
Constitution Day : आज़ाद भारत के संविधान निर्माण की प्रक्रिया दो साल 11 महीने और 18 दिनों की गहन बहस, विचार-विमर्श और संशोधनों का परिणाम थी। संविधान की मसौदा समिति द्वारा तैयार ड्राफ्ट पर संविधान सभा में अनेक सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर लंबी चर्चाएँ हुईं। इन्हीं बहसों के बीच आरक्षण का मुद्दा भी प्रमुख रूप से उभरा, जिस पर विभिन्न सदस्यों ने अपनी राय रखी। रोचक तथ्य यह है कि जहाँ संविधान ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था को स्वीकार किया, वहीं संविधान सभा के कुछ मुस्लिम सदस्यों ने इस प्रावधान का विरोध किया। इनमें प्रमुख नाम थे – तजम्मुल हुसैन और बेगम ऐजाज रसूल।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, तजम्मुल हुसैन ने संविधान सभा में अपने भाषण में कहा था कि “हम सबसे पहले भारतीय हैं और भारतीय रहेंगे। संगठन में शक्ति है और विभाजन से हम कमजोर होते हैं। आरक्षण से समुदायों के बीच दूरी बढ़ेगी, इसलिए हमें इसकी आवश्यकता नहीं है।” उन्होंने आगे बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों से सवाल करते हुए कहा कि क्या वे मुसलमानों को अपने पैरों पर खड़ा होने देंगे और राष्ट्र का अभिन्न हिस्सा बनने देंगे। उनका कहना था कि यदि बहुसंख्यक समुदाय समानता और साझेदारी का भाव रखे, तो धार्मिक आधार पर आरक्षण की आवश्यकता नहीं रह जाती।
बेगम ऐजाज रसूल ने भी संविधान सभा में आरक्षण का विरोध करते हुए कहा था कि “आरक्षण एक आत्मघाती हथियार है, जो अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से अलग कर देता है। यह अलगाववाद और सांप्रदायिकता को जीवित रखता है, जिसे हमेशा के लिए समाप्त कर देना चाहिए।” उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी इस भाषण का उल्लेख करते हुए लिखा कि सामुदायिक आधार पर आरक्षण की मांग अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा से दूर ले जाने वाली और आत्मघाती सोच थी।
तजम्मुल हुसैन का जन्म 19 दिसंबर 1893 को पटना, बिहार में हुआ था। उन्होंने इंग्लैंड के किंग्स कॉलेज, विंबलडन और क्वींस कॉलेज, कैम्ब्रिज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इनर टेम्पल से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1920 में उन्हें लंदन बार में बुलाया गया। इसके बावजूद उन्होंने बिहार लौटकर पटना हाई कोर्ट में वकालत शुरू की और आगे चलकर मुजफ्फरपुर (1928) और पटना (1930) में विशेष लोक अभियोजक बने। 1921 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद वे बिहार के शिया समाज के प्रमुख नेता बने। विधान सभा में उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना की विचारधारा का विरोध किया और सामुदायिक आधार पर सीट आरक्षण खत्म करने की वकालत की।
संविधान दिवस हर साल 26 नवंबर को मनाया जाता है। 26 नवंबर 1949 को ही संविधान सभा ने भारतीय संविधान को अपनाया था, जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 19 नवंबर 2025 को की गई घोषणा के अनुसार, केंद्र सरकार हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाना जारी रखेगी।



