
Prayagraj news: प्रयागराज के सिविल लाइंस क्षेत्र में स्थित “शहीद वॉल” पर अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद के नाम से ‘पंडित जी’ शब्द हटाने को लेकर विवाद गहरा गया है। यह बदलाव उस समय सामने आया जब स्थानीय संस्था और जनप्रतिनिधियों ने इसे लेकर तीखी आपत्ति जताई।
‘भारत भाग्य विधाता’ संस्था ने की निंदा
इस मामले पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया ‘भारत भाग्य विधाता’ संस्था की ओर से आई है। संस्था ने इस कार्य को न सिर्फ जातीय पूर्वाग्रह से प्रेरित बताया, बल्कि इसे शहीदों के सम्मान और इतिहास के साथ सीधा खिलवाड़ करार दिया। संस्था ने सवाल उठाया कि “क्या अधिकारी को ‘पंडित’ शब्द से नफ़रत है?”
बिना समिति की अनुमति के किया गया संशोधन
शहीद वॉल के निर्माण के समय गठित तीन सदस्यीय समिति, जिसमें इतिहासकार और बुद्धिजीवी शामिल थे, ने भी इस बदलाव पर आपत्ति जताई है। समिति का कहना है कि इस तरह का कोई भी संशोधन उनकी अनुमति के बिना किया गया है, जो नियमों और संवेदनशीलता दोनों के खिलाफ है।
‘पंडित जी’ उपनाम का ऐतिहासिक महत्व
संस्था ने स्पष्ट किया कि चंद्रशेखर आज़ाद को उनके समकालीन साथी क्रांतिकारी ‘पंडित जी’ कहकर पुकारते थे। यह नामकरण उनकी विद्वता और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक था, न कि केवल जातीय परिचायक। यह भी उदाहरण दिया गया कि जैसे पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ब्राह्मण न होते हुए भी ‘पंडित’ उपाधि का प्रयोग करते हैं, वैसे ही यह शब्द सम्मान का प्रतीक है।
स्थानीय विधायक हर्षवर्धन बाजपेई का बयान
शहर उत्तरी के विधायक हर्षवर्धन बाजपेई ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा: “पंडित चंद्रशेखर आज़ाद का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। चाहे जितनी भी लड़ाई लड़नी पड़े, हम उनका सम्मान हर हाल में बरकरार रखेंगे। पंडित जी हमारे गौरव और प्रेरणा हैं।”
सरकार से कार्रवाई की मांग
संस्था और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने सरकार से इस पूरे मामले की जांच की मांग की है। उनकी मांग है कि यह पता लगाया जाए कि यह बदलाव किसके आदेश पर हुआ और दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही, ‘पंडित जी’ शब्द को शहीद वॉल पर पुनः स्थापित किया जाए।
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इतिहास के साथ छेड़छाड़ या सौंदर्यीकरण?
ज्ञात हो कि शहीद वॉल की स्थापना 12 जनवरी 2015 को तत्कालीन राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी द्वारा की गई थी। इसे ‘स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड’ द्वारा सौंदर्यीकृत किया गया था और प्रस्ताव ‘भारत भाग्य विधाता’ संस्था ने ही रखा था। अब जब यह बदलाव सामने आया है, तो सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या यह ‘सौंदर्यीकरण’ के नाम पर इतिहास से छेड़छाड़ है?
रिपोर्ट: राजेश मिश्रा प्रयागराज