GuruPurnima2025- गुरु की महिमा को समर्पित पर्व, जानिए क्यों और कैसे मनाते हैं

GuruPurnima2025- गुरु सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक मार्ग है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता ह=-098765।हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है। इस वर्ष यह पावन तिथि 21 जुलाई 2025 (सोमवार) को पड़ रही है। यह दिन श्रद्धा, ज्ञान और समर्पण का पर्व है, जब शिष्य अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करते हैं और उनसे जीवन पथ पर अग्रसर होने का आशीर्वाद मांगते हैं।


गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

  • यह दिन महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का वर्गीकरण किया और महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना की।

  • इसलिए इसे ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।

  • बौद्ध धर्म में भी यह दिन अत्यंत पवित्र माना गया है, क्योंकि भगवान बुद्ध ने इसी दिन सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश दिया था।

  • जैन परंपरा में भी इसे भगवान महावीर के प्रथम शिष्य को दीक्षा देने के दिवस के रूप में जाना जाता है।


कैसे मनाते हैं गुरु पूर्णिमा?

  • शिष्य अपने अध्यापक, आध्यात्मिक गुरु या जीवनदर्शक को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं

  • गांवों में आश्रम, अखाड़ों और गुरुकुलों में विशेष पूजन, हवन, ध्यान और प्रवचन होते हैं।

  • शहरों में स्कूल, कॉलेज, योग संस्थान और धार्मिक संगठनों में इस दिन गुरु-वंदना, सत्संग, भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

  • कई लोग सोशल मीडिया के माध्यम से भी अपने गुरुओं को स्मरण और नमन करते हैं।


गांव बनाम शहर: कहां अधिक प्रचलन?

  • गांवों में यह पर्व अधिक पारंपरिक और आध्यात्मिक रूप से जुड़ा होता है, जहां गुरु और शिष्य का संबंध आज भी जीवंत है।

  • शहरों में यह दिन आधुनिक ढंग से मनाया जाता है — स्कूलों में समारोह, योगाश्रमों में कार्यक्रम और ऑनलाइन गुरुओं को सम्मान देने की परंपरा तेजी से बढ़ रही है।

  • लेकिन भावना दोनों जगह एक समान है — गुरु के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा


आधुनिक युग में गुरु पूर्णिमा की प्रासंगिकता

आज जब जीवन तेज रफ्तार और तनाव से भरा हुआ है, गुरु का मार्गदर्शन और मूल्य शिक्षा पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है
गुरु पूर्णिमा हमें यह याद दिलाती है कि चाहे कितनी भी तकनीक आ जाए, संस्कार, चरित्र और जीवन मूल्यों का ज्ञान सिर्फ एक सच्चे गुरु ही दे सकते हैं।

निष्कर्ष:

गुरु पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक संस्कारिक चेतना है।
यह दिन हमें अपने जीवन में आए हर उस व्यक्ति को नमन करने का अवसर देता है जिसने हमें सही दिशा दिखाई — चाहे वह शिक्षक, माता-पिता, आध्यात्मिक गुरु, या जीवन के अनुभव ही क्यों न हों।
इस गुरु पूर्णिमा पर आइए हम सभी मिलकर कहें —
“गुरु बिना ज्ञान नहीं, और ज्ञान बिना जीवन नहीं।”

Show More

Related Articles

Back to top button