
नई दिल्ली। मनरेगा का नाम बदलने के प्रस्ताव और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गंभीर होती वायु प्रदूषण की स्थिति को लेकर केंद्र सरकार और विपक्ष आमने-सामने आ गए हैं। कांग्रेस ने इन दोनों मुद्दों पर सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए सवाल उठाया है कि क्या देश के सामने खड़े वास्तविक और गंभीर मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए प्रतीकों और नामों की राजनीति की जा रही है। केरल की वायनाड लोकसभा सीट से निर्वाचित कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाने की मंशा पर सीधा सवाल करते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया है।
मनरेगा का नाम बदलने संबंधी विधेयक को पारित कराने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने सभी सांसदों को व्हिप जारी कर सदन में मौजूद रहने का निर्देश दिया है। सरकार का कहना है कि यह बदलाव ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य के अनुरूप किया जा रहा है और ग्रामीण रोजगार योजना को समय की जरूरतों के अनुसार मजबूत किया जा रहा है। हालांकि विपक्ष इसे महात्मा गांधी की विरासत को कमजोर करने और अनावश्यक खर्च बढ़ाने वाला कदम बता रहा है।
संसद परिसर में पत्रकारों से बातचीत में प्रियंका गांधी ने कहा कि किसी भी योजना का नाम बदलने पर सरकारी कार्यालयों, दस्तावेजों, स्टेशनरी और व्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर बदलाव करने पड़ते हैं, जिस पर भारी सरकारी धन खर्च होता है। उन्होंने सवाल किया कि इस नाम परिवर्तन से आम जनता को क्या लाभ होगा। “यह सब क्यों किया जा रहा है? महात्मा गांधी का नाम हटाने की जरूरत क्या है?” प्रियंका ने कहा कि महात्मा गांधी न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में सबसे महान नेताओं में गिने जाते हैं और उनका नाम हटाने के पीछे सरकार का उद्देश्य समझ से परे है।
प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि संसद की कार्यवाही में जनता के असली मुद्दों पर चर्चा के बजाय ऐसे विषयों पर समय और संसाधन खर्च किए जा रहे हैं, जिनका सीधा लाभ आम लोगों को नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि समय बर्बाद हो रहा है, पैसा बर्बाद हो रहा है और सरकार खुद को ही परेशान कर रही है।
मनरेगा का नाम बदलने पर विपक्ष ने उठाये सवाल
मनरेगा के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दलों ने भी सरकार को घेरा है। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने इस कदम को ‘महात्मा गांधी का अपमान’ बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर गांधीजी की भूमिका और उनके विचारों को इतिहास से मिटाने की कोशिश कर रही है। वहीं सीपीआई (एम) के महासचिव एम.ए. बेबी ने इसे मनरेगा के बुनियादी अधिकार-आधारित ढांचे को कमजोर करने की साजिश करार दिया। उनका कहना है कि केंद्र सरकार योजना के पुनर्गठन के नाम पर फंड में कटौती कर रही है और उसकी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल रही है, जिससे ग्रामीण संकट और गहराने का खतरा है।
गौरतलब है कि मनरेगा की शुरुआत वर्ष 2005 में यूपीए सरकार के दौरान हुई थी और इसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े बदलाव के रूप में देखा गया। अब सरकार इस योजना का नाम बदलकर ‘विकसित भारत गारंटी रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ संक्षेप में ‘विकसित भारत जी राम जी’ (वीबी-जी राम जी) रखने का प्रस्ताव लाई है। इसके तहत गारंटीयुक्त रोजगार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करने, मजदूरी का भुगतान 7 से 15 दिनों के भीतर अनिवार्य करने और देरी पर बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान किया गया है।
वायु प्रदूषण पर सरकार को घेरा
इसी बीच कांग्रेस ने दिल्ली में खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके वायु प्रदूषण के मुद्दे पर भी सरकार को आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए लागू ग्रैप (वर्गीकृत प्रतिक्रिया कार्य योजना) को नाकाफी बताते हुए कहा कि सरकार केवल संकट प्रबंधन पर ध्यान दे रही है, न कि स्थायी समाधान पर। उन्होंने संसद में दिए गए सरकारी जवाब का हवाला देते हुए कहा कि वायु प्रदूषण और मौतों के बीच संबंध पर निर्णायक आंकड़ों से इनकार करना सरकार की गंभीर असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
कांग्रेस का आरोप है कि लैंसेट और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के अध्ययन साफ तौर पर दिखाते हैं कि वायु प्रदूषण देश में लाखों मौतों का कारण बन रहा है, इसके बावजूद सरकार आंख मूंदे हुए है। कुल मिलाकर, मनरेगा का नाम बदलने से लेकर दिल्ली की जहरीली हवा तक, विपक्ष ने सरकार की नीतियों और प्राथमिकताओं पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं, जो आने वाले दिनों में संसद और सियासी गलियारों में और तेज होने की संभावना है।
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