
Muzaffarpur Shahid Divas: सोमवार को शहीद खुदीराम बोस के 118वें शहादत दिवस पर मुजफ्फरपुर स्थित शहीद खुदीराम बोस सेंट्रल जेल परिसर में देशभक्ति का माहौल देखने को मिला। जेल को रंगीन बल्बों से सजाया गया था और वहां वह गीत बज रहा था जिसे गाते हुए खुदीराम बोस ने फांसी का फंदा चूमा था: “एक बार विदाई दे मां घूरे आसी, हांसी हांसी परबो फांसी, देखबे जोगोत वासी“।
सुबह 3:50 बजे दी गई श्रद्धांजलि
- शहीदी स्थल: फांसी स्थल पर सुबह 3:50 बजे श्रद्धांजलि दी गई।
- उपस्थिति: तिरहुत प्रक्षेत्र के कमिश्नर, डीएम सुब्रत कुमार सेन, एसएसपी सुशील कुमार और अन्य अधिकारी मौजूद थे।
- पुष्पांजलि: ठीक उसी समय, जब 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी, अधिकारियों और उपस्थित लोगों ने उन्हें सलामी दी और पुष्पांजलि अर्पित की।
सुबह करीब 3 बजे से ही लोग जेल गेट पर इकट्ठा होने लगे थे। अधिकारियों के पहुंचने के बाद हाथ पर मुहर लगाकर सभी को जेल में प्रवेश दिया गया।
मेदिनापुर से पहुंचे लोग लाए खास भेंट
खुदीराम बोस के गृह नगर मेदिनापुर से पहुंचे लोगों ने इस आयोजन को और भी खास बना दिया। वे अपने साथ शहीद के गांव की मिट्टी, 101 राखी और काली मंदिर का प्रसाद लेकर आए थे। उन्होंने फांसी स्थल पर मिट्टी में दो पौधे लगाए और प्रसाद अर्पित किया।
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जेल सेल का दौरा और डीएम का संदेश
श्रद्धांजलि के बाद सभी लोग उस ऐतिहासिक सेल में गए, जहां खुदीराम बोस को फांसी से पहले रखा गया था। डीएम सुब्रत कुमार सेन ने इस अवसर पर कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र में खुदीराम ने हंसते-हंसते फांसी स्वीकार कर युवाओं के लिए अमर प्रेरणा का उदाहरण पेश किया। उन्होंने कहा कि हमें भी देश की एकता और अखंडता के लिए उनके बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए।