‘मुझे हिंदू विरोधी कहना पूरी तरह गलत, सरकारी पद स्वीकार नहीं करूंगा’, पूर्व CJI बी.आर. गवई का बड़ा बयान

पूर्व CJI बी.आर. गवई ने इंटरव्यू में कहा कि उन्हें ‘हिंदू विरोधी’ कहना गलत है। उन्होंने सरकारी पद ठुकराया, लेकिन राजनीति में आने की संभावना से इनकार नहीं किया।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई ने रिटायरमेंट के बाद दिए अपने पहले विस्तृत इंटरव्यू में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर साफ और बेबाक राय रखी। एक न्यूज चैनल को दिए विशेष इंटरव्यू में उन्होंने ‘एंटी-हिंदू’ कहे जाने, जूता फेंकने की घटना, राजनीति में संभावित कदम, हेट स्पीच कानून, बुलडोजर जस्टिस और न्यायपालिका पर लगने वाले आरोपों पर विस्तार से जवाब दिए।

जस्टिस गवई ने सबसे पहले उस विवादित जूता फेंकने की घटना पर बात की, जिसने उनके कार्यकाल को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह की प्रतिक्रियाएं पैदा की थीं। उन्होंने कहा कि मुझे हिंदू विरोधी कहना पूरी तरह गलत था। मैं नहीं जानता उस घटना के पीछे क्या मकसद था। लेकिन इससे मुझ पर कोई व्यक्तिगत प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने बताया कि इस घटना के बाद उन्होंने अपनी टिप्पणियों में सावधानी बरतनी शुरू की, क्योंकि निर्दोष बयानों को भी सोशल मीडिया पर तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा था।

सोशल मीडिया कवरेज पर नियम जरूरी

पूर्व सीजेआई ने कहा कि कोर्ट की मौखिक टिप्पणियों के सोशल मीडिया कवरेज पर कुछ हद तक नियमन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अक्सर कोर्ट की टिप्पणियों को आधा-अधूरा दिखाया जाता है, जिससे गलत संदेश जाता है।

हेट स्पीच पर सख्त कानून की जरूरत : गवई

हेट स्पीच पर पूछे गए सवाल पर जस्टिस गवई ने संसद से ठोस कानून बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि हेट स्पीच समाज को बांटती है। इसके खिलाफ सख्त और स्पष्ट कानून की अत्यंत आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस और प्रशासन को ऐसे मामलों में निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए।

बुलडोजर जस्टिस पर टिप्पणी

देश में बुलडोजर कार्रवाई और कथित मनमानी पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि कानून का शासन सबसे ऊपर है और बुलडोजर शासन पर कानून को हावी होना चाहिए। किसी भी कार्रवाई में नियम और प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।

पीएमएलए मामलों में जमानत पर जोर

पूर्व सीजेआई ने पीएमएलए मामलों को लेकर जोर दिया कि “जेल नहीं, जमानत” के सिद्धांत पर फिर से ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कठोर कानूनों में भी अभियुक्तों के अधिकारों का सम्मान होना जरूरी है।

न्यायिक भ्रष्टाचार पर – ‘संसद जिम्मेदार’

जस्टिस गवई से जब न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के आरोपों पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यह संसद का दायित्व है कि वह जांच और सजा की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और तेज बनाएं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका पर उंगली उठाने से पहले संस्थागत सुधारों की जरूरत है।

बेंच फिक्सिंग के आरोपों का खंडन

राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में बेंच फिक्सिंग के आरोपों को उन्होंने पूरी तरह निराधार बताया। उन्होंने स्पष्ट कहा, “मेरे कार्यकाल में न किसी ने सरकार से फोन किया, न कोई दबाव आया। ट्रांसफर और नियुक्तियों में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं हुआ।” उन्होंने कोलेजियम प्रणाली को बनाए रखने का समर्थन किया।

सरकारी पद स्वीकार नहीं करूंगा, राजनीति से इनकार नहीं

रिटायरमेंट के बाद संभावित सरकारी पदों को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने साफ किया, “मैं राज्यपाल या राज्यसभा जैसी कोई भी सरकारी पोस्ट स्वीकार नहीं करूंगा।” हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि राजनीति में आने की संभावना से वे इनकार नहीं करते।

प्रदूषण को लेकर चिंता

इंटरव्यू के अंत में उन्होंने बढ़ते वायु प्रदूषण पर चिंता जताई। कहा, “राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में पर्याप्त अधिकारी नहीं हैं। अदालत के आदेशों को लागू करना कार्यपालिका का दायित्व है।”

जस्टिस गवई का यह इंटरव्यू कई संवेदनशील मुद्दों से जुड़े उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है और रिटायरमेंट के बाद उनके अगले कदमों को लेकर भी संकेत देता है।

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पूर्व CJI बी.आर. गवई ने इंटरव्यू में कहा कि उन्हें ‘हिंदू विरोधी’ कहना गलत है। उन्होंने सरकारी पद ठुकराया, लेकिन राजनीति में आने की संभावना से इनकार नहीं किया।

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