
Pakistan Independence Day: आज, 14 अगस्त को जहां पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, वहीं भारत के लिए यह दिन 1947 के उस भयानक विभाजन की याद दिलाता है, जिसने लाखों लोगों की जिंदगी छीन ली। इस त्रासदी के केंद्र में थे मोहम्मद अली जिन्ना, जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने उपमहाद्वीप को दो टुकड़ों में बांट दिया।
जिन्ना: एकता के पैरोकार से अलगाववाद के जनक तक
मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार के रूप में की थी। वह कांग्रेस के मंच पर गांधी और नेहरू के साथ मिलकर आज़ादी का सपना देखते थे। लेकिन 1930 के दशक के अंत में सत्ता की कुर्सी और अपनी अहमियत की चिंता ने उन्हें एक अलग रास्ते पर ला खड़ा किया। उन्हें डर था कि आज़ाद भारत में उनका कद गांधी और नेहरू के मुकाबले छोटा पड़ जाएगा। इसी महत्वाकांक्षा ने उन्हें एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग को अपना मिशन बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसकी नींव 1940 के लाहौर प्रस्ताव में रखी गई।
विभाजन का सच और जिन्ना की छिपी बीमारी
आश्चर्य की बात यह है कि “कायद-ए-आजम” कहे जाने वाले जिन्ना की जीवनशैली इस्लामी पहचान से बिल्कुल विपरीत थी। वह सूट-बूट पहनने वाले, व्हिस्की पीने वाले और महंगे सिगार के शौकीन थे। सबसे बड़ा सच यह है कि पाकिस्तान बनने के समय वह तपेदिक (टीबी) जैसी घातक बीमारी से पीड़ित थे, जिसे उन्होंने छिपा रखा था। उन्हें पता था कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने विभाजन की आग लगाई, जिसके परिणामस्वरूप 15 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और करोड़ों बेघर हुए। लॉर्ड माउंटबेटन का मानना था कि अगर जिन्ना दो साल पहले मर जाते तो शायद देश का विभाजन टाला जा सकता था।
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एक विरासत, जो आज भी जल रही है
14 अगस्त, 1947 को जिन्ना पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरल बने, लेकिन सिर्फ 13 महीने बाद, 11 सितंबर, 1948 को उनकी मृत्यु हो गई। आज पाकिस्तान जिन समस्याओं – आतंकवाद, आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता – से जूझ रहा है, उसकी जड़ें उसी विभाजन की बुनियाद में हैं जो नफरत और झूठी पहचान पर आधारित थी।