
Nainital News- नैनीताल जनपद मुख्यालय स्थित विश्वप्रसिद्ध नैनी झील में सूक्ष्म प्लास्टिक प्रदूषण चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है। पर्यावरण प्रदूषण पर आधारित एक अध्ययन में झील के जल व तलछट में सूक्ष्म प्लास्टिक की अत्यधिक मात्रा पाई गई है, जो न केवल पर्यावरण तंत्र बल्कि स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है।
यशी जैन, हरिहरन गोविंदासामी, गुरजीत कौर, निथिन अजीथ, कार्तिक रामासामी, रॉबिन आरएस व पूर्वजा रामाचंद्रन द्वारा किये गये एवं शोध पत्रिका एल्सवियर के ताजा में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार फरवरी 2023 में झील के 16 स्थानों से लिए गए जल व तलछट के नमूनों में सूक्ष्म प्लास्टिक की बड़ी मात्रा मिली है।
झील के जल में प्रति लीटर 2.4 से 88 और तलछट में प्रति ग्राम 0.4 से 10.6 सूक्ष्म प्लास्टिक के कण पाए गए। बड़ा नाला और पश्चिमी किनारों पर सबसे अधिक कण एकत्रित पाए गये। इनमें रेशेदार व खंडित कण प्रमुख हैं, जो मुख्यतः कपड़े, पैकेजिंग व स्थानीय कचरे से उत्पन्न होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार पर्यटन गतिविधियों, 44 नालों से सीधे गिरते अनुपचारित जल व ठोस कचरे ने झील की स्थिति को और बिगाड़ा है।
घरों को आपूर्ति होने वाले ट्यूबवेल के जल में भी सूक्ष्म प्लास्टिक के कण
यही नहीं ट्यूबवेल से लिए गये जल में भी सूक्ष्म प्लास्टिक कण मिले हैं, जिसकी पेयजल के रूप में नगर के घरों में आपूर्ति की जाती है। ये कण शरीर में पहुंचकर गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। अध्ययन में पाए गये पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीइथाइलीन व पॉलीस्टीरीन जैसे बहुलकों में से पॉलीस्टीरीन को सर्वाधिक हानिकारक माना गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है नैनी झील के जल में उपस्थित सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों को जलचर जीव भोजन समझकर निगल लेते हैं, जिससे खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो रही है।
तलछट में इन कणों का जमाव झील की स्थिर जलधारण प्रणाली के कारण अधिक होता है, और झील की जल धारण क्षमता को घटाता और इसके पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित भी करता है। ऐसे में रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि छोटे फिल्टरयुक्त जलशोधन संयंत्रों की स्थापना के साथ नालों से सीधे गिरते अपशिष्ट को रोकना आवश्यक है। अध्ययन से स्पष्ट होता है कि झील को बचाने के लिए तत्काल ठोस कार्ययोजना व प्रभावी कचरा प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता है।
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