
New Delhi News. देश के सार्वजनिक वित्त इतिहास के सबसे बड़े घोटालों में से एक कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला को लेकर एक नया खुलासा सामने आया है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के पूर्व महानिदेशक पी. शेष कुमार ने अपनी नई किताब ‘Unfolded: How the Audit Trail Heralded Financial Accountability and International Supreme Audit Institution’ में बताया है कि मनमोहन सिंह सरकार के दौरान सीएजी टीम को ऑडिट करने में भारी असहयोग का सामना करना पड़ा था।
कुमार के अनुसार, कोयला मंत्रालय में सीएजी की टीम को एक बदबूदार शौचालय के बगल में छोटा कमरा दिया गया था, ताकि उन्हें हतोत्साहित किया जा सके। उन्होंने कहा कि ऑडिटिंग अधिकारियों का स्वागत नहीं किया गया। हमें मंत्रालय में एक बदबूदार शौचालय के बगल में छोटा सा कमरा दिया गया था। हमें उपद्रवी की तरह देखा गया।
फाइलें गायब, रिकॉर्ड छिपाए गए
कुमार ने बताया कि कोयला ब्लॉक आवंटन की स्क्रीनिंग कमेटी की 200 से अधिक बैठकों में से उन्हें सिर्फ 2-3 बैठकों के रिकॉर्ड ही उपलब्ध कराए गए। उन्होंने कहा कि सरकार ने जानबूझकर देरी की और कई अहम दस्तावेज गायब कर दिए। कोयला मंत्रालय सरकार का हिस्सा था, लेकिन उन्हें रिकॉर्ड नहीं छिपाना चाहिए था। देरी और असहयोग था, और ऐसा लग रहा था कि सरकार कुछ छिपा रही है।
मनमोहन सरकार की नाराज़गी
कुमार ने दावा किया कि जब सीएजी की रिपोर्ट में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का नाम आया, तो सरकार बेहद नाराज़ हो गई। कुमार के मुताबिक, सरकार हमारी रिपोर्ट से बहुत नाराज़ थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संसद में रिपोर्ट के ख़िलाफ़ बात की, और शीर्ष मंत्रियों ने इसके विरोध में प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं।
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रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि सीएजी ने सरकार के सर्वोच्च पदों से तीव्र प्रतिक्रिया के बावजूद सार्वजनिक रूप से चुप्पी बनाए रखी, ताकि संस्थान की निष्पक्षता पर सवाल न उठे।
देश को हिला दिया
पुस्तक में बताया गया है कि सीएजी की टीम ने जांच के दौरान कोयला ब्लॉक आवंटन प्रक्रिया की अपारदर्शिता को उजागर किया था। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि देश को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ – यह वही आंकड़ा था जिसने उस समय पूरे देश को झकझोर दिया और कोलगेट घोटाला के नाम से राजनीतिक भूचाल मच गया। बाद में प्रीम कोर्ट ने इन सभी आवंटनों को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी।
पर्दे के पीछे की कहानी
कुमार ने बताया कि रिपोर्ट पूरी होने के दौरान फाइलें गुम हो जाती थीं, जबकि मीडिया में लीक होने से सनसनी फैलती थी। हमारे सामने राजनीतिक दबाव, मीडिया ट्रायल और नौकरशाही बाधाएं थीं। लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी और सच्चाई को दर्ज किया।



