
Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि पत्नी बिना किसी उचित कारण के पति और ससुराल से अलग रह रही है, तो वह गुजारा भत्ते (भरण पोषण) की हकदार नहीं मानी जा सकती। कोर्ट ने मेरठ फैमिली कोर्ट द्वारा पत्नी को आठ हजार रुपये मासिक भरण-पोषण दिए जाने के आदेश को रद्द कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने मेरठ निवासी विपुल अग्रवाल की निगरानी याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
पत्नी ने मध्यस्थता के दौरान भी साथ रहने से किया इनकार
याची के अधिवक्ता रजत ऐरन ने कोर्ट को बताया कि याची की पत्नी निशा अग्रवाल विवाह के कुछ समय बाद ही एक छोटे बच्चे के साथ मायके जाकर रहने लगी और तमाम प्रयासों के बावजूद पति के साथ वापस आने को तैयार नहीं हुई।
यह भी बताया गया कि मध्यस्थता के प्रयासों के दौरान भी पत्नी ने पति के साथ रहने से स्पष्ट इनकार कर दिया। इसके बावजूद पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट मेरठ में भरण-पोषण की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया।
फैसला सीआरपीसी धारा 125(4) का उल्लंघन: हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि फैमिली कोर्ट ने भी अपने आदेश में यह स्वीकार किया था कि पत्नी के पास पति से अलग रहने का कोई वाजिब कारण नहीं है। इसके बावजूद सहानुभूति के आधार पर आठ हजार रुपये मासिक गुजारा भत्ता तय कर दिया गया, जो कि सीआरपीसी की धारा 125(4) का उल्लंघन है।
फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द, पुनः विचार के लिए भेजा गया मामला
हाईकोर्ट ने पति की याचिका स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट के 17 फरवरी के आदेश को भरण पोषण के मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध बताते हुए रद्द कर दिया है। साथ ही मामला मेरठ की फैमिली कोर्ट को पुनः विचार के लिए भेज दिया गया है।