Pollution : क्या सांस लेना अब विलासिता है? रिपोर्ट में आए चौंकाने वाले आंकड़ें

भारत गंभीर प्रदूषण संकट से जूझ रहा है। नौजवान नई बीमारियों का शिकार हैं, ऑटिज्म और अवसाद बढ़ रहा है। आने वाली पीढ़ी पर गहरा असर पड़ रहा है।

Pollution. देश, प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। यहां तक कि बूढ़े-बुजुर्ग, सांस रोगी छटपटाहट की स्थिति में हैं। भारत का नौजवान नई-नई बीमारियों का शिकार हो रहा है। स्थितियां यहां तक आ गई हैं कि आने वाली पीढ़ी, गर्भ में भी सुरक्षित नहीं है। यह प्रदूषण पिछले 20 वर्षों में एक दिव्यांग पीढ़ी को जन्म दिया है। ऑटिज्म और मनोरोग जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। नौजवान अवसाद का शिकार हो रहा है। यदि पर्यावरण पर देश और राज्य की सरकारों ने ध्यान न दिया तो आने वाले भारत का नौनिहाल का गंभीर बीमारियों के साथ पदार्पण होगा।

दिल्ली-एनसीआर में हवा एक बार फिर जानलेवा हो चली है। आंखों में जलन, गले में खराश और सिरदर्द अब रोजमर्रा की शिकायत बन गई है। सांस लेना भारी है, और प्रदूषण का यह ज़हर सिर्फ फेफड़ों तक नहीं, बल्कि दिल, गर्भ और मानसिक स्वास्थ्य तक असर डाल रहा है। सवाल यह है – क्या आने वाली पीढ़ियां भी इसी धुएं में सांस लेंगी, या सरकारें मिलकर आसमान फिर से नीला बना पाएंगी?

एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया के अनुसार, वायु प्रदूषण का सबसे अधिक असर गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि हवा में मौजूद सूक्ष्म कण शरीर के भीतर जाकर श्वसन मार्ग में सूजन, सीने में जकड़न और लंबे समय में फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह स्थिति गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए बेहद खतरनाक है।

महिला, प्रसूति एवं बांझपन रोगों की विशेषज्ञ डॉ. सिमरन वर्मा ने बताया कि प्रदूषित हवा गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित कर सकती है। समय से पहले प्रसव, कम वजन वाले शिशु का जन्म और भ्रूण में हृदय या श्वसन संबंधी विकारों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों में अस्थमा, मधुमेह और फेफड़ों की क्षमता में कमी जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसके अलावा गर्भस्थ शिशु के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है।

वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ एक मौसम का संकट नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति बन चुकी है।

आंकड़े चौंकाने वाले

लोकल सर्किल्स के एक सर्वेक्षण में 44,000 से अधिक लोगों की प्रतिक्रियाओं से सामने आया है कि दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद और गाजियाबाद के चार में से तीन घरों में किसी न किसी सदस्य को प्रदूषण से जुड़ी बीमारी ने जकड़ लिया है।

सर्वे के अनुसार, 42 फीसदी घरों में लोगों को गले में खराश और खांसी की शिकायत है। 25 फीसदी ने आंखों में जलन, सिरदर्द और नींद न आने की समस्या बताई। 17 फीसदी लोग सांस लेने में तकलीफ या अस्थमा के बढ़ने से परेशान हैं।

सर्वे में शामिल करीब 44 फीसदी लोगों ने बताया कि उन्होंने बाहरी गतिविधियों को सीमित कर दिया है। कई परिवार एयर प्यूरीफायर और एन-95 मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं। लगभग 30 फीसदी लोग डॉक्टरों से परामर्श ले चुके हैं या लेने की योजना में हैं। कई लोग आयुर्वेदिक पेय, हर्बल काढ़े और इम्यूनिटी बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सहारा ले रहे हैं।

वहीं, दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) का चरण-2 पहले से लागू है। सड़कों पर धूल नियंत्रण के लिए ट्रक-माउंटेड पानी के छिड़काव यंत्र लगाए गए हैं। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि कृत्रिम वर्षा अब दिल्ली के लिए आवश्यकता बन गई है। हम 28 से 30 अक्टूबर के बीच इसका परीक्षण करना चाहते हैं। हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि यह उपाय अस्थायी राहत देगा, लेकिन स्थायी समाधान के लिए औद्योगिक और परिवहन उत्सर्जन पर कड़े कदम उठाने होंगे।

प्रदूषण कम, पर राहत नहीं

पंजाब और हरियाणा में इस साल पराली जलाने के मामलों में 77.5 फीसदी की कमी दर्ज की गई है, बावजूद इसके दिल्ली की हवा अब भी ज़हरीली बनी हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार, स्थानीय धूल, वाहन उत्सर्जन और मौसम की स्थिति (कम हवा और तापमान में गिरावट) प्रदूषण को बढ़ा देती है।

यूपी के शहर भी नहीं बचे

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, दिल्ली का औसत एक्यूआई 261 पर खराब श्रेणी में रहा, लेकिन आनंद विहार में एक्यूआई 412 गंभीर स्तर तक पहुंच गया। नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद में भी हवा बेहद खराब श्रेणी में है। बवाना में एक्यूआई 336, आईटीओ में 248 और द्वारका में 276 दर्ज किया गया।

उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों की स्थिति भी चिंता बढ़ाने वाली है। राजधानी लखनऊ में एक्यूआई 247, गाजियाबाद में एक्यूआई 301, नोएडा में एक्यूआई  295, मेरठ में एक्यूआई  262 और कानपुर में एक्यूआई 276 दर्ज किया गया है।

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