
Palghar Sadhu Lynching Case. बॉम्बे हाई कोर्ट ने अप्रैल 2020 में महाराष्ट्र के पालघर जिले में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की मॉब लिंचिंग कर हत्या किए जाने के मामले में चार आरोपियों को ज़मानत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया पर्याप्त सबूत मौजूद हैं और ऐसे मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाज के व्यापक हित के बीच संतुलन आवश्यक है।
जस्टिस नीला गोखले ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता भले ही अत्यंत मूल्यवान हो, लेकिन हर परिस्थिति में उसे सर्वोपरि नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि आरोपी की स्वतंत्रता मामले की प्रकृति और परिस्थितियों पर निर्भर करती है और कई बार समुदाय का सामूहिक हित व्यक्तिगत अधिकार से ऊपर हो सकता है।
ज़मानत याचिका दाखिल करने वाले आरोपियों में राजेश राव, सुनील दल्वी, सजनुआ बर्कुड और विनोद राव शामिल हैं। उन्होंने लंबे समय से जेल में बंद रहने और समानता के आधार पर राहत की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील दी कि इस मामले में अब तक 42 आरोपियों को ज़मानत दी जा चुकी है।
हालांकि, हाई कोर्ट ने कहा कि मॉब लिंचिंग जैसे गंभीर मामलों में समानता का आधार लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि हर आरोपी की भूमिका अलग-अलग होती है। अदालत ने यह भी माना कि इस मामले में आरोपियों की भूमिका से जुड़े साक्ष्य प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ जाते हैं।
कोर्ट ने इसके साथ ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को निर्देश दिया कि वह इस संवेदनशील मामले की जांच जल्द से जल्द पूरी करे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 14 अप्रैल 2020 को कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान पालघर जिले में ग्रामीणों की एक भीड़ ने दो साधुओं और उनके ड्राइवर पर यह शक जताते हुए हमला कर दिया कि वे बच्चे अगवा करने वाले हैं। इस हमले में तीनों की मौके पर ही मौत हो गई थी। जब पुलिस टीम उन्हें बचाने पहुंची तो भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर भी हमला किया था।
इस मामले में कुल 126 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था, जिसकी जांच बाद में CBI को सौंप दी गई। अभियोजन का दावा है कि CCTV फुटेज में चारों आरोपी पीड़ितों और उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे पुलिसकर्मियों पर हमला करते हुए दिखाई देते हैं।



