भी पाया गया कि 70 प्रतिशत शिशुओं में गैर-कैंसरजन्य स्वास्थ्य प्रभाव की संभावना देखी गई, हालांकि डॉक्टरों ने स्पष्ट किया कि कैंसर का कोई जोखिम नहीं मिला है। विशेषज्ञों का मानना है कि भूजल में बढ़ते यूरेनियम स्तर का प्रभाव मानव शरीर के अन्य अंगों पर अधिक पड़ सकता है, इसलिए पानी की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
प्रो. घोष, जो बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं, ने बताया कि भूजल में यूरेनियम संदूषण अब भारत के 18 राज्यों के 151 जिलों में एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती बन चुका है। बिहार के कई जिले पहले भी इसके दायरे में आए हैं।
इन जिलों के पानी में पहले भी मिला था यूरेनियम
अलग-अलग वैज्ञानिक अध्ययनों में इससे पहले बिहार के 11 जिलों – गोपालगंज, सारण, सीवान, पूर्वी चंपारण, पटना, वैशाली, नवादा, नालंदा, सुपौल, कटिहार और भागलपुर के भूजल में यूरेनियम मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है। नए अध्ययन के लिए नमूने इनमें से छह जिलों से लिए गए।
विशेषज्ञों ने कहा कि जिन क्षेत्रों में भूजल संदूषित मिलता है, वहां यूरेनियम का स्रोत पेयजल, भूमिगत चट्टानें या खाद्य श्रृंखला भी हो सकती है। इसलिए सुरक्षित पेयजल नीति अपनाना और नियमित परीक्षण बेहद आवश्यक है।
घबराएं नहीं, सतर्क रहें
डॉक्टरों ने दोहराया कि स्तन दूध में पाए गए यूरेनियम का स्तर इतना कम है कि यह शिशुओं के लिए किसी गंभीर खतरे का कारण नहीं है। लेकिन भूजल में बढ़ते यूरेनियम स्तर को लेकर सतर्क रहना और आगे विस्तृत शोध करना जरूरी है।
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