‘देश में बिगड़ रही आर्थिक सेहत’, जानिए देश पर है कितना बड़ा कर्ज का बोझ

वर्तमान में भारत सरकार पर लगभग 200 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है, जबकि सभी राज्यों पर 82 लाख करोड़ रुपये का ऋण बकाया है।

New Delhi. भारत के कई राज्य आज ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां उनकी आर्थिक स्थिति पर ऋण का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकारें बाजार से भारी मात्रा में कर्ज ले रही हैं, लेकिन उसका उपयोग उत्पादक क्षेत्रों के बजाय मुफ्त योजनाओं, बिजली-पानी बिल माफी और सब्सिडी जैसे लोकलुभावन खर्चों में किया जा रहा है। वित्तीय अनुशासन की कमी ने इन राज्यों को कर्ज के जाल में फंसा दिया है।

किसी भी सरकार या संस्था के लिए ऋण लेना तभी तक उचित होता है, जब उससे आय अर्जित कर ब्याज और किश्तों का भुगतान संभव हो। लेकिन कई राज्य अब पुराने ऋणों की किश्त और ब्याज चुकाने के लिए भी नए ऋण ले रहे हैं। यह स्थिति लंबे समय में आर्थिक दिवालियेपन की ओर इशारा करती है।

वर्तमान में भारत सरकार पर लगभग 200 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है, जबकि सभी राज्यों पर 82 लाख करोड़ रुपये का ऋण बकाया है। यानी केंद्र और राज्य मिलाकर कुल 282 लाख करोड़ रुपये का कर्ज भारत के ऊपर है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 81 प्रतिशत है। यह अनुपात विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी खतरनाक माना जाता है।

स्थिर खर्चों में खत्म हो रहा पूरा बजट 

राज्यों की आय का बड़ा हिस्सा वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान में खर्च हो रहा है। पंजाब अपनी कुल आय का 76 फीसदी इन मदों पर खर्च करता है। हिमाचल प्रदेश में यह हिस्सा 79 फीसदी और केरल में 71 फीसदी तक पहुंच गया है। पंजाब अपने बजट का 24 फीसदी सब्सिडी पर खर्च करता है, यानी उसका पूरा बजट स्थिर खर्चों में खत्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में पूंजीगत निवेश (जैसे सड़क, अस्पताल या स्कूल निर्माण) के लिए धन ही नहीं बचता, जिससे रोजगार और विकास दोनों प्रभावित होते हैं।

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वर्ष 2015-16 से 2022-23 के बीच राज्यों के पूंजीगत खर्च में 51 फीसदी की कमी दर्ज हुई है। दिल्ली में 38 फीसदी, पंजाब में 40 फीसदी, आंध्रप्रदेश में 41 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 33 फीसदी कमी आई है। इससे नए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट ठप पड़ गए हैं और आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार सुस्त हो रही है।

वर्तमान में 15 राज्यों का बजटीय घाटा 3 फीसदी की सीमा से ऊपर पहुंच चुका है। हिमाचल प्रदेश का 4.7 फीसदी, मध्य प्रदेश का 4.1 फीसदी, आंध्र प्रदेश का 4.2 फीसदी और पंजाब का 3.8 फीसदी है। यह संकेत है कि इन राज्यों की आय की तुलना में खर्च अनियंत्रित रूप से बढ़ रहा है।

मध्य प्रदेश की वित्तीय स्थिति हो रही कमजोर

हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 5200 करोड़ रुपये का नया कर्ज लेने का निर्णय लिया है ताकिलाड़ली बहना योजना के तहत महिलाओं के खातों में राशि जमा की जा सके। मार्च 2024 तक राज्य पर 3.7 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो अब बढ़कर 4.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह रफ्तार दिखाती है कि प्रदेश की वित्तीय स्थिति तेजी से कमजोर हो रही है।

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले वर्षों में पंजाब, हिमाचल, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य वित्तीय संकट की ओर बढ़ सकते हैं। राज्यों को सब्सिडी और मुफ्त योजनाओं पर नियंत्रण रखते हुए राजस्व बढ़ाने और पूंजीगत निवेश पर ध्यान देना होगा, अन्यथा यह ऋण बोझ उनकी अर्थव्यवस्था को ले डूबेगा।

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भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब राज्य अपनी आय के अनुरूप खर्च करें और कर्ज को उत्पादक निवेश से जोड़ें। अन्यथा, यह विकास ऋण पर निर्भर अर्थव्यवस्था एक दिन अपने ही बोझ से दब जाएगी।

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