
New Delhi . देश में मृत्युदंड के तरीके को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान बुधवार को न्यायालय ने केंद्र सरकार के रुख पर असहमति जताई। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि समस्या यह है कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में फांसी पर लटकाकर मौत देने के तरीके को अमानवीय और असभ्य बताते हुए इसे बदलने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि घातक इंजेक्शन के जरिए सजा देना अधिक मानवीय और सभ्य तरीका है।
सरकार ने कहा – दोषियों को विकल्प देना व्यावहारिक नहीं
केंद्र की ओर से अदालत को बताया गया कि दोषियों को यह विकल्प देना कि वे फांसी या इंजेक्शन में से कौन-सा तरीका चुनना चाहते हैं, व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। इस पर न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने कहा कि समस्या यही है कि सरकार बदलाव को लेकर तैयार नहीं होती। समय के साथ चीजें बदल चुकी हैं।
इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी
सुनवाई के दौरान पीठ ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि वे याचिकाकर्ता के सुझाव पर सरकार को विचार करने की सलाह दें। हालांकि, केंद्र ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि वर्तमान व्यवस्था को बदलना कठिन है। अदालत ने अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर के लिए तय की है।
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याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने तर्क दिया कि दोषियों को कम से कम इतना अधिकार होना चाहिए कि वे तय कर सकें कि उन्हें फांसी दी जाए या घातक इंजेक्शन लगाया जाए। उन्होंने कहा कि अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों ने घातक इंजेक्शन की व्यवस्था को अपनाया है। उनका कहना था कि फांसी एक क्रूर और बर्बर तरीका है, जिसमें शव कई मिनट तक रस्सी पर झूलता रहता है।
पहले भी उठा था मुद्दा
मार्च 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया था कि वह विशेषज्ञों की एक समिति गठित कर सकती है, जो यह जांच करे कि क्या फांसी का तरीका सबसे कम दर्दनाक है। तब भी अदालत ने कहा था कि सरकार को किसी खास सजा के तरीके को अपनाने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।
वहीं, 2017 में भी इसी याचिका में सुझाव दिया गया था कि फांसी की जगह इंजेक्शन, गोली मारने, बिजली के झटके या गैस चैंबर जैसे कम दर्दनाक विकल्पों पर विचार किया जाए।