
New Delhi News-राष्ट्रीय हित हमेशा से भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धांत रहा है और आगे भी रहेगा। भारत किसी भी बाहरी दबाव या अंतरराष्ट्रीय समीकरण के तहत अपने हितों से समझौता नहीं करेगा।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में आयोजित, अरावली शिखर सम्मेलन के उद्घाटन भाषण के दौरान यह टिप्पणी की।
जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (एसआईएस) की 70वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित इस सम्मेलन का आयोजन विदेश मंत्रालय और चिंतन रिसर्च फाउंडेशन के सहयोग से किया गया।
सम्मेलन के दौरान एक छात्र के प्रश्न का जवाब देते हुए विदेश मंत्री ने कहा भारत ने हमेशा राष्ट्रीय हित में निर्णय लिए हैं। अतीत में भी भारत-सोवियत संबंधों के दौर में हमारी नीतियां इसी दृष्टिकोण से बनाई गई थीं। उस समय हम अमेरिका-पाकिस्तान-चीन त्रिकोण से घिरे हुए थे। ऐसे में तटस्थ रहना संभव नहीं था और हमें वही करना था, जो हमारे हित में था। भारत की विदेश नीति समय और परिस्थितियों से निर्धारित होती रही है। सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं, मगर अंतिम निर्णय में राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है।
विदेश मंत्रालय के अनुसार ‘भारत और विश्व व्यवस्था- 2047 की तैयारी’ विषय पर आयोजित सम्मेलन में जयशंकर ने भारत की वैश्विक भूमिका पर खुलकर बात की। इसके अलावा उन्होंने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर बात करते हुए कहा कि सोचिए अगर हम आज रणनीतिक स्वायत्तता नहीं अपनाते, तो किस देश के साथ जुड़कर आप अपना भविष्य सौंपना चाहेंगे? विदेश मंत्री ने कहा कि जब दुनिया अस्थिर होती जा रही है, तब बहु-संबंधों और रणनीतिक स्वायत्तता की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है।
वहीं दूसरी ओर यहां आयोजित ट्रस्ट एंड सेफ्टी इंडिया फेस्टिवल 2025 को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत पर एक ‘विशेष जिम्मेदारी’ है, क्योंकि ग्लोबल साउथ के कई देश भारत को प्रेरणा के स्रोत के रूप में देखते हैं। फरवरी 2026 में होने वाले एआई एम्पेक्ट समिट की तैयारियों के तहत आयोजित इस प्री-समिट कार्यक्रम में बोलते हुए विदेश मंत्री ने कहा भारत जैसे समाज के लिए ‘उत्तरदायी एआई’ का मतलब है, स्वदेशी टूल्स और फ्रेमवर्क का विकास, इनोवेटर्स के लिए सेल्फ-असेसमेंट प्रोटोकॉल तैयार करना और संबंधित दिशानिर्देश बनाना – ताकि एआई का विकास, उपयोग एवं संचालन सुरक्षित तथा सभी के लिए सुलभ हो।
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