One Tree in Mother’s Name campaign: प्रयागराज के सैदाबाद महाविद्यालय में वृक्षारोपण महाअभियान

One Tree in Mother’s Name campaign: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आह्वान पर छात्रों ने मातृ सम्मान के लिए लगाए पौधे

प्रयागराज (सैदाबाद), 2025 — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक पेड़ मां के नाम” आह्वान और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रेरणा से ‘पेड़ लगाओ, पेड़ बचाओ’ जन अभियान 2025 के अंतर्गत आज राजकीय महाविद्यालय, सैदाबाद में एक विशेष वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

छात्रों ने पर्यावरण और मां दोनों को किया समर्पित

“मां के प्यार की छांव, पेड़ से मिले अब ठांव”

इस अभियान में राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) के स्वयंसेवकों एवं महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। हर छात्र ने अपनी मां के सम्मान में एक पौधा लगाकर पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ मातृ श्रद्धा का संदेश दिया।

महाविद्यालय प्राचार्य ने किया अभियान का शुभारंभ

कार्यक्रम का उद्घाटन महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आशीष जोशी ने स्वयं पौधा लगाकर किया। अपने प्रेरक उद्बोधन में उन्होंने कहा:

“यह केवल वृक्षारोपण नहीं, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव है, जो समाज में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करता है। मां के नाम पर लगाया गया हर पेड़ उतना ही मूल्यवान है जितना मां का प्रेम।”

NSS प्रभारीद्वय ने दिए दिशा-निर्देश

राष्ट्रीय सेवा योजना के प्रभारी डॉ. मारुति शरण ओझा एवं डॉ. अजय यादव के निर्देशन में छात्रों ने उत्साहपूर्वक पौधे लगाए और यह संकल्प लिया कि:

“हम इन पौधों की देखभाल उसी तरह करेंगे जैसे मां हमारी करती हैं।”

शिक्षकों और छात्रों की भारी भागीदारी

इस वृक्षारोपण कार्यक्रम में महाविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षकों, कर्मचारियों और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। प्रमुख उपस्थिति में शामिल रहे:

  • प्रो. आर. पी. सिंह, प्रो. सुरेंद्र सिंह यादव, प्रो. रेखा वर्मा

  • डॉ. सीमा जैन, डॉ. जूही सिंह, डॉ. स्वाति चौरसिया

  • डॉ. संदीप सिंह, डॉ. संतोष सिंह, डॉ. जंग बहादुर यादव

  • डॉ. यशवंत यादव, डॉ. विशालाक्षी सिंह, डॉ. गरिमा

  • डॉ. माला श्रीवास्तव, डॉ. प्रज्ञा मिश्रा, डॉ. अमित कुमार

  • डॉ. प्रत्यंचा पांडेय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, श्री संजीव सिंह आदि

एक भावनात्मक आंदोलन बनता जा रहा है यह अभियान

‘एक पेड़ मां के नाम’ सिर्फ एक पर्यावरणीय पहल नहीं रह गया है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और भावनात्मक आंदोलन बनता जा रहा है। यह अभियान भविष्य की पीढ़ियों को प्रकृति और परिवार—दोनों के प्रति संवेदनशील बना रहा है।

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